Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/पितृसत्ता-का-हिंसात्मक-उत्सव-राजू-पांडेय-12252.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | पितृसत्ता का हिंसात्मक उत्सव--- राजू पांडेय | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

पितृसत्ता का हिंसात्मक उत्सव--- राजू पांडेय

जब महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पिछले साल बयान दिया था कि बलात्कार के मामलों में भारत उन चार देशों में सम्मिलित है, जहां सबसे कम बलात्कार होते हैं, तो उनकी बड़ी आलोचना हुई थी। हालांकि मेनका गांधी का कथन अंशत: सही था। प्रति एक लाख जनसंख्या पर होने वाले बलात्कार के प्रकरणों की दर की बात करें तो भारत में इसकी दर 2.6 है। उनतीस अन्य देश ही ऐसे हैं, जहां यह दर इससे भी कम है। इसलिए इन आंकड़ों में भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर लगती है। आंकड़ों की अपनी दुनिया होती है और इसकी सीमाएं भी होती हैं। लेकिन कई बार ये हमारी धारणा को चुनौती देते हैं और हमें झकझोरते भी हैं। जब हमें यह ज्ञात होता है कि 95.5 प्रतिशत बलात्कार पीड़िताएं बलात्कारियों को जानती हैं और वे इनके परिजन, परिचित, सहकर्मी और मित्र ही होते हैं, तो हमें आश्चर्य होता है। विश्व के विकसित देशों में बलात्कार की ऊंची दर शायद हमें इन देशों की भोगवादी संस्कृति की निंदा और हमारे देश की आध्यात्मिकता का गौरवगान करने का अवसर प्रदान कर दे, पर जब हम विभिन्न बाबाओं के यौन शोषण की शिकार सैकड़ों महिलाओं को देखते हैं तो हमें उस भयानकता का बोध होना चाहिए, जो इसमें अंतर्निहित है। धार्मिक और सामाजिक स्थिति का लाभ लेकर बलात्कार पीड़िताओं का किसी बाबा या निकट संबंधी ने जब पहली बार यौन उत्पीड़न किया होगा, तब इनकी ओर से शायद क्षीण-सा प्रतिरोध देखने को मिला होगा, पर इसके बाद इन्हें अनुकूलित कर आत्महीनता के उस चरम बिंदु तक पहुंचाना कि वे न केवल इस यौन शोषण को अपनी नियति मान कर स्वीकार कर लें, बल्कि इसमें आनंद भी ढूंढ़ने लगें, नृशंस और अमानवीय है। न जाने कितनी ही महिलाएं होंगी, बलात्कार जिनकी दिनचर्या का एक भाग बन गया होगा और वे इस तरह इसकी अभ्यस्त हो गई होंगी कि इसकी भयानकता का बोध तिरोहित हो जाए।
 

बलात्कार होते क्यों हैं? मनोवैज्ञानिकों की राय आम धारणा से भिन्न है। हम समझते हैं बलात्कार यौन सुख प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं, पर मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बलात्कार हिंसात्मक आधिपत्य स्थापित करने और परपीड़क आनंद प्राप्त करने के मकसद से अधिक होते हैं। इनमें बलात्कार पीड़िता का एक वस्तु की भांति इस्तेमाल किए जाने की प्रवृत्ति देखी गई है। बलात्कार सामाजिक और आर्थिक गुलामी तथा इससे जुड़े दमन,प्रताड़ना और अपमान की अंतिम परिणति है। पुरुष प्रधान और पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था के अलावा जातीय और धार्मिक प्रतिद्वंद्विता भी बलात्कारों का कारण बनती है और बलात्कार को प्रतिशोध, दंड या विजयोद्घोष के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। शारीरिक क्षति पहुंचाने वाला और प्राणघातक बलात्कार अनेक बार इन्हीं जातीय- धार्मिक संघर्षों की परिणति होता है। पोर्न फिल्मों और पोर्न साहित्य को बढ़ते बलात्कारों के लिए दोषी माना जाता है। हमारे देश में सेक्स को स्वस्थ सार्वजनिक विमर्श के दायरे से बाहर रखा गया है, घर परिवार और समाज में स्त्री का दमन सामान्य बात है और पुरुषों में सामंती अहंकार प्रबलता से जीवित है, इसलिए इंटरनेट और अन्य माध्यमों से प्राप्त पोर्न के घातक प्रभाव पड़ने स्वाभाविक हैं। भारत जैसे देश में जहां स्त्री के लिए विवाहपूर्व यौन संबंध सामाजिक रूप से वर्जित हैं, उससे विवाह तक अपने कौमार्य की रक्षा करने की अपेक्षा की जाती है और जहां यौन समागम को अनावश्यक रूप से नैतिक व्यवहार और शुचिता के आकलन की अंतिम कसौटी बना कर रखा गया है उससे यह आशा करना व्यर्थ है कि वह बलात्कार की शिकायत करने का साहस जुटा पाएगी। पुरुषों के लिए ये पाबंदियां नहीं हैं और वे इन पाबंदियों का उपयोग स्त्री के भयादोहन और उसकी चरित्र हत्या के लिए करते रहे हैं।

