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प्रयागराज: कभी पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड कहलाता था, अब क्या है शिक्षा और रोज़गार का हाल

-बीबीसी,

दिलीप कुशवाहा सर इलाहाबाद में काफ़ी हिट हैं. वे नए तौर तरीकों से छात्रों को अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं, अंग्रेज़ी सीखने की चाहत रखने वालों को वे हिंदी माध्यम में अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं.

गणित की पृष्ठभूमि और सामाजिक बदलाव की दिशा में भूमिका निभाने का जुनून रखने वाले कुशवाहा बताते हैं कि वे छात्रों के बीच हिट कैसे हुए.

उनका कहना है कि ख़ास पाठ्यक्रम, पढ़ाने के दौरान उनके शारीरिक हाव-भाव, अभिव्यक्ति का अंदाज़ और हिंदी में विस्तृत व्याख्या, छात्रों में दिलचस्पी पैदा करते हैं. इससे ग्रामीण छात्रों को हिंदी के ज़रिए अंग्रेज़ी सीखने में मदद मिलती है.

बड़ी विभूतियां यहां से निकलीं

इलाहाबाद को पूर्व का ऑक्सफ़ोर्ड कहने वाले लोगों ने तीन दशक पहले शायद ही ऐसा सोचा होगा कि गाँव से आने वाले छात्र हिंदी माध्यम से अंग्रेज़ी पढ़ रहे होंगे.

30-40 साल पहले इलाहाबाद को उत्तर प्रदेश का सबसे आधुनिक शहर माना जाता था. इसकी एक वजह यहाँ मुईर सेंट्रल कॉलेज का होना रही है जिसे 1887 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के तौर पर जाना जाने लगा.

यह यूनिवर्सिटी राष्ट्रीय महत्व के शैक्षणिक केंद्र के तौर पर स्थापित हुई. यहाँ पढ़ाने वालों में फ़िराक़ गोरखपुरी और हरिवंश राय बच्चन जैसे दिग्गज शामिल रहे हैं.

इनके अलावा यहाँ से स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ कई पूर्व प्रधानमंत्री भी निकले. सुप्रीम कोर्ट के कम-से-कम सात मुख्य न्यायाधीश इस यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं.

यूनिवर्सिटी के पास ही इलाहाबाद हाईकोर्ट है जहाँ भव्य ब्रितानी शैली की बुलंद इमारत तो खड़ी है, लेकिन अब यहाँ से तेज बहादुर सप्रू, कैलाशनाथ काटजू और गोपाल स्वरूप पाठक जैसे नाम सामने नहीं आ रहे.

बदला नाम, हाल पहले ही बदला

अब बात प्रयागराज की. पिछले दिनों यह नाम एकदम अलग वजहों से सुर्ख़ियों में रहा है. यहाँ के छात्र पेपर लीक होने, परीक्षाएँ टाले जाने और भर्तियां नहीं होने के ख़िलाफ़ सड़कों से लेकर रेलवे ट्रैक पर नाराज़गी ज़ाहिर करते नज़र आए.

अपनी यूनिवर्सिटी, हाईकोर्ट और बौद्धिक संस्कृति के लिए मशहूर यह शहर अब कोचिंग सेंटरों के हब में तब्दील हो चुका है.

एक समय यह केवल नदियों का संगम नहीं था बल्कि उत्तर भारत की एक बड़ी आबादी का भी संगम था जो ज्ञान, महारत और कुछ गहराई वाला काम करने की हसरत लिए उत्तराखंड, कश्मीर और बंगाल तक से यहाँ आती थी.

समय के साथ शहर काफ़ी बदला है. 1980 के बाद प्रदेश की राजनीति में भी काफ़ी बदलाव हुआ है, मंडल की राजनीति के कई नेता इस कैंपस से निकले और सामाजिक बदलाव का असर शिक्षा पर भी दिखाई पड़ा.

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