Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/न्याय-की-चौखट-से-न्याय-की-आस-अनूप-भटनागर-12491.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | न्याय की चौखट से न्याय की आस-- अनूप भटनागर | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

न्याय की चौखट से न्याय की आस-- अनूप भटनागर

विडम्बना ही है कि महिलाओं को समान अधिकार दिलाने और उनके हितों की रक्षा के लिये प्रयत्नशील न्यायपालिका में महिलायें अभी भी समुचित प्रतिनिधित्व से वंचित हैं। संसदीय समिति बार-बार महिला न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करने की सिफारिश कर रही है। देश के 24 उच्च न्यायालयों में कार्यरत 673 न्यायाधीशों में इस समय सिर्फ 73 महिला न्यायाधीश हैं जबकि अधीनस्थ न्यायपालिका में कार्यरत 15959 न्यायाधीशों में 4409 महिला न्यायाधीश ही हैं। इसके विपरीत उच्चतम न्यायालय में तो कार्यरत 24 न्यायाधीशों में एक ही महिला न्यायाधीश है।


जिस देश में महिला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री जैसे पदों को सुशोभित करती हों वहां उच्चतम न्यायालय के 60 साल के इतिहास में किसी महिला न्यायाधीश का प्रधान न्यायाधीश नहीं बनना कई सवालों को जन्म देता है। आज लगभग सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है लेकिन उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में कमी के लिये क्या सरकार को जिम्मेदारी ठहराया जा सकता है, शायद नहीं। इसके लिये तो उच्चतर न्यायपालिका को ही अपनी चयन प्रक्रिया का आत्मावलोकन करके यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को आनुपातिक में प्रतिनिधित्व मिले।


इस समय उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों के चयन की प्रक्रिया पूरी करके सरकार के पास नामों की सिफारिश भेजने में उच्चतम न्यायालय के पांच वरिष्ठतम न्यायाधीश मुख्य भूमिका निभाते हैं लेकिन इस समिति में एक भी महिला न्यायाधीश नहीं है। उच्चतम न्यायालय में महिला न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि के बगैर किसी भी महिला न्यायाधीश के लिये इस चयन समिति तक पहुंचना संभव नहीं लगता। इस विशाल अंतर को देखते हुए ही विधि और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने महिला न्यायाधीशों की संख्या 50 प्रतिशत करने की सिफारिश की है। समिति ने वर्ष 2016-2017 की अनुदान संबंधी मांगों पर अपने 84वें प्रतिवेदन में भी यह सिफारिश की थी। समिति चाहती है कि उच्च न्यायालय तथा अधीनस्थ न्यायपालिका में अधिक से अधिक महिला न्यायाधीशों को शामिल करने के उपाय करने चाहिए।


हालांकि संसदीय समिति ने महिला न्यायाधीशों का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत करने की सिफारिश की है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि देश की सर्वोच्च अदालत में 1989 से लेकर आज तक किसी भी अवसर पर दो महिला न्यायाधीश नहीं रही हैं। देश में अनेक सफल महिला वकील होने के बावजूद उच्चतम न्यायालय में अब तक सिर्फ छह महिला न्यायाधीश ही नियुक्त हुई हैं। देश को आज भी एक महिला प्रधान न्यायाधीश का इंतजार है। यह भी संयोग ही है कि वर्ष 2017 में देश के चार उच्च न्यायालयों की बागडोर महिला मुख्य न्यायाधीशों के हाथ में थी लेकिन इस वर्ष कम से कम तीन उच्च न्यायालयों में महिला मुख्य न्यायाधीश हैं। इनमें भी बंबई और दिल्ली उच्च न्यायालय की बागडोर संभालने वाली महिला न्यायाधीश कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश हैं।


इसमें कोई संदेह नहीं है कि बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, असम, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों ने अपनी अधीनस्थ न्यायपालिका में महिलाओं के लिये 35 से लेकर पांच प्रतिशत तक आरक्षण की व्यवस्था की है। संसदीय समिति का मानना है कि राज्यों को इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।


महिलाआंे को 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने के बारे में सरकार और राजनीतिक दलों के रवैये को देखते हुए यह सपना साकार होने की उम्मीद कम ही लगती है। केन्द्र सरकार ने पिछले सप्ताह ही लोकसभा को बताया था कि एक समय देश के 24 उच्च न्यायालयों में कार्यरत 673 न्यायाधीशों में 73 महिला न्यायाधीश हैं। इनमें से बंबई और मद्रास उच्च न्यायालय में 11.11 और दिल्ली उच्च न्यायालय में 10 महिला न्यायाधीश हैं। इसके विपरीत उच्चतम न्यायालय में अभी भी 24 कार्यरत न्यायाधीशों में एक ही महिला न्यायाधीश है। सरकार के अनुसार हालांकि न्यायपालिका में जाति और वर्ण के आधार पर आरक्षण का प्रावधान संविधान में नहीं है लेकिन उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध किया गया है कि न्यायाधीश पद के लिये नामों की सिफारिश करते समय महिलाओं में से भी उपयुक्त उम्मीदवारों के नामों पर विचार किया जाये।


उम्मीद की जाती है कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिये उचित कदम उठाने हेतु की गयी सिफारिश पर सरकार उचित कार्यवाही करेगी।