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पराली भरे वाहनों ने मुश्किल किया चलना

हिसार. राजस्थान में सूखे के कारण पशु चारे की कमी को पूरा करने के लिए इन दिनों ट्रैक्टर ट्रालियों व अन्य चौपहिया वाहनों में धान की पराली भरकर राजस्थान ले जाया जा रहा है। इस दौरान यातायात नियमों की अनदेखी के कारण पराली वाले वाहनों के अलावा अन्य वाहन चालकों व यात्रियों का सफर भी खतरे से खाली नहीं है। इस साल मानसून की बारिश कम होने के कारण प्रदेश के साथ लगते राजस्थान के कई जिलों में खरीफ फसल का उत्पादन बहुत कम हुआ है।

इस कारण राजस्थान के इन जिलों में पशुचारे की किल्लत बनी हुई है। इसकी पूर्ति के लिए राजस्थान के पशुपालकों ने प्रदेश के जिलों की ओर रुख किया है। पराली को ढोने वाले ट्रैक्टर या अन्य चौपहिया वाहन चालक ज्यादा पैसा कमाने के लिए यातायात नियमों की पूरी तरह से अनदेखी कर रहे हैं। यह लोग पराली की भराई करते समय ओवरलोड की परवाह न करते हुए ट्राली या वाहन को पूरी तरह भर लेते हैं।


इस बारे में एक ट्रैक्टर चालक रणबीर का कहना है कि एक एकड़ की पराली का वजन 35 क्विंटल से ज्यादा होता है। उसे वाहन चालक एक ही चक्कर में ले जाना चाहता है। हालांकि वजन के हिसाब से यह लोड ज्यादा नहीं, परंतु पराली के फैलाव के कारण पूरी सड़क को घेरकर वाहन चलता है जिससे अन्य वाहन चालकों को दिक्कतें होती हैं।


नहीं होते रिफ्लेक्टर


पराली से भरे अधिकतर वाहनों के पीछे रिफ्लेक्टर नहीं लगे होते। जिस वाहन के पीछे रिफ्लेक्टर लगे भी हैं तो वह पराली के फैलाव तले दब कर रह जाते हैं। इस कारण पीछे आने वाले वाहन चालकों को साइड लेते वक्त काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर पराली ढोने के काम में लगे ट्रैक्टरों में डिपर देने का प्रबंध नहीं होता। इस कारण सामने से आने वाले वाहन चालक को भी साइड लेने का सही अंदाजा नहीं होता।


हो चुके हैं कई हादसे


पराली ढोने वाले वाहन चालकों की इन गलतियों के कारण पिछले चार दिन में ही कई हादसे हो चुके हैं। अकेले सिवानी क्षेत्र में पराली से लदे दो वाहन जल चुके हैं, वहीं हांसी रोड पर एक पराली की ट्राली पलटने से यातायात व्यवस्था कई घंटे तक बाधित रही थी। इसी प्रकार बरवाला रोड पर आए दिन कोई न कोई पराली से भरा वाहन पलटा रहता है। इस कारण शहर से जुड़े इस सबसे महत्वपूर्ण मार्ग पर भी पराली अभिशाप बनकर रह गई है।


हादसे में मर चुके चार


पराली ढोने के धंधे में लगे लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में दिन रात बिना सोए इस काम को कर रहे हैं। इसी कारण चार दिन पहने गगनदीप कॉलोनी में एक कैंटर से पराली लेने जा रहे राजस्थान के चार मजदूरों की दुर्घटना में मौत हो गई थी।


ट्रैफिक पुलिस का कहना है


इस बारे में जिला ट्रैफिक इंचार्ज देवा सिंह ने बताया कि ऐसे वाहनों के दिन के समय जिले की सड़कों पर चलने के लिए प्रतिबंध लगाया हुआ है। उन वाहनों को रात के दस बजे से लेकर सुबह सात बजे तक चलाने के आदेश हैं। जहां तक ओवरलोडिंग की बात है तो इसके लिए मंगलवार से चेकिंग शुरू की जाएगी। हादसों से बचाव के लिए वाहन चालकों को साइड में बल्ब या वाहन के पीछे रिफ्लेक्टर लगाकर चलने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है।


यह जिले बने पराली के केंद्र


राजस्थान में सप्लाई होने वाली पराली के लिए प्रदेश के उन क्षेत्रों से होती है जहां पर धान फसल की ज्यादा पैदावार होती है। इनमें मुख्य रूप से कैथल, अंबाला, कुरुक्षेत्र व करनाल जिले शामिल हैं। इस बारे में लुटाणा निवासी मामचंद बताते हैं कि इन जिलों से ही अक्सर पराली ले जाने का काम किया जा रहा है। उसने बताया कि राजगढ़ से आने वाले ट्रैक्टर मालिक करीब तीन से चार हजार रुपए एक चक्कर का किराया लेते हैं। उसने यह भी बताया कि कुछ लोगों ने इसे अपना धंधा ही बना लिया है।


पूली और तूड़ी का विकल्प बना पराली


इन पशुपालकों की आजकल पशुचारे के रूप में पराली पहली पसंद बनी हुई है। पराली का व्यापार करने वाले राजस्थान के राजगढ़ निवासी सोमबीर ने बताया कि पशुचारे के रूप में प्रसिद्ध बाजरे की पूली व गेंहू की तूड़ी का भाव आसमान पर है।


धान की एक एकड़ पराली की कीमत पांच सौ रुपए से लेकर एक हजार रुपए आसानी से मिल जाती है। एक एकड़ की पराली का वजन करीब 35 से 40 क्विंटल तक होता है। इस कारण पशुपालक बाजरे की पूली व गेंहू की तूड़ी की बजाए पराली को खरीदने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं।