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परिंदों के संग उड़कर आता बुखार--

तीन साल पहले भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को सूचित किया था कि उसके यहां बर्ड फ्लू का कोई नया मामला नहीं दिखा है, लिहाजा वह बर्ड फ्लू मुक्त देश है। ऐसी घोषणाओं के लिए डब्ल्यूएचओ की मंजूरी की जरूरत होती हो या नहीं, पर देश की राजधानी दिल्ली में बर्ड फ्लू से हुई दो दर्जन पक्षियों की मौतों ने साबित कर दिया है कि संक्रामक बीमारियों के वायरस कब और किस रूप में हमारी धरती पर पहुंच जाएं, इस बारे में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। फिलहाल राहत सिर्फ यह है कि बर्ड फ्लू के जिस प्रकार (एच5एन8) के संक्रमण से पक्षियों की मौत हुई है, वह इंसानों के लिए खतरनाक नहीं है। पर इस घटना ने पक्षियों पर सवार होकर आने वाले बुखार की आशंका के मद््देनजर वायरस की रोकथाम के उपायों की संजीदगी और दवाओं की उपलब्धता कायम रखने जैसी सतर्कता की जरूरत को एक बार फिर रेखांकित किया है।


हाल के वर्षों में इबोला जैसे खतरनाक वायरस की दुनिया भर में हुई आमद ने स्पष्ट किया है कि सख्त चौकसी बरत कर और मेडिकल साइंस की फौरन मदद लेकर ही ऐसी संक्रामक बीमारियों को रोका जा सकता है। जिन स्थानों पर प्रवासी पक्षियों का सालाना आगमन होता है, वहां स्वाभाविक ही है कि बर्ड फ्लू जैसी बीमारी उनके संग भारत चली आए। दिल्ली, राजस्थान और चंडीगढ़ (सुखना) की झीलों में हर साल हजारों-लाखों की संख्या में पेलिकन और अन्य प्रजातियों के प्रवासी पक्षी सुदूर साइबेरियाई देशों से आते हैं। दिल्ली के चिड़ियाघर में इनकी उपस्थिति पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केंद्र भी बनती है। लेकिन हजारों-लाखों प्रवासी पक्षियों में दर्जन-दो दर्जन का बर्ड फ्लू से संक्रमित होना ही एक बड़ी त्रासदी का सबब बन जाता है।
समस्या यह है कि बर्ड फ्लू पक्षियों में होने वाला ऐसा संक्रामक रोग है जिसके दो रूप इंसानों के लिए खतरनाक हैं। ये हैं एच5एन1 और एच7एन9, हालांकि फिलहाल भारत में इनसे अलग वायरस एच5एन8 की ही पुष्टि हुई है। फिर भी इस खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता कि बर्ड फ्लू के पहले दो प्रकार हमारी धरती पर पहुंचे ही न हों। ध्यान रहे कि एच5एन1 सबसे तेजी से फैलने वाला बर्ड फ्लू वायरस है। इसमें म्यूटेशन यानी उत्परिवर्तन का खतरा भी रहता है यानी यह माहौल के अनुसार रूप बदल कर इंसानों में भी तेजी से फैल सकता है। अक्सर पाया गया है कि संक्रमित पोल्ट्री में काम करने वाले इंसान इसकी चपेट में आ जाते हैं। चूंकि इस वायरस से बचाव के लिए इंसानों में पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती, ऐसे में यह आशंका रहती है कि कहीं यह महामारी बनकर इंसानों पर न टूट पड़े। सामान्य इंफ्लूएंजा जैसे लक्षणों के साथ शुरू होने वाला यह बुखार फेफड़ों में संक्रमण पैदा करता है और रोगी को निमोनिया होने के अलावा सांस लेने में भी परेशानी होने लगती है। ज्यादा गंभीर संक्रमण होने से मरीज के गुर्दे व अन्य अंग नाकाम हो जाते हैं, जिससे उसकी मौत की आशंका रहती है।


