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नियंत्रण मुक्त हो प्रतिभा प्रवाह-- जयंतीलाल भंडारी

इस समय अमेरिका और दुनिया के कई विकसित देशों में भारत के पेशेवरों (प्रोफेशनल्स) की वीजा संबंधी कठोरता के कारण मुश्किलें और चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. खासतौर से अमेरिका में सरकार की 'बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन' नीति के तहत नयी-नयी वीजा संबंधी कठोरता भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाते हुए दिखाई दे रही है.

बीते 24 अप्रैल को अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीजाधारकों के जीवनसाथियों के लिए कार्य परमिट के लिए दिये जानेवाले एच-4 वीजा को खत्म करने की योजना को अंतिम रूप दिया है. इस आशय का पत्र अमेरिकी नागरिक एवं आव्रजन सेवा विभाग के द्वारा प्रकाशित किया गया है. ऐसे में अब अमेरिका में यदि पति के पास एच-1बी वीजा है, तो पत्नी को भी कार्य करने की अनुमति नहीं होगी.

इसी तरह पत्नी के पास एच-1बी वीजा होने पर पति को कार्य परमिट नहीं मिलेगा. इस कदम से करीब 64 हजार से अधिक पेशेवरों को काम की अनुमति नहीं मिलेगी. गौरतलब है कि 2015 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में एच-1बी वीजा रखनेवाले व्यक्ति के जीवनसाथी को कार्य परमिट देने का फैसला हुआ था.

यह फैसला इस आधार पर हुआ था कि एच-1बी वीजाधारक उच्च गुणवत्ता वाले पेेशेवर के साथ उसका जीवनसाथी भी अमेरिका में कार्य कर सकता है. इससे ऐसे भारतीय पेशेवर जो एच-1बी वीजा पर अमेरिका गये थे, उनके जीवनसाथी को भी अमेरिका में एच-4 वीजा देकर काम करने की अनुमति प्रदान की गयी थी.

अप्रैल 2018 से एच-1बी वीजा नियमों को कड़ा करने की कवायद तेज हुई है. वित्त वर्ष 2019 के लिए दिये जानेवाले एच-1बी वीजा आवेदन का सीजन अप्रैल 2018 में पूरा हुआ है.

एच-1बी वीजा की सख्त नीति के तहत लागू किये गये नये नियमों से अब अमेरिका में कार्यरत कंपनी को यह साबित करना पड़ा है कि एच-1बी वीजा के जरिये थर्ड-पार्टी साइट पर तैनात कर्मचारी के पास विशिष्ट पेशे में विशिष्ट व गैर-पात्रता वाला असाइनमेंट है.
नयी नीति के तहत थर्ड-पार्टी वर्क साइट पर केवल काम की अवधि के लिए कर्मचारियों को एच-1बी वीजा जारी करने का प्रावधान है. ऐसे में नये नियम के तहत जारी एच-1बी वीजा की अवधि तीन साल से भी कम हो सकती है. वीजा संबंधी नये नियमों से अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों के थर्ड-पार्टी सप्लायर बेस को तगड़ा झटका लगा है. ये नियम भारतीय कुशल पेशेवरों के लिए कष्टदायी हैं.

यह भी स्पष्ट है कि भारत की आईटी कंपनियों के लिए 2017 में भी एच-1बी वीजा की संख्या कम हुई है. अमेरिकी थिंक टैंक द नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में वीजा नियमों में सख्ती से 2017 में वहां भारतीय कंपनियों के लिए 8,468 नये एच-1 बी वीजा प्राप्त हुए, यह संख्या वर्ष 2015 की तुलना में 43 फीसदी कम है.

चूंकि अभी एच-1बी वीजा रखनेवाले के जीवनसाथी को वर्क परमिट देने का प्रस्ताव अंतिम चरण में है, ऐसे में कुशल पेशेवरों के लिए सख्त इस वीजा प्रस्ताव को वापस कराने हेतु अमेरिका में प्रतिष्ठित प्रवासी भारतीय मित्रों और भारत की आईटी कंपनियों के हितों के लिए काम करनेवाले संगठन नेशनल एसोसिएशन ऑफ साफ्टवेयर एंड सर्विसेस कंपनीज (नासकॉम) के द्वारा वैसे ही रणनीतिक प्रयास किये जाने होंगे, जिस तरह दो जनवरी, 2018 को अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) ने एच-1बी वीजा नियमों में संशोधन का प्रस्ताव वापस कराने हेतु किये थे.

चूंकि अमेरिकी कंपनियों में काम करनेवाले विदेशियों में से करीब 70 फीसदी कर्मचारी भारतीय हैं, अतएव अमेरिका के वीजा संबंधी नये सुधार से भारतीय प्रोफेशनल्स की मुश्किलें बढ़ जाती और उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ सकता था. इसके अलावा भारत के लिए 115 अरब डॉलर की वार्षिक विदेशी मुद्रा कमानेवाले आईटी सेक्टर पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता था.

लेकिन, प्रभावी प्रवासी भारतीयों, भारत सरकार और नासकाम के प्रभावी प्रयासों से 9 जनवरी, 2018 को अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीजा नियमों में बदलाव के प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी. इससे अमेरिका में काम कर रहे करीब 7.5 लाख भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को बड़ी राहत मिली थी.

जनवरी 2018 में एच-1बी वीजा संबंधी कठोर प्रस्ताव के संशोधन से अमेरिका ने कदम पीछे हटा लिये थे. अब एच-1बी वीजा रखनेवाले के जीवनसाथी को कार्य परमिट नहीं देने के प्रोफेशनल्स के हितों से जुड़े एक और प्रस्ताव से अमेरिका को कदम पीछे हटाने के लिए सार्थक प्रयास किये जाने जरूरी हैं.

अच्छी खबर है कि अमेरिका की बड़ी कंपनियां- फेसबुक, गूगल और माइक्रोसाॅफ्ट आदि ने अमेरिकी सरकार से कहा है कि अमेरिकी कार्यबल से एच-4 वीजाधारक हजारों कुशल पेशेवरों को हटाने की नयी योजना को खारिज होनी चाहिए. क्योंकि इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचेगा.

भारत के द्वारा विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के तहत अमेरिका सहित विकसित देशों के द्वारा ऐसे मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाना होगा. यह बात आगे बढ़ानी होगी कि जब डब्ल्यूटीओ के तहत सदस्य देशों के बीच पूंजी प्रवाह नियंत्रण मुक्त है, तो अमेरिका सहित विकसित देशों में श्रम और प्रतिभा प्रवाह भी नियंत्रण मुक्त रखा ही जाना चाहिए.