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निजी कंपनियों के हवाले मौसम!

भारत की आधी से ज्यादा आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है और कृषि मॉनसून पर. देश की कुल कृषि भूमि का 55 प्रतिशत वर्षा जल पर निर्भर है. लेकिन अभी तक मॉनसून के पूर्वानुमान के शास्त्र को पूरी तरह साध पाने में सफलता नहीं मिली है.

पिछले साल सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि पिछले चार साल से भारतीय मौसम विभाग के मॉनसून के पूर्वानुमान के आंकड़े वास्तविकता से दूर रहे हैं. पिछले साल भारत में बारिश औसत से आठ फीसदी कम हुई. मॉनसून की भविष्यवाणी करने में मौसम विभाग की नाकामियों के बीच इस साल पहली बार स्काईमेट नामक कंपनी ने मॉनसून का पूर्वानुमान लगाया है.

मॉनसून के पूर्वानुमान के क्षेत्र में निजी कंपनी के प्रवेश का क्या है मतलब है और कैसे किया जाता है मॉनसून का पूर्वानुमान, इन्हीं विषयों की पड़ताल करता आज का नॉलेज..

भारत के जीवन पर किसी एक चीज का अगर सबसे ज्यादा असर पड़ता है, तो वह है मॉनसून. मॉनसून को भारत की जीवन रेखा कहा जाता है. भारत जैसे देश में जहां आज भी देश की करीब आधी से ज्यादा आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है और देश के कृषि क्षेत्र का लगभग दो तिहाई हिस्सा वर्षा के जल पर निर्भर हो, मानसून के महत्व को सहज ही समझा जा सकता है.

ऐसे में मॉनसून के पूर्वानुमान के महत्व को भी समझना ज्यादा कठिन नहीं है. मॉनसून का पूर्वानुमान देश के करोड़ों किसानों के लिए भविष्य का नक्शा लेकर आता है. इसके द्वारा किसान को सिर्फ इस बात की ही जानकारी नहीं मिलती कि इस साल बारिश उस पर मेहरबान होगी या नहीं, वह कब शुरू होगी, या उसके बीच में कितना व्यवधान आयेगा, बल्कि इससे उसे अपने कृषि संबंधी कार्यो की पूर्व तैयारी की योजना बनाने का मौका भी मिलता है.

लेकिन, जिस मॉनसून पर भारत की इतनी बड़ी आबादी का पूरा आर्थिक क्रिया-व्यापार आश्रित है, अभी तक उसके पूर्वानुमान के शास्त्र को पूरी तरह साध पाने में सफलता नहीं मिली है. पिछले साल सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि पिछले चार साल से भारतीय मौसम विभाग के मॉनसून के पूर्वानुमान के आंकड़े वास्तविकता से दूर रहे हैं. पिछले साल भारत में बारिश औसत से आठ फीसदी कम यानी 92 फीसदी हुई.

मॉनसून के पूर्वानुमान में एक बड़ी असफलता तब देखी गयी जब वर्ष 2009 में भारतीय मौसम विभाग पिछले करीब चार दशकों के सबसे भीषण सूखे का अनुमान लगाने में असफल साबित हुआ. मॉनसून की इस असफलता से भारत में धान के उत्पादन में गिरावट आयी और उसे चीनी का विदेशों से आयात करना पड़ा, जिससे विश्व बाजार में चीनी का मूल्य 30 वर्षो के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया.

2005 से 2013 के बीच के 8 वर्षो में भारतीय मौसम विभाग कम से कम दो बार 2007 और 2009 में मॉनसून के पूर्वानुमान में नाकाम रहा है. 2009 में मॉनसून से होनेवाली बारिश औसत से 22 फीसदी कम रही थी. जबकि 2007 में बारिश औसत से कहीं ज्यादा रही थी. 2012 में महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में कम बारिश होने के कारण चावल, गन्ने और कपास के उत्पादन पर असर पड़ा था.

मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में निजी कंपनी

अब पहली बार स्काइमेट नामक निजी कंपनी ने मॉनसून के पूर्वानुमान के क्षेत्र में पहलकदमी है. यह अपने आप में इस कारण तो ऐतिहासिक है ही कि यह किसी निजी कंपनी द्वारा इस तरह का पहला प्रयास है, बल्कि इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह सरकार के इस क्षेत्र में अब तक चले आ रहे एकाधिकार को चुनौती देता है.

ऐसा नहीं है कि भारतीय मौसम विभाग ने मॉनसून के पूर्वानुमान के अपने दायित्व को निभाने में कोई कसर छोड़ी है, या उसने इसकी पूर्व तैयारी करने के मामले में किसी किस्म की कोताही बरतती हो, लेकिन उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद हकीकत यही है कि मॉनसून के पूर्वानुमान के मामले में उसका रिकॉर्ड पूरी तरह विश्वसनीय नहीं रहा है. और कई बार ऐसा कहा जाता है कि इस पूर्वानुमान के सही होने की उतनी ही संभावना है जिनती कि एक सिक्के उछालने पर उसके हेड या टेल आने की.

निजी भविष्यवाणी से कितनी उम्मीद

यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि अपने लंबे अनुभव और तकनीकी दक्षता के बावजूद भारतीय मौसम विभाग जिस शास्त्र को साध पाने में नाकाम साबित हुआ है उसे स्काईमेट साध पाने में कामयाब हो सकेगी, लेकिन इसने इस बात की पुष्टि जरूर की है कि भारत में मौसम पूर्वानुमान का क्षेत्र अभी वयस्क होने का इंतजार कर रहा है और यही वजह है कि एक निजी एजेंसी ने इसमें दखल दी है.