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नवजात के लिए तरल सोना है दिव्या मदर मिल्क बैंक का दूध- पंचायतनामा डेस्क

उत्तर भारत का पहला मानव दूध बैंक राजस्थान के उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज के सरकारी अस्पताल पन्नाधाई राजकीय महिला चिकित्सालय में चल रहा है. इस दूध बैंक की शुरुआत अप्रैल 2013 में की गयी.

यहां आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित एक छोटे से क्लिनिक में मानव स्तन के दूध का बैंक प्रारंभ किया गया है. इसे विशेषज्ञ तरल सोना कहते हैं. यह बैंक आसपास की महिलाओं का एचआइवी और हेपटॉइटिस जैसे कुछ रोगों का पूर्व परीक्षण करने के बाद उनका अतिरिक्त दूध एकत्रित करता है. इकट्ठा किये गये दूध को पॉश्चरीकृत कर जमा किया जाता है, जिसका चार महीने तक उपयोग किया जा सकता है. बैंक के कर्मचारी हाल में मां बनने वाली महिलाओं को अपना अतिरिक्त दूध जमा करने के लिए कहते हैं, ताकि वे दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित कर सकें. दूध बैंक खुलने के समय से ही लगभग 200 महिलाएं सप्ताह में कम से कम एक बार अपना अतिरिक्त दूध दान करती हैं. अबतक इस मानव दूध बैंक से 514 माताएं जुड़ चुकी हैं और उन्होंने 3603 यूनीट से अधिक दूध दान किया है. संस्था के को-आर्डिनेटर के रूप में काम करने वाले अमित ने पंचायतनामा को बताया कि जिस तरह ब्लड बैंक में लोग जरूरतमंदों के लिए रक्तदान करते हैं, उसी तरह इस बैंक में जरूरतमंद बच्चों के लिए माताएं अपना दूध दान करती हैं. अबतक इस बैंक में संग्रहित दूध से एनआइसीयू में भर्ती 312 से ज्याद बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं.

मां भगवती विकास संस्थान की पहल

जरूरतमंद बच्चों के लिए मां का दूध सुपर फूड की तरह काम करता है. उदयपुर में स्थापित यह दूध बैंक  दिव्य मदर मिल्क बैंक के नाम से जाना जाता है. इस बैंक का संचालन शहर की एक स्वयंसेवी संस्था मां भगवती विकास संस्थान करती है. इसने 2005 में महेश आश्रम नाम से लावारिस बच्चों के लिए एक अनाथ आश्रम की भी स्थापना की. योग गुरु देवेंद्र अग्रवाल इस स्वयंसेवी संस्था के प्रमुख हैं. उन्होंने पाया कि आश्रम के बच्चों जिनमें से ज्यादातर लड़कियां हैं, जो कम प्रतिरोधक क्षमता की शिकार हैं. उन्होंने पाया कि इसकी मुख्य वजह इनका स्तनपान से वंचित रहना है. ऐसे में उन्हें यह विचार आया कि नवजात बच्चों के लिए मदर मिल्क बैंक स्थापित किया जाये. आज उनके द्वारा स्थापित मदर मिल्क बैंक से जरूरतमंद बच्चों को काफी लाभ हो रहा है.

कैसे काम करता है मिल्क बैंक

दिव्या मदर मिल्क बैंक दिन के 10 बचे से संध्या के पांच बजे तक काम करता है. हालांकि जरूरत पड़ने पर 24 घंटे में किसी भी समय जरूरतमंद व्यक्ति व डॉक्टर को बच्चे के लिए मानव दूध उपलब्ध कराया जा सकता है. दूध बैंक के दुग्ध दान कक्ष में पांच महिलाओं के एक साथ दूध दान करने की क्षमता है. एक दिन में 60 महिलाओं का दूध यह बैंक संग्रह कर सकता है. इस दूध बैंक की क्षमता छह लीटर दूध एकत्र करने की है. इस दूध को जांच परख कर ही संग्रह किया जाता है व बच्चों को दिया जाता है.

डब्ल्यूएचओ व यूनिसेफ का सहयोग

संस्था के इस अभियान को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) व यूनिसेफ का भी सहयोग प्राप्त है. इन दोनों वैश्विक संस्थाओं की गाइडलाइन के आधार पर ही इस मदर मिल्क बैंक की स्थापना की गयी है. केंद्र व राज्य सरकार का दिशा-निर्देश भी कहता है कि नवजात बच्चों को छह महीने की उम्र तक मां का दूध उपलब्ध कराना चाहिए, उसी लक्ष्य को यह संस्था जरूरतमंद बच्चों के लिए पाने की कोशिश करती है.

