Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/नोटबंदी-की-मार-बिहार-के-लोगों-के-हाथों-से-छिन-गया-काम--11027.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | नोटबंदी की मार : बिहार के लोगों के हाथों से छिन गया काम.. | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

नोटबंदी की मार : बिहार के लोगों के हाथों से छिन गया काम..

पटना : नोटबंदी से राज्य से बाहर काम करनेवाले बिहार के कामगारों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. काम बंद होने से मजबूरी में उन्हें घर लौटना पड़ रहा है. आठ-10 वर्ष पहले भी दूसरे प्रदेशों में काम करनेवाले बिहार के कामगार बड़ी संख्या में घर लौटे थे, लेकिन उस समय वे बिहार के हालत में जो सुधार आया था, उससे प्रेरित होकर लौटे थे. उन्हें एक उम्मीद बंधी थी कि यहीं पर उनके लिए रोजी-रोटी का बेहतर प्रबंध हो पायेगा.

बिहार के अधिकतर लोग दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मुंबई आदि जगहों पर बड़ी संख्या में बिहार के मजदूर काम करते हैं. वहां वे प्रमुख रूप से साइकिल फैक्टरी, होजरी, निर्माण, हीरा कटिंग के अलावा अन्य लघु व कुटीर उद्योगों में काम करते हैं. अधिकतर को कैश में ही मजदूरी या वेतन मिलता है. नोटबंदी के बाद मांग की कमी के कारण उनकी अचानक फैक्टरी बंद हो गयी है या मालिक ने कैश की कमी के नाम पर काम लेना बंद कर दिया है, जिसके कारण उन्हें घर लौटना पड़ रहा है. 

कटिहार जिले के कोरहा ब्लॉक के रौतारा गांव के धर्मेंद्र पिछले पांच वर्षों से आंध्रप्रदेश के करीमनगर में रहते थे. वहां वह एक राइस मिल में पैकिंग के साथ-साथ लोडिंग व अनलोडिंग का काम भी करते थे. नोटबंदी के बाद ठेकेदार ने मजदूरी देना बंद कर दिया, तो उन्हें लौट जाना पड़ा. छह दिसंबर को एर्णाकुलम एक्सप्रेस से पटना जंकशन पर उतरे धर्मेंद्र ने बताया कि ठेकेदार मुझे हर माह 12500 रुपये पारिश्रमिक देता था. इसी से कटिहार में रह रहे मेरे परिवार का खर्च चलता था. नोटबंदी के बाद ठेकेदार ने मजदूरी देना बंद कर दिया. पैसा मांगा, तो कहा कि कुछ दिनों के लिए घर चले जाओ. स्थिति सामान्य हो जायेगा, तो बुला लेंगे. ऐसे में मुझे घर लौटना पड़ा. 

500 और 1000 के पुराने नोट दे रहा था मालिक, मना करने पर निकाल दिया काम से

दरभंगा के बेनीपुर प्रखंड के महिनाम गांव के महाकांत प्रसाद गुजरात के सूरत में एक कपड़ा मिल में काम करते थे. इसी के बल पर वह अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. लेकिन, नोटबंदी ने उनका रोजगार छीन लिया. नोटबंदी के बाद मालिक ने मजदूरी के तौर पर उन्हें 500 व 1000 के नोट दिये. उन्होंने जब इसे लेने से मना किया, तो उसने साफ कह दिया कि लेना है तो लो, वरना जाओ. मजबूरन पुराने नोट लेने पड़े, पर ये नोट महाकांत के लिए कागज के टुकड़े साबित हुए. वहां कोई भी ये नोट लेने को तैयार नहीं हो रहा था. सूरत में उनका कोई बैंक खाता भी नहीं था. आलम यह हो गया कि जेब में नोट रहने के बावजूद वह एक कप चाय तक के लिए तरस गये. आखिरकार महाकांत लौट आये. भूखे-प्यासे सफर किया. घर लौटने के बाद जान में जान आयी. कुछ ऐसी ही समस्या सोनपुर उजान के मनोज कुमार महतो को झेलनी पड़ी. मालिक ने आठ हजार रुपये तो दिये, लेकिन सभी पुराने नोट ही थे. काफी आरजू-मिन्नत के बाद भी कोई लेने के लिए तैयार नहीं हुआ. इस कारण मालिक से तू-तू, मैं-मैं भी हो गयी. मजबूरन काम छोड़ घर लौट जाना पड़ा.

दिल्ली में रहना हो गया दूभर

नोटबंदी के बाद बक्सर के कृष्णपुरी गांव के शत्रुघ्न सिंह बेरोजगार हो गये. उन्हें घर लौटना पड़ा. बक्सर स्टेशन पर उतरे शत्रुघ्न सिंह ने बताया कि नोटबंदी के बाद दिल्ली रहना मुश्किल हो था. जिस पाइप फैक्टरी में में काम कर रहा था, वह बंद हो गयी. मालिक का कहना है कि नये नोट उस हिसाब से नहीं निकल रहे हैं, जिससे मैं सभी मजदूरों का भुगतान कर सकूं. पुराने नोट जो भी रखे हुए थे, उनसे कुछ दिनों तक काम किया गया. धीरे-धीरे वे समाप्त हो गये. किराना दुकानदार एक हजार रुपये का नोट देने पर 800 का ही सामान देते थे और दो सौ रुपये रख लेते थे. कुछ दिन तक इधर-उधर हाथ-पैर मारने के बाद कुछ नहीं मिला और भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी, तब घरवालों ने फोन कर कहा कि तुम घर आ जाओ. मैं पूरे परिवार के साथ दिल्ली से बक्सर आ गया़ हमारे जैसे कई और मजदूर तनख्वाह के अभाव में घर लौट आये. शत्रुघ्न ने बताया कि अब बक्सर में रह कर ही कोई छोटा बिजनेस करूंगा़

बाहरी राज्यों की फैक्टरियों पर नोटबंदी से छायी मंदी

कैमूर के मीरियां गांव के सुनील सिंह, शेरअली मुंबई में भिवंडी स्थित रमेश पवार फैब्रिक मिल्स में पिछले 23 वर्षों से कपड़े की रंगाई और डिजाइनिंग का काम कर रहे हैं. लेकिन, नोटबंदी के बाद फैक्टरी मालिक ने मंदी और नोट की किल्लत बता उन्हें फिलहाल काम पर रखने से मना कर दिया. अब सुनील, शेरअली सहित मीरियां गांव के मुस्तफा अंसारी, आजम अंसारी व शाहआलम जैसे दर्जनों लोग अपने घरों पर ही रुक गये हैं. कैमूर जिले के चैनपुर प्रखंड के सिकंदरपुर के रहनेवाले गुड‍्डु साह, फहीम साह व पप्पू प्रसाद सहित दर्जनों युवक गुजरात के राजकोट स्थित जैदपुर के कैलाश भाई मगन भाई कॉटन मिल में काम करते हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद ये भी बेरोजगार हो गये हैं. यूपी के साहबगंज के रहनेवाले अशोक पाल मुंबई स्थित एक साइकिल फैक्टरी में काम करते थे. नोटबंदी के चलते मालिक ने उन्हें काम देना बंद कर दिया. मजबूरन उन्हें भभुआ शहर स्थित एक होटल में मजदूरी कर पेट पालना पड़ रहा है.

समझ में नहीं आ रहा कि अब क्या करें

बांका के पंजवारा के रंधीर ने कहा, क्या करें भैया, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. यह सोच कर थोड़े न दिल्ली गये थे कि तीन महीने में ही लौट कर आ जायेंगे. नोटबंदी ने कहीं का नहीं छोड़ा. नोएडा के सेक्टर सात में रह कर खुशी-खुशी जिंदगी चल रही थी. रोज कमाना, खाना और घर के लिए बचाना. तीन महीने तो खुद को नोएडा में सेट करने में ही लग गया था. राजमिस्त्री का काम कर रहा था. पर, नोटबंदी के बाद मेटेरियल आना बंद हो गया. जहां-जहां काम चल रहे थे, धीरे-धीरे मंदा पड़ने लगा. ठेकेदार काम देने से इनकार करने लगे. वे कुछ दिन इंतजार करने की सलाह देने लगे. आज बेरोजगार हो गये हैं. ठेकेदार का फोन नंबर लेकर आये हैं. समय फिरेगा, तो फिर दिल्ली जायेंगे, नहीं तो यहीं गुजारा करूंगा.

सिविल सेवा की तैयारी छोड़ लौटना पड़ा घर

मधुबनी की जगतपुर पंचायत के सप्ता गांव के विनय कुमार मिश्र दिल्ली के गांधी विहार में रह कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहा था. एक साल से वहीं रहता था. पर्व-त्योहार आये, घर पर काम भी पड़ा, परिवार के लोगों ने बुलाया, पर पढ़ाई बाधित न हो, यह सोच कर वह नहीं आया. अचानक उन्हें 25 नवंबर को घर लौटना पड़ा. विनय बताता है कि नोटबंदी के बाद दिल्ली में यदि किसी को सबसे अधिक परेशानी हुई है, तो वे छात्र हैं. न खाना मिल रहा है, न ट्यूशन फीस और न ही आने-जाने के पैसे. मैं जिस मुहल्ले में रहता हूं, वहां पर सी ब्लॉक में ही करीब तीन हजार छात्र रहते हैं. ऐसे कई ब्लॉक हैं, पर एटीएम सिर्फ एक. कई िदन रात भर लाइन में लग कर छात्रों ने पैसे निकाले. खुद मैंने कई दिन चावल और आलू-गोभी को पानी में नमक देकर उबाल कर खाया .