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पवार की नाराजगी की वजह 26 हजार करोड़ का घोटाला?

नई दिल्ली.यूपीए की सहयोगी पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के बीच खींचतान जारी है। शनिवार को मुंबई में पार्टी के नेता बैठक कर रहे हैं तो दिल्ली में पार्टी के नेता डीपी त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की। एनसीपी ने एक बार फिर साफ किया है कि वह यूपीए का हिस्सा बनी रहेगी। मुंबई एयरपोर्ट पर मीडिया से बात करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री पटेल ने इस बात से इनकार किया कि उनकी पार्टी किसी तरह का दबाव बना रही है। उन्होंने कहा, 'हम लोग यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात कर चुके हैं और कांग्रेस के किसी शीर्ष नेता ने यह नहीं कहा है कि हम यूपीए पर दबाव बना रहे हैं। अगर कोई कांग्रेसी ऐसा कह रहा है तो वह सही नहीं है।'  
इस बीच, शरद पवार के यूपीए सरकार से बाहर आने और सिर्फ बाहर से समर्थन देने की अटकलें तब तेज हो गईं जब पवार ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी। सूत्रों के मुताबिक इन चिट्ठियों में शरद पवार ने तीन मांगे ऱखी हैं। इनमें एनसीपी तारिक अनवर को राज्‍यसभा का उपसभापति बनाना, एनसीपी नेता जनार्दन वाघमारे को महाराष्‍ट्र का गवर्नर बनाया जाना और महाराष्‍ट्र के सीएम के कामकाज का तरीका बदले जाने जैसी मांग शामिल है। पवार ने लिखा है कि वे कैबिनेट से बाहर आकर सरकार को बाहर से समर्थन दे सकते हैं। एनसीपी सुप्रीमो ने इन मांगों पर फैसला करने के लिए सोमवार तक की डेडलाइन भी दे दी है।
 
लेकिन शरद पवार की नाराजगी की असली वजह क्या है? इस सवाल पर मीडिया में अटकलें लगाई जा रही हैं। टीवी चैनल टाइम्स नाउ ने दावा किया है कि महाराष्ट्र में 26 हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले और महाराष्ट्र सदन के निर्माण में 1 हजार करोड़ के कथित घोटाले की आंच से बचने के लिए यूपीए सरकार पर दबाव बना रहे हैं।  शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा में सिंचाई घोटाले को लेकर एक श्वेत पत्र भी पेश किया गया था। इसी पत्र में बीते 10 सालों में सिंचाई के नाम पर खर्च हुए 70 हजार करोड़ रुपये में से 26 हजार करोड़ रुपये के हिसाब-किताब न होने की बात कही गई है। पिछले कई सालों से महाराष्ट्र का जल संपदा मंत्रालय एनसीपी के कोटे के मंत्रियों के पास रहा है। एनसीपी ने ताज़ा आरोप पर सफाई दी है कि 26 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का शरद पवार के ताज़ा रुख से कोई लेना देना नहीं है। पार्टी का कहना है कि पवार को पृथ्वी राज चव्हाण के कामकाज को लेकर परेशानी है।  
 
इंडियन एक्सप्रेस ने यूपीए के लिए को-ऑर्डिनेशन कमिटी का गठन न होना, लवासा हिल स्टेशन प्रोजेक्ट को पर्यावरण मंत्रालय से हरी झंडी न मिलना, स्पोर्ट्स बिल में उनकी राय का अजय माकन द्वारा नजरअंदाज ठहराया जाना, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मतभेद, खाद्य सुरक्षा कानून, स्कूटर्स इंडिया के डिसइन्वेस्टमेंट का प्रफुल्ल पटेल का प्रस्ताव खारिज किए जाने जैसी वजहें पवार और प्रफुल्ल पटेल की नाराजगी की वजह के तौर पर गिनाई हैं।
 
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक पवार की नाराजगी की चार अहम वजहें हो सकती हैं। इनमें पहला-प्रणब मुखर्जी के इस्तीफा देने के बाद पवार की निगाहें रक्षा, वित्त, विदेश या गृह मंत्रालय पर टिकी हैं। दूसरा-जूनियर नेता सुशील कुमार शिंदे को लोकसभा में नेता, सदन बनाए जाने की संभावना। तीसरा-भरोसेमंद सहयोगी होने की वजह से अच्छे मंत्रालय और फैसलों में ज़्यादा भागीदारी। चौथा-कांग्रेस की अपने बूते फैसले लेने की आदत, राज्यपालों, बैंक निदेशकों की नियुक्ति में सहयोगी पार्टियों को नजरअंदाज करना शामिल है।
 
टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी कांग्रेस और एनसीपी के बीच मतभेद के लिए चार कारण गिनाए हैं। इनमें पहला कारण-तारिक अनवर को राज्यसभा का उपसभापति बनाया जाना, राज्यपाल की नियुक्ति पर फैसले में शामिल किया जाना। दूसरा-यूपीए के सहयोगी दलों के बीच को-ऑर्डिनेशन मेकैनिज्म बनाया जाना। तीसरा-कांग्रेस और एनसीपी की महाराष्ट्र ईकाई के बीच ज़्यादा सहयोग और समन्वय और चौथा-कैबिनेट में नंबर दो की कुर्सी, भले ही सार्वजनिक तौर पर एनसीपी ने इससे इनकार किया हो।