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पिछड़े राज्य का दर्जा पाएंगे यूपी-बिहार

नई दिल्ली [नितिन प्रधान/जयप्रकाश रंजन]। पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा गढ़ कर केंद्र सरकार ने एक नया राजनीतिक दांव चलने का मन बना लिया है। बहुत संभव है कि अगले कुछ हफ्तों के भीतर जब पिछड़े सूबों की नई परिभाषा तय की जाए तो उसमें बिहार केसाथ ही उत्तर प्रदेश तथा कुछ अन्य बड़े राज्य भी शामिल हो जाएं। पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा तय करने के लिए गठित समिति ने शनिवार को अपनी सिफारिशों का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। इसके मुताबिक कुल 120 संसदीय सीटों [40 बिहार, 80 उप्र] वाले ये दोनों राज्य पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आ जाएंगे। इसका सीधा मतलब है कि इनके विकास के लिए केंद्र के खजाने की थैली का मुंह काफी बड़ा खुलेगा।

वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार और आरबीआइ के नवनियुक्त गवर्नर रघुराम राजन की अध्यक्षता वाली समिति की शनिवार को अंतिम बैठक हुई। समिति ने पिछड़े राज्यों की परिभाषा तय करने के लिए 11 मापदंड तय किए गए हैं। इसमें प्रति व्यक्ति आय, प्रति व्यक्ति खर्च और राज्य में गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों की संख्या को प्रमुख स्थान मिलेगा। इनके अलावा भी आठ मापदंड होंगे। इनमें स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों की स्थिति का भी महत्व होगा। लेकिन उक्त तीनों मापदंडों के आधार पर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य आसानी से पिछड़े सूबों की श्रेणी में आ जाएंगे। जाहिर है कि आगामी लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इस नई परिभाषा के जरिये संप्रग सरकार एक और बड़ा राजनीतिक दांव खेलना चाहती है।

सूत्रों के मुताबिक 11 मापदंडों के आधार पर विकास के नए संकेतक तैयार किए जाएंगे। इनमें सभी राज्यों की उनके प्रदर्शन के आधार पर सूची तैयार होगी। सूची में सबसे नीचे रहने वाले चुनिंदा सूबों को पिछड़ा राज्य माना जाएगा। यह सरकार तय करेगी कि निचले स्थान पर रहने वाले कितने राज्यों को पिछड़ा माना जाए। रिपोर्ट अगले एक पखवाड़े के भीतर सौंप दी जाएगी। समिति के सदस्यों के बीच सभी प्रमुख मुद्दों पर सहमति बन गई है। पिछड़ा राज्य तय करने में किस मापदंड का कितना महत्व होगा, यह तय किया जाना है। इस बारे में जल्द अंतिम फैसला हो जाएगा।

पिछड़े राज्यों की नई परिभाषा तय करने के लिए यह समिति पिछले आम बजट के बाद वित्त मंत्रालय ने बनाई थी। माना जाता है कि राजनीतिक वजहों को ध्यान में रख कर ही नई परिभाषा तय की जा रही है। इससे भाजपा से अलग हो चुके बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कांग्रेस की नजदीकियां और प्रगाढ़ हो सकती हैं। साथ ही सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस को अपनी जड़ दोबारा जमाने में मदद मिल सकेगी। पिछड़े राज्यों की सूची में शामिल होने वाले सूबों को केंद्र सरकार की तरफ से कई तरह के अनुदान व आर्थिक सहायता मिलती हैं। आगामी चुनाव में कांग्रेस इस बात को भुनाने की कोशिश करेगी। यही नहीं, छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडीशा, पश्चिम बंगाल भी इन राज्यों की सूची में शामिल हो सकते हैं।

मौजूदा नियमों के मुताबिक पहाड़ी क्षेत्र वाले, अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े, बेहद खराब बजटीय स्थिति, आदिवासी व जनजातीय समूहों की ज्यादा आबादी वाले राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिलता है। अभी देश के 28 राज्यों में से 12 को यह विशेष दर्जा हासिल है। जाहिर है कि अब यह परिभाषा पूरी तरह से बदल दी जाएगी।