मांसाहार की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते देखा जा रहा है कि पिछले एक दशक से हमारे देश में प्राय: हर साल कहीं न कहीं बर्ड फ्लू के लक्षण दिखाई देते हैं। इस अरसे में पहली बार यह संक्रामक बीमारी 2005 में गुजरात और महाराष्ट्र में फैली थी, जिससे पोल्ट्री उद्योग का दिवाला ही निकल गया था। इसके अगले ही साल देश के विभिन्न हिस्सों में बर्ड फ्लू की आमद के साथ ही संक्रमण से निपटने के उपाय शुरू किए गए थे और करीब दस लाख पक्षियों (ज्यादातर मुर्गा-मुर्गियों) को मारा गया था। इसके बाद 2008 में एक बार फिर बर्ड फ्लू की दहशत रही थी और करीब पचास लाख पक्षियों को मार कर जलाने के बाद यह बीमारी काबू में आई थी। इसके बाद के वर्षों में पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम, मेघालय, ओड़िशा, कर्नाटक, झारखंड, बिहार, केरल, पंजाब और अब दिल्ली तक में बर्ड फ्लू ने अपने तीखे दांत दिखाए हैं।


इनमें चौंकाने वाली एक घटना वर्ष 2014 की है, जब चंडीगढ़ स्थित सुखना झील में दो दर्जन बत्तखों के बर्ड फ्लू से ग्रसित होने की जानकारी प्रकाश में आई थी। जांच में यह पाया गया कि सुखना झील के एक द्वीप पर रह रही बत्तखों में इस बीमारी के वायरस कहीं बाहर से नहीं आए थे। यानी वे उन साइबेरियाई परिंदों के संपर्क में आने से संक्रमित नहीं हुई थीं, जो सालाना प्रवास के लिए भारत का रुख करते हैं। दिसंबर 2014 के पहले पखवाड़े में एक के बाद एक चौबीस बत्तखों की मौत के बाद जब भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हाई सिक्योरिटी एनिमल सेंटर ने अपनी रिपोर्ट दी, तो उसमें एच5एन1 की पुष्टि की गई थी। इस रिपोर्ट के बाद सुखना में बची हुई करीब सौ बत्तखों को भीतरी द्वीप पर ले जाकर जलाकर मारा गया था। घरेलू बत्तखों का बिना किसी बाह्य कारण के एच5एन1 की चपेट में आना एक गंभीर मसला माना गया था। सवाल उठा कि आखिर बार-बार यह संक्रमण कहां से और कैसे आ रहा है?


ध्यान रहे कि वर्ष 2013 में जब भारत ने खुद को वैश्विक पर्यटन का सुरक्षित ठिकाना साबित करने के मकसद से खुद को बर्ड फ्लू मुक्त देश घोषित किया था, तो उस वक्त (नवंबर, 2013 में) भी छत्तीसगढ़ के अंजौरा, दुर्ग और जगदलपुर स्थित सरकारी पोल्ट्री फार्मों में बर्ड फ्लू का वायरस फैला हुआ था। तब दावा किया गया था कि वहां सभी संक्रमित मुर्गियों को जला कर जमीन में दबा दिया गया, जिससे बर्ड फ्लू का खतरा खत्म हो गया था। वैसे तो पहले भी कई बार देश के विभिन्न हिस्सों में बर्ड फ्लू फैलने के चिंताजनक समाचार मिलते रहे हैं और हर मर्तबा उस पर काबू पा लेने का दावा भी किया गया है, लेकिन पहले चंडीगढ़ की सुखना झील और अब दिल्ली की झीलों से उठे पक्षियों के बुखार की घटनाओं से साबित हो रहा है कि इस तरह के दावों में कोई न कोई खोट अवश्य रहता है।


