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पालीथीन खा रहे हिरण, मारे फिर रहे चीतल-सांभर

बगहा [प.चंपारण, संजय कुमार उपाध्याय]। राज्य की इकलौती व्याघ्र परियोजना वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में हरित भूमि [ग्रास लैंड] की कमी से जंगल का कानून तो धराशायी हो ही गया है, इको टूरिज्म के फेल होने का भी खतरा बढ़ गया है। घास नहीं मिलने से जानवरों के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ गई है। शाकाहारी जानवर पर्यटकों की फेंकी पालीथीन खाकर जीवन जोखिम में डाल रहे हैं तो मांसाहारी जानवरों को पूरी खुराक नहीं मिलने से कुपोषण जनित कई तरह की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। यहां 'ग्रास लैंड' के विस्तार की कोई कवायद नहीं की गई है।

ग्रास लैंड के नहीं रहने से जंगल के शाकाहारी जानवर हिरण, चीतल व सांभर मारे-मारे फिर रहे हैं। वे कभी दियारा की ओर जाते हैं तो कभी गांव की ओर रुख कर लेते हैं। नतीजा, वे असमय काल के गाल में समा जाते हैं और मांसाहारी जानवर [बाघ] को उसका शिकार नहीं मिल पाता है। आलम यह है कि जंगली जानवरों के इस भोजन संकट को वन निगम गंभीरता से नहीं ले रहा है। इसे लेकर कोई कार्ययोजना भी नहीं है। वन अधिकारी थोथी बयानबाजी कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। लंबे समय तक स्थिति ऐसी ही बनी रही तो घास के बिना व्याघ्र परियोजना के जानवर तिल तिल कर दम तोड़ दें तो कोई आश्चर्य नहीं।

इधर, जंगल पर मानवीय दबाव तेजी से बढ़ा है। टाइगर रिजर्व के नियमों को ताक पर रखकर इस जंगल में लोग पिकनिक मनाते हैं और जंगल में पालीथीन, प्लास्टिक के ग्लास आदि फेंक देते हैं। जानकार बताते हैं कि जंगल में फेंका जाने वाला ठोस अवशिष्ट जानवरों के लिए प्राणघातक है। 2008 में इसका प्रमाण तब मिला था जब टाइगर रिजर्व के जटाशंकर वन परिसर में एक गाय की मौत हो गई और उसके पेट से भारी मात्रा में पालीथीन निकला था।

विभाग के पास जंगल में जमा पालीथीन व ग्लास हटाने की योजना नहीं है। इस टाइगर रिजर्व के जंगल में कई देवी-देवताओं के सिद्ध पीठ भी हैं। पूजा करने वाले लोग पालीथीन में रखकर पूजन सामग्री लाते हैं। इनमें गुड़ व मिठाई होती है। लोग पालीथीन जंगल में हीं फेंक जाते हैं। नतीजन जहां पालीथीन पड़ा रहता है, वहां घास तो उपजता ही नहीं, पालीथीन ही मवेशी खा जाते हैं।

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के सहायक प्रबंधक समीर कुमार सिन्हा बताते हैं कि पालीथीन जंगल के जानवरों के लिए प्राणघातक है। बाघ की जो प्रवृत्ति है उसके अनुसार जब मांस से बदबू आती है तो बाघ उसकी ओर आकर्षित होते हैं। यदि गलती से भी बाघ फेंके गए पालीथीन ग्लास में लगे मांस की दुर्गध पर आते हैं और उसे खा जाते हैं तो वह पालीथीन उनके फेफड़े में जाकर फंसेगा और वे असमय काल के शिकार होंगे। ऐसे में जंगल से इस ठोस अवशिष्ट को हटाना अति आवश्यक है।

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के सीएफ जेपी गुप्ता कहते हैं कि विभाग के पास ऐसी कोई योजना नहीं है, जिसके सहारे पालीथीन व प्लास्टिक ग्लास की सफाई कराई जा सके। इसके लिए लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाया जाता है। जगह-जगह बोर्ड लगाए गए हैं। समय रहते इस पर प्रभावी रोक लगाने की कवायद की जाएगी।