Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/प-र-व-त-तर-म-आज-द-क-स-त-दशक-ब-द-ह-जस-क-तस-ह-अलग-व-क-भ-वन.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | पूर्वोत्तर में आजादी के सात दशकों बाद ही जस की तस है अलगाव की भावना | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

पूर्वोत्तर में आजादी के सात दशकों बाद ही जस की तस है अलगाव की भावना

-डॉयचे वेले,

मणिपुर में बहुत से लोग मानते हैं कि राज्य का भारत में जबरन विलय हुआ था. इसी वजह से राज्य के उग्रवादी संगठनों ने एक बार फिर 15 अगस्त के बायकाट और बंद की अपील की. इससे पहले पूर्वोत्तर के आधा दर्जन अन्य ऐसे संगठन भी यही अपील कर चुके थे. स्वाधीनता दिवस के बायकाट का यह सिलसिला भी देश की आजादी जितना ही पुराना है.

पुराना है विवाद

आजादी के बाद अलगाव की इस भावना ने ही इलाके के तमाम राज्यों में उग्रवाद को फलने-फूलने में मदद पहुंचाई है. वह चाहे असम का यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) हो, नागालैंड का नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) हो या फिर दूसरे दर्जनों संगठन, आम लोगों की इस भावना के दोहन के जरिए ही वे अपनी दुकान चलाते रहे हैं. छोटे-से पर्वतीय राज्य मणिपुर में तो यह भावना सबसे प्रबल है. ऐसे में यह कोई हैरत की बात नहीं है कि पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा उग्रवादी संगठन इसी राज्य में सक्रिय हैं.

यह तमाम संगठन हर साल स्वाधीनता दिवस के बायकाट की अपील करते रहे हैं. केंद्र और राज्य सरकार के साथ समझौते या शांति प्रक्रिया शुरू होने के बाद उल्फा और बोडो संगठनों ने तो अब अपने पांव पीछे खींच लिए हैं, लेकिन बाकी तमाम संगठन अब भी इसी राह पर चल रहे हैं. यह साल भी अपवाद नहीं है. पहले तो पूर्वोत्तर के छह संगठनों ने साझा तौर पर 15 अगस्त को सुबह छह बजे से 11 घंटे बंद की अपील की. उसके बाद मणिपुर के उग्रवादी संगठनों के दो प्रमुख फोरम ने भी अलग से बंद और बायकाट की अपील कर दी. द कोऑर्डिनेशन कमिटी एंड एलायंस फॉर सोशल यूनिटी कांग्लीपाक के बैनर तले राज्य के कई उग्रवादी संगठन शामिल हैं.

Indien Straßenblockade (DW/Prabhakar)
आंदोलनों के दौरान सड़क की हालत

कमिटी ने राजधानी इंफाल में जारी अपने बयान में कहा, "भारत की आजादी का मणिपुर से कोई लेना-देना नहीं है. हर क्षेत्र में पिछड़े होने की वजह से मणिपुर अब तक विकास की दौड़ में शामिल नहीं हो सका है. भारत से आजादी नहीं मिलने तक राज्य का विकास संभव नहीं है.” कमिटी का दावा है कि 15 अक्तूबर, 1949 को जबरन विलय के बाद से ही मणिपुर भारत का उपनिवेश रहा है. ऐसे में राज्य के लोगों के लिए स्वाधीनता दिवस का कोई मतलब नहीं है.

इससे पहले असम, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा के छह संगठनों ने भी 15 अगस्त को 11 घंटे बंद और स्वाधीनता दिवस समारोहों के बायकाट की अपील की थी. इनकी दलील है कि इलाके के राज्यों को तो देश का हिस्सा कहा जाता है. लेकिन यहां के लोगों के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव और जातीय हिंसा होती है.

इतिहास

देश की आजादी के करीब दो साल बाद मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि वीपी मेनन ने विलय के समझौते पर 21 सितंबर, 1949 को हस्ताक्षर किए थे. 19वीं सदी की शुरुआत तक मणिपुर की संप्रभुता बनी रही. उसके बाद वर्ष 1819 से 1825 तक बर्मा के लोगों ने इस राज्य पर कब्जा रखा था. फिर कई राजाओं ने यहां शासन चलाया. वर्ष 1891 में अंग्रेजों ने मणिपुरी सेना को पराजित कर इस राज्य पर कब्जा कर लिया. देश की आजादी तक यहां अग्रेजों का कब्जा बना रहा. देश आजाद होने के बाद महाराजा बोधचंद्र ने यहां राजकाज संभाला. लेकिन दो साल बाद ही उनको मजबूरन भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा.

सेना से सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल एच भुवन ने मणिपुर के भारतीय संघ में विलय पर अपनी पुस्तक मर्जर आफ मणिपुर में लिखा है कि 18 से 21 सितंबर 1949 यानी पूरे चार दिनों तक शिलांग में चली लंबी व थकाऊ बातचीत के बाद महाराजा बोधचंद्र सिंह को जबरन समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा. सुरक्षा के नाम पर सेना की जाट रेजिमेंट ने महाराज को उनके शिलांग स्थित रेडलैंड्स पैलेस में कैद कर लिया था. मणिपुर की संप्रभुता की वकालत करने वाले लोगों की दलील है कि दबाव या मजबूरी में कोई भी समझौता गैर-कानूनी और कानून की निगाह में अवैध होता है. ऐसे में कैद की स्थिति में जबरन हस्ताक्षर कराने की वजह से मणिपुर के विलय का समझौता भी गैर-कानूनी है. लेफ्टिनेंट कर्नल भुवन ने लिखा है कि महाराजा बार-बार दलील देते रहे कि इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले वह मणिपुर लौट कर अपने लोगों और संवैधानिक ढंग से चुनी गई सरकार के साथ इसके प्रावधानों पर विचार-विमर्श करना चाहते हैं. उसके बाद शीघ्र शिलांग लौट कर इस पर हस्ताक्षर करेंगे. लेकिन केंद्र सरकार बार-बार इस पर हस्ताक्षर पर जोर दे रही थी. आखिर महाराजा ने 21 सितंबर को उस पर हस्ताक्षर कर दिया. उस समझौते को 15 अक्तूबर, 1949 से लागू होना था. भारत और मणिपुर के राजा के बीच हुए समझौते के तहत यह राज्य भारतीय संघ के अंतर्गत आया और यहां भारत के प्रतिनिधि के तौर पर  मुख्य आयुक्त की नियुक्ति करते हुए प्रतिनिधि सभा खत्म कर दी गई.

पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.