असल में कई बार पर्यटन और पोल्ट्री उद्योग को नुकसान से बचाने के लिए ऐसी खबरें और सूचनाएं दबा दी जाती हैं या फिर उन्हें कोई और रंग दे दिया जाता है। जैसे, एकाध अवसरों पर भारत में बर्ड फ्लू संक्रमण की खबरें सामने आने पर स्थानीय प्रशासन यह कह कर बातों को झुठलाने का प्रयास करते हैं कि मुर्गों अथवा बत्तखों में बुखार के लक्षण रानीखेत नामक बीमारी की वजह हैं, न कि एवियन इंफ्लूएंजा (एच5एन1) यानी बर्ड फ्लू की वजह से। आज यह एक सच्चाई है कि बढ़ते वैश्विक व्यापार और तेज हवाई परिवहन के युग में बर्ड फ्लू, इबोला, सार्स या स्वाइन फ्लू जैसे संक्रमण महज पच्चीस घंटों के भीतर दुनिया के किसी भी हिस्से को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं। ऐसी स्थिति में यदि उस संक्रमण को रोकने के पुख्ता इंतजाम देश के दरवाजों, जैसे हवाई अड््डों पर नहीं किए जाते हैं, तो वे वायरस अपनी संहारक क्षमता का प्रदर्शन भी बखूबी कर सकते हैं।


संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य अधिकारी डेविड नेबारो कुछ वर्ष पहले यह चेतावनी दे चुके हैं कि बर्ड फ्लू वायरस एच5एन1 के कारण पचास लाख से पंद्रह करोड़ लोग तक मारे जा सकते हैं। नेबारो के मुताबिक बर्ड फ्लू की मौजूदा संहारक क्षमता ग्लोबल वॉर्मिंग और एचआइवी (एड्स) के साझा खतरे से दस गुना अधिक और तेज है। यही नहीं, यदि किसी वायरस में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) की क्षमता पैदा हो जाए, तो वह अचानक और भी ज्यादा संहारक बन जाता है। म्यूटेशन का आशय यह है कि ऐसी स्थिति में कोई वायरस एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे तक महज खांसी या छींक के जरिये भी पहुंच सकता है, उसके लिए संक्रमित मुर्गी या बत्तख का मांस खाना जरूरी नहीं रह जाता। विशेषज्ञों का मानना है कि बर्ड फ्लू के वायरस ने एंटीजेनिक छलांग (यानी एक जीव प्रजाति से दूसरी जीव प्रजाति तक फैलने वाला संक्रमण) लगा ली है और इसने इंसानों तक पहुंच का वह अंतिम दरवाजा पार कर लिया है, जो इसे सामान्य इन्फ्लूएंजा की तरह फैलने से रोके हुए था।


अभी तक माना जाता था कि जब कोई व्यक्ति बर्ड फ्लू से संक्रमित मुर्गी या बत्तख के अधपके मांस (अच्छी तरह पके मांस में इसके वायरस मर जाते हैं) का सेवन करता है, तभी वह इसकी जद में आ सकता है। लेकिन म्यूटेशन के बाद अब यह जरूरत भी खत्म हो चुकी है। ध्यान रहे कि उदारीकरण और व्यापार की ग्लोबल गतिविधियों के कारण आज कोई भी देश न तो अपनी हवाई सीमाएं बंद करने का जोखिम मोल ले सकता है और न ही हर किसी के खानपान की प्रवृत्तियों पर अंकुश लगा सकता है। बर्ड फ्लू की बीमारी ने साबित किया है कि इंसान यह मान कर निश्चिंत नहीं हो सकता कि जो बीमारियां पशु-पक्षियों को होती हैं, वे उसे नहीं हो सकतीं। भारत में इसके जब-तब आ धमकने की सूचनाओं से स्पष्ट है कि भारत इससे पूरी तरह महफूज नहीं है। दिल्ली में तत्काल चिड़ियाघर को दर्शकों के लिए बंद करके और मृत पक्षियों के नमूने जालंधर स्थित प्रयोगशाला में भेज कर जिस तरह बर्ड फ्लू की मौजूदगी की तसदीक की गई, वैसी ही सर्तकता की जरूरत हर किस्म के संक्रामक रोगों की रोकथाम में जरूरी है।