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पहाडी राज्य को आर्थिक विकास की सीढी चढायेगा आंवला

देहरादून : मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने वाला तथा शारीरिक शक्ति का स्रोत तमाम औषधीय गुणों से युक्त ‘‘आंवला’’ अब पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में न केवल किसानों बल्कि इसके उत्पाद से जुडे व्यापारियों को भी आर्थिक विकास की सीढियां चढाने में कारगर साबित होगा.

राज्य औषधि पादप बोर्ड के उपाध्यक्ष डा आदित्य कुमार ने बताया कि उत्तराखंड में वर्तमान में आंवले की खेती समुद्रतल से करीब 4500 फ़ुट की उंचाई तक की जा रही है और इसकी कई नवीन प्रजातियों को भी विकसित किया गया है. राज्य में प्राकृतिक रूप से बहुतायत में पाये जाने वाले आंवला के संरक्षण के लिये विशेष व्यवस्था की जा रही है. उन्होने बताया कि आंवले का प्रयोग त्वचा रोग, नेत्र रोग, पेट रोग, पाचन तंत्र, श्वास समस्याओं के निवारण के लिये किया जाता है. आयुर्वेद में इसे अमृत फ़ल तक बताया गया है.

उन्होंने कहा कि आंवले की उन्नत किस्मों की प्रजातियों में एक पेड पर औसतन 50 किलोग्राम तक आंवला पैदा हो जाता है. आंवले के एक फ़ल का वजन सामान्यतया 60 से 75 ग्राम तक हो सकता है. एक अच्छी देखरेख युक्त वृक्ष कम से कम 50 वर्ष तक आंवला प्रदान करता है . इसके माध्यम से राज्य के किसान अब अपनी आर्थिक स्थिति को लगातार मजबूत बना रहे हैं. आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. कुमार ने कहा कि राज्य में औषधीय गुणों से युक्त आंवले का उत्पादन बढाने का कार्य मुख्यमंत्री जडी बूटी विकास योजना के तहत किया जा रहा है जिससे इसके उत्पादन में लगे किसानों को न केवल अधिक आमदनी होगी बल्कि इसके व्यापार से जुडे लोगों को भी काफ़ी लाभ होगा . इससे इस राज्य के आवंला किसानों की आर्थिक स्थिति में गुणात्मक सुधार भी होगा.

उन्होने कहा कि आवंले पर किये गये शोध के अनुसार आंवले में विटामिन के तमाम तत्व पाये जाते हैं . इसमें मुख्य रूप से गौलिक अम्ल, टानिक अम्ल, सेल्यूलोज, कैल्शियम, पैक्टीन, ग्लूकोज तथा एस्कोर्बिक अम्ल शामिल है . इसमें टेनिक की मात्रा भी अच्छी खासी होती है . इसके फ़ल में 28 प्रतिशत, छाल में 21 प्रतिशत, तने में आठ से नौ प्रतिशत, पत्तियों में 22 प्रतिशत तथा बीज में करीब 16 प्रतिशत प्राकृतिक तेल की मात्रा होती है.

राज्य के कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि राज्य में अन्य जडी बूटी के विकास के साथ साथ आंवले के अधिक से अधिक उत्पादन के लिये राज्य सरकार ने कई योजनायें शुरू की हैं . अभी तक उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ जिला आंवला उत्पादन के लिये पूरे देश में विख्यात था लेकिन अब उत्तराखंड के आंवले ने पूरे देश में अपनी धाक जमानी शुरू कर दी है. राज्य के कृषि मंत्री ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आंवला और इसके औषधीय तथा व्यावसायिक उपयोग के लिये ‘‘आंवला अभियान’’ शुरू किया गया है . इस अभियान के तहत आंवले के प्राकृतिक तरीके से सुनियोजित दोहन तथा ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति से जोडने के लिये राज्य के प्रत्येक जिले में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.

रावत ने बताया कि एक आकलन के अनुसार करीब 1200 वर्ग फ़ुट में लगाये गये आंवले के पौधे से पांच हजार रूपये प्रतिवर्ष की आमदनी हो सकती है . इस अभियान को प्रोत्साहित करने के लिये आंवला उत्पादन एसोसियेशन की स्थापना को भी बढावा दिया जा रहा है . उन्होने बताया कि इस अभियान के तहत प्रत्येक जिले के कम से कम 10 हेक्टेयर क्षेत्र में आंवले के पौधे का रोपण किया जायेगा और इसके लिये क्लस्टर चिन्हित कर दिये गये हैं.

आंवले से बनने वाले उत्पादों में त्रिफ़ला चूर्ण, आरोग्यवर्धनी वटी, रक्तशोधकवटी, गुग्गुल, चित्रहरीतिकी अवलेह, च्यवनप्राश, आमलकी रसायन, घात्रिलौह औषधियों के उत्पादन से लोगों को रोजगार तो मिलता ही है और इसके साथ ही अच्छी खासी आमदनी भी होती है . इसके अतिरिक्त आंवले से सौंदर्य प्रसाधन, तेल, हेयर डाई तथा शैम्पू का भी उत्पादन किया जा रहा है.

उन्होने बताया कि राज्य के पिथौरागढ, बागेश्वर, रूद्रप्रयाग, देहरादून, चमोली, नैनीताल, चम्पावत, पौडी, टिहरी तथा अल्मोडा जिलों में गर्मी के समय करीब 4500 फ़ुट की उंचाई पर इसका उत्पादन किया जाता है. उत्तराखंड में आंवला स्थानीय लोगों को आर्थिक विकास की सीढी चढाने के लिये एक कारगर फ़ल साबित हुआ है . इसके उत्पादन में हाल के दिनों में सैकडों लोग जुडे हैं जिससे उनको रोजगार के साथ साथ अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है .