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नौकरशाहों से मुक्त हो नया आयोग- भरत झुनझुनवाला

प्रभात खबर(लेख)नये योजना आयोग में ऐसे लोगों की नियुक्ति हो, जिनकी पहचान स्वतंत्र हो, ताकि सरकार का दखल न हो. ऐसे स्वतंत्र आयोग की देश को नितांत जरूरत है. सरकारी नौकरों के एक और समूह को योजना आयोग का जामा पहनाने से काम नहीं चलेगा.

हाल में संपन्न हुए मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में सहमति बनी कि योजना आयोग द्वारा राज्यों के वार्षिक प्लान को स्वीकार करने की व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाये. यह व्यवस्था राज्य की स्वायत्तता पर आघात है. राज्यों को छूट होनी चाहिए कि अपने विवेक के अनुसार विकास का मॉडल लागू कर सकें. मसलन, एक राज्य सड़क बनाने पर और दूसरा राज्य शिक्षा पर ध्यान देना चाहता है, तो आयोग को अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए. यह सहमति भी बनी कि आयोग के गठन में राज्यों की भूमिका को गहरा बनाया जाये. वर्तमान में योजना आयोग के सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा बिना राज्यों की सहभागिता के की जाती है. यह विचार सामने आया कि आयोग का कार्य देश के विकास का रोडमैप मात्र बनाना होना चाहिए. इस रोडमैप को लागू करना राज्यों के विवेक पर रहना चाहिए. ये सभी विचार सही दिशा में हैं.

प्रश्न है कि वर्तमान योजना आयोग अपने उद्देश्यों की पूर्ति में पीछे क्यों रह गया? इसका कारण है कि यह आयोग देश के सामने प्रस्तुत समस्याओं को चिह्न्ति करने और उनका निराकरण करने में असफल रहा है. देश में 1991 में विदेशी मुद्रा का संकट पैदा हो गया था. आयोग के अनुसार, सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की गति अच्छी थी. लेकिन, आयोग यह बताने में नाकाम रहा कि अच्छी गति के बावजूद विदेशी मुद्रा संकट कैसे उत्पन्न हो गया? 2004 के चुनाव के पहले आयोग द्वारा करोड़ों रोजगार उत्पन्न होने के फर्जी दावे किये जा रहे थे, जिनके भुलावे में आकर एनडीए ने सत्ता गंवायी थी.

मूल समस्या है कि आयोग में ज्यादातर सेवानिवृत्त नौकरशाहों की नियुक्ति होती है. करीब 40 साल के सेवाकाल में इनका स्वभाव सरकार के इशारे पर नाचने का हो जाता है. विकास का रोडमैप आइएएस अधिकारियों एवं वेतन भोगी प्रोफेसरों से बनवा पाना नामुमकिन है. इसलिए आयोग में स्वतंत्र वृत्ति वाले आलोचकों को नियुक्त किया जाना चाहिए. स्वतंत्र चिंतन और नौकरी साथ-साथ नहीं चलती है. नौकर को मालिक के इशारों पर चलना होता है- जैसे आइएएस अधिकारियों की आवाज मंत्री बदलने के साथ बदल जाती है. ऐसे व्यक्ति ‘थिंक' नहीं कर सकते हैं. दुर्भाग्यवश मंत्रियों की मानसिकता अपने अनुकूल लोगों को ही नियुक्त करने की होती है. अत: योजना आयोग मुख्यत: सरकार की हां में हां मिलानेवाला संगठन रह गया है.

सुझाव है कि ऐसे व्यक्ति की नये आयोग में नियुक्ति न की जाये, जिसने जीवन के प्रमुख दौर में नौकरी की हो. आयोग में किसानों, उद्यमियों, लेखकों, खिलाड़ियों की नियुक्ति की जानी चाहिए. इनकी नियुक्ति विपक्ष के नेता की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा हो. समिति के दूसरे सदस्य सुप्रीम कोर्ट के जज, इंडियन इकोनॉमिक एसोसिएशन, इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउंटेंस ऑफ इंडिया सरीखी दूसरी स्वतंत्र संस्थाओं के अध्यक्ष होने चाहिए. इस समिति द्वारा आवेदकों के नाम सार्वजनिक करने के साथ-साथ इनकी उपयुक्तता की जनसुनवाई करनी चाहिए. इससे पारदर्शिता आयेगी और अच्छे लोग आयेंगे. अगर नरेंद्र मोदी आलोचकों को योजना आयोग में नियुक्त करेंगे, तो उनकी सरकार का वह हाल नहीं होगा, जो 2004 में एनडीए का हुआ था.

वर्तमान में आयोग की अहमियत इस बात की है कि मंत्रलयों तथा राज्यों के बजट को स्वीकृति आयोग से मिलती है. बजट के आवंटन को आयोग से बाहर करने के बाद इनकी सुनेगा कौन? यह भय निर्रथक है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अथवा सीएजी के पास भी कार्यान्वयन के अधिकार नहीं हैं. फिर भी ये संस्थाएं तब-तब सफल रही हैं, जब इनकी कमान स्वतंत्र वृत्ति के लोगों के हाथ में रही है. आयोग का कार्य हर मंत्रलय एवं राज्य की स्थिति पर वार्षिक मूल्यांकन रपट जनता के समक्ष प्रस्तुत करना होना चाहिए. मंत्रलयों तथा राज्यों को रपट पर अपनी प्रतिक्रिया सार्वजनिक रूप से देनी चाहिए. जैसे केरल के कल्याणकारी मॉडल, बिहार के पिछड़ी जाति सबलीकरण मॉडल, राजस्थान के श्रम सुधार मॉडल, महाराष्ट्र के हाइवे मॉडल आदि की समीक्षा आयोग द्वारा करने से इनके खट्टे-मीठे अनुभवों का पूरे देश को लाभ मिलेगा.

आखिरी सवाल, योजना आयोग की जवाबदेही किस के प्रति होगी? जवाबदेही केंद्र सरकार के प्रति नहीं हो सकती, क्योंकि केंद्रीय मंत्रलयों का ही मूल्यांकन किया जाना है. सुझाव है कि कामर्शियल कंपनियों की तर्ज पर आयोग का एक गवर्निग बोर्ड बनाया जाये. इसमें हर वर्ष दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा नामित व्यक्ति, वरिष्ठतम पद्म भूषण, कम उम्र के ओलिंपिक विजेता आदि हों. ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाना चाहिए, जिनकी पहचान स्वतंत्र हो, ताकि उसमें सरकार का दखल न हो. ऐसे स्वतंत्र आयोग की देश को नितांत जरूरत है. सरकारी नौकरों के एक और समूह को योजना आयोग का जामा पहनाने से काम नहीं चलेगा.

डॉ भरत झुनझुनवाला

अर्थशास्त्री