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नवाचारों से ज्यादा जरूरी है बिजली व्यवस्था में सुधार

मनीष वैद्य। बिजली के क्षेत्र में मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाना और उपभोक्ताओं को बेहतर गुणवत्तापूर्ण सेवाएं देना, मप्र बिजली वितरण कंपनी और इससे जुड़े विभागों का घोषित उद्देश्य है। मगर खेद है कि ये सब मिलकर भी इस एक उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रहे। आंकड़ों का मायाजाल बताता है कि बिजली संबंधी व्यवस्थाएं सुधारने के लिए बीते कुछ सालों में करोड़ों रुपए खर्च किए गए। साथ ही उपभोक्ता को राहत देने के लिए मोबाइल एप, ऑनलाइन बिजली बिल भुगतान जैसे तकनीकी अपग्रेडेशन में भी लाखों रुपए फूंके गए, लेकिन अफसोस कि इससे उपभोक्ताओं की परेशानी कम होने के बजाय और बढ़ गई है।

बिजली भी अब रोटी, कपड़ा और मकान की तरह मूलभूत जरूरत है। बीते सालों में प्रदेश के उपभोक्ताओं की तादाद तेजी से बढ़ी है। 2010 में 90 लाख 75 हजार 156 घोषित उपभोक्ताओं का आंकड़ा अब बढ़कर डेढ़ करोड़ तक पहुंच गया है। इसी अनुपात में राज्य का राजस्व भी 2010 के 18,783 करोड़ रुपए से करीब ढाई गुना बढ़कर 42,872 करोड़ के आंकड़े को छू रहा है। अच्छी बात यह है कि खपत की इस बढ़त के बावजूद हमारे पास मांग से ज्यादा बिजली (सरप्लस) है। मगर इस अच्छी बात के पीछे एक अफसोस भी जुड़ा है और वो ये कि अब भी कई गांवों और मजरों टोलों तक उजाले की लकीर नहीं पंहुच सकी है। और भी कई सवाल हैं जो बिजली वितरण व्यवस्था पर अब भी उठ रहे हैं। मसलन, सतत बिजली देने वाले अटल ज्योति अभियान के बावजूद आए दिन घंटों बिजली गुल होने की खबरें आती रहती हैं। उपभोक्ता अपने बिलों की विसंगतियों व एवरेज बिल राशि समायोजन के लिए भटकते रहते हैं। उपभोक्ताओं की गाढ़ी कमाई के पैसों से मीटर रीडर्स को कैमरे बांटे और बिलों पर मीटर की रीडिंग के फोटो चस्पा करने की शुरुआत की गई, लेकिन इसमें भी सिवाय पैसा फूंकने के कुछ हासिल नहीं निकला। एटीपी मशीनें बंद पड़ी हैं, मोबाइल एप का ठीक से प्रचार तक नहीं हुआ, बाबुओं और अफसरों का लोगों को टालने वाला रवैया बदस्तूर जारी है, कहीं स्टाफ नहीं है तो कहीं आउटसोर्सिंग के ठेकाकर्मी मनमाने ढंग से काम करते हैं। कुछ सुविधाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है, लेकिन अभी पूरा समाज ऑनलाइन आने की स्थिति में नहीं होने से ये सुविधा जी का जंजाल बन गई हैं। एसएमएस से ट्रांसफार्मर खराबी की सूचना देने की मुहिम भी ठप हो गई। सीएम हेल्पलाइन शिकायतों से अटी पड़ी है। शिकायत केंद्रों पर कोई सुध लेने वाला नहीं।

ऐसे में तमाम नवाचारों के बावजूद विद्युत वितरण कंपनियों के कामकाज से उपभोक्ता खुश व संतुष्ट नजर नहीं आते। नवाचारों का प्रयोग जरूरी है लेकिन वे तब तक किसी काम के नहीं, जब तक कि लोगों के लिए लाभकारी न बनें।

(लेखक ऊर्जा मामलों के जानकार हैं।)