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नहीं है मजबूत आधार, बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मुश्किल- अमिताभ पराशर की रिपोर्ट

नई दिल्ली/पटना। राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए को समर्थन देने के एवज में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने से जुड़ी खबरों का भले ही कोई आधार न हो, लेकिन बिहार के लिए इसकी राह आसान नहीं है। उम्मीद की जा रही है कि बुधवार को बिहार की वार्षिक योजना राशि पर चर्चा करने के लिए योजना आयोग की बैठक में पहुंच रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने की अपनी पुरानी मांग मोंटेक सिंह अहलूवालिया के सामने रखेंगे।

आयोग के अधिकारी ने सोमवार को बताया कि विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे ओडीशा (गरीबी के आधार पर), राजस्थान (रेगिस्तान, प्रदूषित भूजल के आधार पर), झारखंड और छत्तीसगढ़ (नक्सलग्रस्त होने की वजह से) जैसे राज्यों की तुलना में बिहार के पक्ष में मजबूत आधार नहीं है।

क्या है नुकसान

विशेष राज्यों की केंद्रीय करों में हिस्सेदारी कम हो जाती है। चूंकि विशेष राज्यों की संख्या 6 से बढ़कर 11 हो चुकी है और उसी अनुपात में इन राज्यों को मिलने वाली राशि घटती जा रही है, जबकि दूसरी ओर सामान्य श्रेणी के राज्य जो पहले 22 थे, अब घटकर 17 हो गए हैं। नतीजन, जीबीएस (सकल बजटीय सहायता) में इनकी हिस्सेदारी बढ़ गई है।

क्या होगा फायदा

विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को जीबीएस का 30 प्रतिशत और बाकी राज्यों को 70 प्रतिशत दिया जाता है। इन राज्यों को केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के लिए केन्द्र की ओर से मिलने वाली राशि में 90 प्रतिशत अनुदान होता है और बाकी 10 प्रतिशत कर्ज के तौर पर दिया जाता है, जबकि सामान्य श्रेणी के राज्यों को इसी मद में मिलने वाली राशि में 70 प्रतिशत कर्ज और 30 प्रतिशत अनुदान होता है।

क्या है बिहार के विरोध में तर्क


विशेष राज्य का दर्जा उन राज्यों को दिया जाता है जिनके पास राजस्व जुटाने के मजबूत साधन न हों और कई ऐसे दुर्गम क्षेत्र हों जहां विकास कार्यों पर आने वाली लागत काफी अधिक हो। योजना आयोग का मानना है कि बिहार में राजस्व के कई स्त्रोत हैं और यह परंपरागत रूप से संपन्न राज्य रहा है। इसके अलावा, केंद्र द्वारा प्रायोजित बिहार पैकेज में राज्य के लगभग हर जिले को शामिल किया गया है। पिछड़े क्षेत्रों के लिए अनुदान की केंद्रीय योजना (बीआरजीएफ) में भी राज्य का लगभग हर जिला शामिल है।