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पानी के लिए कोई नहीं पानी-पानी

पटना पानी चीज ही अजीब है। पानी चढ़ता है, उतरता है..पानी जमता है। टंकी पर चढ़ने वाला पानी कभी सिर पर भी चढ़ जाता है। पानी से आदमी पानी-पानी भी होता है। लेकिन सूबे में जल संचयन के लिए बने कानून को लागू करने में प्रशासन खुद पानी-पानी है। यही वजह है कि अब तक सख्ती से यह लागू नहीं हो सका है और भूजल-वाटर रिचार्ज के साथ ही रेनवाटर हार्वेस्टिंग का पूरा सिस्टम जमीन पर नहीं उतर पाया है।

प्रावधान : 2006 में भवन निर्माण उप विधि में संशोधन कर राज्य सरकार ने प्रावधान बनाया कि अगर आप सौ वर्ग मीटर से ज्यादा एरिया में नया मकान बनाते हैं तो प्लान में वर्षा जल संचयन का प्रावधान दिखाना होगा। मकान में दो तरह का जलस्रोत बनाने का नियम बनाया गया है। एक स्रोत ट्रीटेड वाटर सप्लाई का तो दूसरा सामान्य जल। यह तय किया गया है कि जो भी नये मकान बनाये जाएंगे, उसमें रसोई के कामकाज तथा पेयजल के अलावा वाटर कूलर, कार वाशिंग, गार्डन आदि के लिए सामान्य जल का उपयोग किया जाए। जल का दूसरा स्रोत इस्तेमाल में लाये गये पानी की रिसाइकलिंग और फिर उसकी आपूर्ति से जुड़ा है।

थोड़ा भिन्न है बिहार : बिहार की बात करें तो बड़ा इलाका हर साल नदियों में आने वाली बाढ़ की तबाही झेलता है। उत्तर बिहार के कुछ ऐसे इलाके भी हैं जहां दस फीट पर ही पानी निकल आता है। मगर मध्य बिहार में कम पानी वाले ऐसे इलाके भी हैं जहां गर्मी के दिनों में जलस्तर गिरने से जलापूर्ति के स्रोत, चापाकल बेकार साबित हो जाते हैं।

सिंगापुर की तकनीक : बिहार सरकार ने हाल ही में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए सिंगापुर के पब्लिक यूटीलिटी बोर्ड से मदद से ली है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे बीते वर्ष सिंगापुर गये थे और वहां के अधिकारियों के साथ बैठक के बाद तय हुआ कि जैसे सिंगापुर में व्यवस्था है उसे बिहार में भी अपनाया जाए। सिंगापुर से भी तकनीकी विशेषज्ञों का दल बिहार आया और यहां के इंजीनियर भी वहां भेजे गये। इसी आधार पर सरकार ने जलनीति बनाने की घोषणा की है। इसका ड्राफ्ट अभी जनता के सामने आने वाला है। पायलट परियोजना के तहत बक्सर में राज्य सरकार ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग का प्रोजेक्ट शुरू किया है, पर अभी इसके नतीजे का अध्ययन किया जा रहा है।

घटते जलस्तर से खतरा : घटते भूमिगत जलस्तर ने भारत के साथ ही दुनिया भर में पानी के संकट को लेकर लोगों की चिंता बढ़ा दी है। मौसम में परिवर्तन और घटते जलस्तर से हो रहे खतरे को देखते हुए पर्यावरणविदों की भविष्यवाणी है कि अगला विश्ववयुद्ध पानी को लेकर होगा। शौचालय में पांच लीटर पानी बहा देने वाले लोगों को इसका महत्व अभी समझ में नहीं आ रहा। मगर दूर दृष्टि रखने वाले विद्वतजन आने वाली परेशानियों को लेकर अभी से सक्रिय हो गये हैं।

पटना में भी कई माडल : पटना में तरुमित्र संस्थान, एएन कालेज में अभी इसके माडल तैयार किये गये हैं। दैनिक जागरण ने भी समय-समय पर इसके लिए कई शिविर और परिचर्चा का आयोजन कर वर्षा जल संचयन की तकनीक और संकल्पना से लोगों को अवगत कराया है।

जरूरत है आबिद सूर्ती की : सरकारी स्तर पर कागजों में कानून बन रहे हैं मगर ख्यातिनाम कार्टूनिस्ट आबिद सूर्ती की तरह जब तक आम आदमी में जागरुकता नहीं आयेगी तब तक हम मुकाबले के लिए अपने को तैयार नहीं कर सकते। आबिद सूर्ती की लगन कहें या दीवानगी। हाथ में चंद औजार लेकर लोगों का दरवाजा खटखटाना और टपकते हुए नलों को ठीक करना उनका शौक है। अपने अभियान में कुछ और लोगों को जोड़ कर उन्होंने पानी के बेहिसाब बहने पर मुंबई में लगाम लगायी।