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पहाड़ जैसी चुनौतियां, उम्मीदें आसमान पर

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनने जा रही नई सरकार से सबको काफी अपेक्षाएं हैं। इस वक्त आम आदमी की सबसे बड़ी चिंता महंगाई को लेकर है। महंगाई का आंकड़ा दो अंकों के करीब पहुंच चुका है और अल नीनो के असर के कारण सूखे की आशंका बढ़ती जा रही है। ऐसे में महंगाई की चुनौती से पार पाना नई सरकार के लिए आसान नहीं होगा।

महंगाई नियंत्रण के लिए हर स्तर पर रणनीतिक प्रयत्न जरूरी होंगे। खाद्य आपूर्ति शृंखला को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण नीतिगत कदम महंगाई रोकने का अच्छा विकल्प हो सकते हैं। कीमतों के मानकीकरण और उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य नियम बदलने होंगे। बिचौलियों की मुनाफाखोरी पर नियंत्रण करके उपभोक्ताओं को राहत दी जानी होगी। उत्पादन में वृद्धि और बेहतर भंडारण सुविधाएं बढ़ाने के लिए यथेष्ठ प्रयास किए जाने होंगे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कारगर बनाकर आम आदमी तक खाद्य वस्तुएं उपयुक्त रूप से पहुंचाई जानी होंगी। सभी कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाए जाने की भी जरूरत है।

कारोबारियों एवं उद्यमियों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नई सरकार को कारोबारी माहौल सुधारना होगा। विदेशी निवेशकों का भारत में विश्वास बढ़ाना होगा। दरअसल विदेशी निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था की ओर तभी आकर्षित होंगे, जब उन्हें बुनियादी ढांचे में सुधार, विनिर्माण क्षेत्र की रफ्तार, कौशल प्रशिक्षण के सार्थक प्रयास दिखाई देंगे। इन सबके साथ-साथ पेंशन और बीमा क्षेत्र में सुधार और वित्तीय बाजारों में ज्यादा खुलापन तथा पारदर्शिता के कदम भी विदेशी निवेशकों को लुभाने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं।

नई सरकार के द्वारा निर्यात की नई रणनीति के तहत देश के निर्यातकों को दूसरे देशों में दी जा रही सुविधाओं के मद्देनजर प्रोत्साहित करना होगा। जिस तरह कई देश अपने निर्यातकों को प्रोत्साहन देने हेतु सस्ती ब्याज दरों की बौछारें कर रहे हैं, वैसी अपेक्षाएं भारत के निर्यातकों के द्वारा भी की जा रही हैं। देश में छोटे निवेश तथा बचत को प्रोत्साहित करने, उद्योग-कारोबार के लिए पूंजी की सरल उपलब्धि के लिए शेयर बाजार को मजबूत बनाना होगा।

देश के राजकोषीय परिदृश्य को सुधारने के लिए नई सरकार के द्वारा वित्तीय क्षेत्र को पूंजी मुहैया कराने के बारे में भी जल्दी सोचना होगा। इस वक्त बैंकिंग व्यवस्था जबर्दस्त दबाव में है, फंसा हुआ कर्ज नियंत्रण के बाहर निकल चुका है। बिजली और बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं को दिया गया ऋण भी बकाया हो गया है। पूंजीकरण की तीन जरूरतों को पूरा करना अनिवार्य हो चला है। सरकार को जनकल्याण से जुड़ी पात्रता योजनाओं को तार्किक बनाने की दिशा में काम करना होगा।

नई सरकार सब्सिडी की व्यावहारिकता पर भी विचार कर सकती है। अगले दो-तीन वर्षों में डीजल पर सब्सिडी और रसोई गैस पर सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना तैयार करने पर भी सरकार को विचार करना चाहिए। मगर ऐसी किसी सब्सिडी को हटाने से गरीबों के हितों पर होने वाले कुठाराघात से उन्हें बचाने की योजना की भी सख्त जरूरत होगी। कराधान प्रणाली में सुधार के साथ-साथ राजस्व संग्रह में बढ़ोतरी के लिए स्पष्ट कार्ययोजना पेश करनी होगी। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और प्रत्यक्ष कर संहिता को लागू करने की दिशा में त्वरित कदम उठाने होंगे। इन सबके साथ-साथ विदेशों से कालेधन को लाने के लिए भी सुनियोजित रूप से कदम उठाने होंगे।

आर्थिक वस्तुस्थिति को नजरंदाज कर नई सरकार से बहुत अधिक आर्थिक अपेक्षाएं करना भविष्य में आर्थिक निराशा की वजह बन सकता है। देखना है, किन-किन वर्गों की कितनी आर्थिक अपेक्षाएं कब पूरी होंगी?