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न्यायविदों ने कहा- न्यूनतम मजदूरी न देना असंवैधानिक - सत्येंद्र रंजन

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा ने बुधवार को कहा कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी न देने के सवाल पर केंद्र सरकार का रुख असंवैधानिक है। उनकी बात का समर्थन राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक मोहन गोपाल ने भी किया। उन्होंने यह भी जोड़ा कि कोई कानून अगर संविधान के नीति-निर्देशक तत्वों की भावना का उल्लंघन करता है, तो वह असंवैधानिक है और मनरेगा के तहत न्यूनतम से कम मजदूरी देने का प्रावधान ऐसा ही उल्लंघन है। ये विचार यहां तर्कसंगत न्यूनतम मजदूरी विषय पर कार्यशाला में जताए गए। दो दिन की यह कार्यशाला योजना आयोग के सहयोग से बंधुआ मुक्ति मोर्चा के तीस साल पूरे होने के मौके पर आयोजित की गई।

कार्यशाला में मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह ने कहा था कि केंद्र सरकार जिस तरह मनरेगा के वेतन संबंधी प्रावधान की व्याख्या कर रही है, उससे इस कानून का मकसद ही परास्त हो रहा है। इसका मकसद न्यूनतम से ज्यादा मजदूरी दिलाना था, न कि उससे कम। 

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट एक फैसले में कह चुका है कि किसी से न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम करना जबरिया मजदूरी की श्रेणी में आता है। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने न तो हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, और न ही वह इस पर अमल कर रही है। कार्यशाला के पहले दिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने यह साफ कर दिया था कि हाल में प्रधानमंत्री ने मनरेगा के तहत मजदूरी में बढ़ोतरी का जो ऐलान किया, वह अंतिम है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को इस पर एतराज है, उन्हें कोर्ट में जाना चाहिए। कोर्ट जो आदेश देगा, उसे मानने को सरकार बाध्य होगी। कार्यशाला में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा राय, ज्यां द्रेज, भाकपा नेता डी राजा और अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।