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प्रदूषण रहित ईंधन से चलने वाले चूल्हों के नाम पर हो रहा है खेल: रिपोर्ट

डाउन टू अर्थ, 30 जनवरी

रिसर्च से पता चला है कि क्लीन कुकस्टोव के जलवायु पर पड़ते सकारात्मक प्रभावों को परियोजनाएं 10 गुना बढ़ा चढ़ाकर बता रही हैं, ऐसे में अध्ययन का दावा है कि कमजोर तबके को जहरीले धुएं से बचाने की यह लोकप्रिय योजना, उत्सर्जन के त्रुटिपूर्ण आंकलन के चलते कमजोर हो रही है।

गौरतलब है कि कमजोर देशों में खाना पकाने के साफ-सुथरे साधनों के लिए जद्दोजहद करते लोगों के लिए क्लीन कुकस्टोव यानी स्वच्छ ईंधन पर चलने वाले चूल्हे किसी वरदान से कम नहीं, जो लोगों की बुनियादी जरूरत को पूरा करने के साथ बढ़ते उत्सर्जन में कटौती करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।

आज भी दुनिया भर में करीब 240 करोड़ लोग अपना खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, केरोसीन, जैसे जीवाश्म ईंधन से चलने वाले साधनों पर निर्भर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह दूषित साधन बड़े पैमाने पर प्रदूषण पैदा करते हैं, जो हर साल असमय होने वाली 32 लाख मौतों की वजह बन रहे हैं। इतना ही नहीं इनसे पैदा होता धुआं हर साल वैश्विक उत्सर्जन में भी दो फीसदी का योगदान दे रहा है। जो जलवायु में आते बदलावों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि खाना पकाने के इन दूषित साधनों की जगह इलेक्ट्रिक कुकर जैसे स्वच्छ विकल्पों का चयन उत्सर्जन में गिरावट के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी फायदेमंद साबित हो सकता है। विशेषज्ञों को भरोसा है यह बदलाव सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण के नजरिए से भी फायदेमंद साबित होगा। इससे न केवल वायु गुणवत्ता में सुधार आएगा, साथ ही लकड़ी और ईंधन जमा करने में लगने वाले समय की बचत होगी, साथ ही वनों को होते नुकसान में भी कमी आएगी।

यही वजह है कि इन क्लीन कुकस्टोव परियोजनाओं ने कार्बन बाजार में बड़े पैमाने पर कंपनियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। जो अपने आप को कार्बन-न्यूट्रल दिखाने के लिए इन परियाजनाओं को फाइनेंस कर रही हैं, ताकि उन्होंने जो उत्सर्जन किया है वो उससे छुटकारा पा सकें।

लेकिन हाल ही में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि यह क्लीन कुकस्टोव परियोजनाएं जो कार्बन-ऑफसेट पहल का एक लोकप्रिय हिस्सा हैं वो जलवायु पर पड़ते अपने सकारात्मक प्रभावों को 10 गुणा अधिक बता रही हैं।

पूरी रपट- डाउन टू अर्थ