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परिवहन की मुख्यधारा बनेगा नदियों का प्रवाह- जयंतीलाल भंडारी

सड़कों को तरक्की का मानक बनाने का एक नतीजा यह हुआ कि अपने जलमार्गों को हम भूल गए, जबकि इन्हें प्राकृतिक पथ कहा जाता है। सड़कें हम बनाते हैं, इन्हें तो कुदरत ने बनाया है। यही प्राकृतिक पथ कभी भारतीय परिवहन की जीवन-रेखा हुआ करते थे। लेकिन समय के साथ आए बदलावों व परिवहन के आधुनिक साधनों के चलते बीती एक सदी में भारत में जल परिवहन क्षेत्र बेहद उपेक्षित होता चला गया। हालांकि हमारे पास 14,500 किलोमीटर जलमार्ग है, और इस विशाल जलमार्ग पर हमेशा बहती रहने वाली नदियों, झीलों और बैकवाटर्स का उपहार भी मिला हुआ है। लेकिन हम इसका उपयोग नहीं कर सके और समय के साथ इनकी क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई, जबकि जल परिवहन दुनिया भर में माल ढुलाई का पसंदीदा जरिया बना हुआ है।

पर्यावरण मित्र और किफायती होने के बाद भी भारत इस परिवहन का कोई लाभ नहीं उठा पाया है। लागत के हिसाब से देखें, तो एक हॉर्स पावर शक्ति की ऊर्जा से पानी में चार टन माल ढोया जा सकता है, जबकि इससे सड़क पर 150 किलो और रेल से 500 किलो माल ही ढोया जा सकता है। यही कारण है कि यूरोप, अमेरिका, चीन व बांग्लादेश में काफी मात्रा में माल की ढुलाई अंतर्देशीय जल परिवहन तंत्र से हो रही है। कई यूरोपीय देश अपने कुल माल और यात्री परिवहन का 40 प्रतिशत पानी के जरिये ढोते हैं।

यूरोप के कई देश आपस में इसी साधन से बहुत मजबूती से जुड़े हैं। लेकिन हमने इसे नजरंदाज कर दिया। वह भी तब, जब अपनी समस्याओं को देखते हुए हमें इसे प्राथमिकता देनी चाहिए थी। देश के अधिकांश बिजलीघर कोयले की कमी से परेशान रहते हैं। सड़क और रेल परिवहन से समय पर कोयला नहीं पहुंच पाता। ऐसे में, अंतर्देशीय जलमार्गों द्वारा कोयला ढुलाई की नियमित और किफायती संभावनाएं हैं।

हमारी कई बड़ी विकास परियोजनाएं राष्ट्रीय जलमार्गों के नजदीक साकार होने जा रही हैं। बहुत सी पनबिजली इकाइयां और नए कारखाने इन इलाकों में खुल चुके हैं। इनके निर्माण में भारी भरकम मशीनरी की सड़क से ढुलाई आसान काम नहीं है। इसमें जल परिवहन की अहम भूमिका हो सकती है। अनाज और उर्वरकों की बड़ी मात्रा में ढुलाई जल परिवहन से संभव है। जैसे, पंजाब और हरियाणा से खाद्यान्न कम कीमत पर सफलतापूर्वक जल परिवहन से पश्चिम बंगाल भेजा जा सकता है।

हमारी ज्यादातर बड़ी नदियों और उनकी सहायक नदियों के किनारे बहुत से मेले और पर्व होते हैं। इन जलमार्गों से पर्यटन के रास्ते भी खोले जा सकते हैं। अच्छी बात यह है कि अब सरकार इस पर ध्यान दे रही है। अभी तक देश में जल परिवहन साढ़े तीन फीसदी ही होता है, इसे दो साल में सात फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है। 111 नए नदी-मार्ग बनाए जाएंगे। नदियों को परिवहन की मुख्यधारा बनाने से उनके बहुत से सवाल चर्चा में रहेंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)