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पानी के बंटवारे से होगा लाभ- भरत झुनझुनवाला

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पंजाब द्वारा सतलुज यमुना लिंक नहर पर यथास्थिति बनाये रखी जायेगी. विवाद पुराना है. पंजाब तथा हरियाणा के बीच सतलुज नदी के पानी के बंटवारे को लेकर बहुत पहले समझौता हुआ था, परंतु पंजाब सरकार ने समझौता मानने से इनकार कर दिया था.

पंजाब सरकार द्वारा समझौते को रद्द करने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से लटका हुआ है. राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को प्रशासनिक स्तर पर किया जा रहा है. न्यून पानी लिया जाये तो भी पंजाब के लिए वह कष्टप्रद हो जाता है. अधिक पानी दिया जाये, तो भी हरियाणा के लिए वह अपर्याप्त रहता है. किसी भी तरह दोनों राज्य संतुष्ट नहीं हैं. बिहार में भी असंतोष है कि गंगा के संपूर्ण पानी को सिंचाई के लिए उत्तर प्रदेश को दे दिया गया है.

पंजाब में पानी का जरूरत से अधिक उपयोग हो रहा है. नहर के पानी का मूल्य खेत के क्षेत्रफल के हिसाब से लिया जाता है. अमुक खेत में नहर के पानी का मूल्य चुका देने के बाद किसान मुक्त होता है कि वह एक सिंचाई करे या दस सिंचाई करे.

एक एकड़ खेत में अतिरिक्त सिंचाई से पंजाब के किसान को मात्र 50 किलो गेहूं की अतिरिक्त फसल मिले, तो भी उसके लिए ऐसी अतिरिक्त सिंचाई करना लाभप्रद होता है, चूंकि उसे इस सिंचाई का मूल्य अदा नहीं करना होता है. ज्ञात हो कि फसल को पहली सिंचाई से उत्पादन में वृद्धि अधिक होती है. सिंचाई की संख्या में वृद्धि के साथ उत्पादन में वृद्धि कम होती जाती है.

अब पंजाब के किसान द्वारा दसवीं सिंचाई पर विचार करें. इस सिंचाई से पंजाब के किसान को 50 किलो की अतिरिक्त पैदावार मिल रही है.

इसी दसवीं सिंचाई का पानी यदि हरियाणा को दे दिया जाये, तो उससे हरियाणा में 300 किलो उत्पादन होगा. कारण है कि पंजाब में वर्तमान में दस सिंचाई हो रही है, जबकि हरियाणा में केवल एक सिंचाई की जा रही है. पंजाब को दसवीं सिंचाई के पानी को देने से नुकसान 50 किलो का होगा, जबकि हरियाणा को दूसरी सिंचाई का पानी मिलने से लाभ 300 किलो का होगा. देश को 250 किलो का लाभ होगा.

इस परिस्थिति में हरियाणा के लिए लाभप्रद होगा कि एक सिंचाई के पानी के लिए वह 100 किलो गेहूं का दाम पंजाब के किसान को अदा कर दे. हरियाणा के किसान को लाभ 300 किलो का होगा. 100 किलो का दाम वह पंजाब को अदा कर दे, तो भी उसे 200 किलो का शुद्ध लाभ मिलेगा. पंजाब के किसान के लिए भी यह व्यवस्था लाभप्रद होगी. दसवीं सिंचाई से उसकी फसल को लाभ 50 किलो का होना था. उस पानी के एवज में उसे हरियाणा से 100 किलो का मूल्य मिल जायेगा. इससे पंजाब तथा हरियाणा दोनों के किसान खुशहाल हो सकते है.

पंजाब के किसान के लिए पानी को छोड़ना घाटे का सौदा है. इसलिए जरूरी है कि किसान से पानी का मूल्य क्षेत्र के आधार पर वसूल करने के स्थान पर मात्रा के आधार पर वसूला जाये. तब हरियाणा द्वारा पानी का अधिक मूल्य चुकाना स्वीकार होगा और देश के लिए लाभप्रद होगा कि उस पानी को पंजाब से लेकर हरियाणा को दे दिया जाये.

किसान घाटे से जूझ रहे हैं. आत्महत्या कर रहे हैं. उन पर पानी के मूल्य का अतिरिक्त बोझ डालना अनुचित होगा. वर्तमान में गेहूं का समर्थन मूल्य लगभग 1,500 रुपये प्रति क्विंटल है. पानी का मात्रात्मक मूल्य वसूल करने से किसान पर 200 रुपये प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. सरकार को चाहिए कि गेहूं के समर्थन मूल्य में 200 रुपये की वृद्धि कर दे. तब पंजाब के किसान को पानी का मात्रात्मक दाम अदा करने में कठिनाई नहीं होगी. उसके द्वारा स्वयं ही पानी का कम उपयोग किया जायेगा और बचे पानी को हरियाणा को दिया जा सकेगा.

गेहूं के समर्थन मूल्य में वृद्धि का प्रभाव शहरी लोगों पर पड़ेगा. वर्तमान में खेती से जीवनयापन करनेवाले केवल 25 प्रतिशत लोग हैं. ये स्वयं अनाज उपजाते और खाते हैं. गेहूं के समर्थन मूल्य में वृद्धि से शेष 75 प्रतिशत जनता को महंगा अनाज खरीदना होगा. हल है कि देश की आम जनता की दिहाड़ी में समतुल्य वृद्धि की जाये. जैसे मान लीजिए समर्थन मूल्य में वृद्धि का एक परिवार पर 10 रुपये प्रतिदिन का भार पड़ता है. ऐसे में मनरेगा की दिहाड़ी में 10 रुपये की वृद्धि कर दी जाये, तो गरीब के लिए इस भार का वहन करना सुलभ हो जायेगा.

सरकार को चाहिए कि सिंचाई के पानी का मात्रात्मक दाम वसूल करे. इससे किसान पर पड़नेवाले प्रभाव के समतुल्य खाद्यान्नों के समर्थन मूल्य में वृद्धि करे. इस मूल्य वृद्धि का गरीब पर पड़नेवाले प्रभाव के समतुल्य मनरेगा की दिहाड़ी में वृद्धि करे. तब ही पानी का समुचित वितरण हो सकेगा. पंजाब और हरियाणा दोनों के किसान खुशहाल हो जायेंगे.