क्या है इस प्रयास का उद्देश्य

इस प्रयास के उद्देश्य बहुआयामी हैं. सबसे पहला उद्देश्य तो यह है कि मां के दूध की कमी के कारण बच्चों के कुपोषण को रोक जाये. साथ ही इस स्तनपान के महत्व को भी महिलाओं को समझाया जाये. बच्चों के स्वास्थ्य के लिए मां के स्वास्थ्य के महत्व को समझाया जाये. इसका नारा ही है मदर हेल्थ, फॉर बेबी हेल्थ. प्रसव के दौरान माताओं की मौत होने पर उनके नवजात, एड्स पीड़ित माताओं के बच्चों व ऐसी माताओं के शिशुओं को जिन्हें एक साथ जुड़वा व तिड़वा बच्चे हुए हों, उनके लिए यह दूध लाभदायक होता है. क्योंकि एक से ज्यादा बच्चे जन्म देने वाली महिलाओं के शरीर में सामान्यत: इतना दूध नहीं तैयार होता कि वे दो-तीन बच्चों को स्तनपान करा सकें. ऐसी माताओं के बच्चों को भी दूध उपलब्ध कराया जाता है, जो कोई ऐसी दवा ले रही हों, जिस कारण स्तनपान कराने के कारण उनके बच्चे को नुकसान हो सकता है. संस्था के अमित बताते हैं कि जो मां स्वस्थ हैं, उनके शरीर में अपने शिशु की जरूरत से ज्यादा दूध निर्माण होता है, ऐसे में वे भी दूध दान करती हैं. वे कहते हैं : हमलोग जागरूकता कैंप चला कर महिलाओं को बताते हैं कि स्तनपान कराने या अतिरिक्त दूध दान करने से वे स्तन कैंसर, अंडाशय कैंसर, बच्चेदानी के कैंसर से बच सकती हैं. साथ ही इससे मधुमेह का खतरा कम होता है व शरीर का वजन नहीं बढ़ता. वैसी महिलाएं जिनके स्तन में किसी तरह की दिक्कत होती है, जैसे खून आना, संक्रमण या गांठ पड़ गया हो, उनके शिशुओं को इस मिल्क बैंक का लाभ मिलता है. यह मिल्क बैंक मां का सुरक्षात्मक ढंग से दूध निकालने की भी व्यवस्था करता है और उसे बच्चों में पिलाने में मदद करता है.

भारत में 11 स्तन दूध बैंक

भारत में वर्तमान में सिर्फ 11 स्तन दूध बैंक हैं, जो बीमार व कमजोर बच्चे की मदद कर रहे हैं. जबकि यहां हर साल 2.60 करोड़ बच्चे जन्म ले रहे हैं. वहीं, ब्रिटेन में हर साल मात्र आठ लाख बच्चे पैदा होते हैं और वहां ऐसे बैंक की संख्या 17 है. विशेषज्ञ उस दिन की परिकल्पना भी करते हैं जब पशुओं की तरह मानव दूध का भी पाउडर उपलब्ध हो.

ब्राजील की उपलब्धि

ब्राजील में डाकियों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे गर्भवती महिलाओं को स्तनपान से संबंधित जानकारी उपलब्ध करायें. साथ ही अगिAशमन कर्मियों को भी महिलाओं का अतिरिक्त दूध एकत्रित करने के काम में लगाया गया है. इन सब कदमों की वजह से ब्राजील में शिशु मृत्यु दर में 73 प्रतिशत तक की गिरावट आयी है. यूनिसेफ के मुताबिक ब्राजील में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की शिशु मृत्यु दर प्रति हजार मात्र 16 रह गयी है. भारत में यह आंकड़ा ब्राजील के मुकाबले लगभग चार गुणा अधिक प्रति हजार 61 है. विशेषज्ञों का मानना है ब्राजील की तर्ज पर भारत में भी स्तनपान के संबंध में व्यापक रणनीति अपना कर शिशु मृत्यु दर पर नियंत्रण पाया जा सकता है. ब्राजील जैसे देश में सर्वाधिक 250 स्तन दूध बैंक हैं. भारत में स्तनपान को लेकर जागरूकता का भी अभाव है. यहां पर व्यापक स्तर पर इसके लिए जागरूकता कार्यकर्ता तैयार कर महिलाओं को स्तनपान के लिए जागरूक किया जा सकता है.