 

 

आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में बलात्कार पीड़ित महिलाओं में से लगभग आधी संख्या युवा महिलाओं (अठारह से तीस वर्ष) की होती है। लेकिन शेष पचास प्रतिशत महिलाओं का विवरण चौंकाने वाला है। इनमें एक बड़ी संख्या अबोध बालिकाओं, किशोरियों, अधेड़ और वृद्ध महिलाओं की है। छह वर्ष से कम उम्र की बालिकाएं और साठ वर्ष से अधिक आयु की वृद्धाएं भी बलात्कार की शिकार बनाई गई हैं। इन आंकड़ों को देख कर ऐसा नहीं लगता कि स्त्री के परिधानों का उसके बलात्कार का शिकार होने से कोई संबंध है। पर बलात्कार से जुड़ा परिधानों का एक लंबा-चौड़ा विमर्श है, जो घोर पारंपरिकता और उग्र स्त्रीवादी आधुनिकता के मध्य झूलता है।इस दृष्टिकोण का विस्तार स्त्री को रात में अकेले घर से न निकलने और पुरुष यात्रियों से भरी टैक्सी में न बैठने आदि का परामर्श देता है। इसके पीछे तर्क यह है कि स्त्री का आधुनिक पोशाक पहनना, रात में घूमना आदि नैतिक दृष्टि से भले सही हों, पर व्यावहारिक दृष्टि से गलत हैं, क्योंकि हमारा समाज अभी इतना विकसित नहीं हो पाया है। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे पुलिस प्रशासन और सरकार की उपस्थिति के बावजूद हम अपने कीमती सामानों को छिपाकर रखते हैं, पार्टियों और यात्रा में कीमती गहने नहीं पहनते और रात में सुनसान इलाकों की यात्रा से बचने की कोशिश करते हैं। यह दृष्टिकोण स्त्री की कमजोर शारीरिक बनावट और यौन मुठभेड़ में पुरुष की आक्रामक भूमिका का भी हवाला देता है।
 

 

 


सामाजिक मनोविज्ञान के विशेषज्ञों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो बलात्कार के लिए जिम्मेदार ठहराने की प्रक्रिया में लिंग भेद की भूमिका देखता है। इसके अनुसार बलात्कार हमेशा पुरुषों द्वारा स्त्रियों पर किया जाता है, इस कारण जिम्मेदारी तय करने में स्त्रियों की सहानुभूति पीड़िता के प्रति होती है और वे पुरुष को ही दोषी मानती हैं तथा उसे दंडित कराना चाहती हैं। जबकि पुरुषों की सहानुभूति बलात्कारी के प्रति होती है और वे उसे निर्दोष मान कर उसे बचाने का यत्न करते हैं। स्त्रीवाद से संबंधित अनेक गहरे दार्शनिक प्रश्न भी हैं, जिन पर चर्चा आवश्यक है। क्या आधुनिकता स्त्री की समस्याओं का समाधान है? क्या स्त्री का आधुनिकता बोध पुरुषवाद की छाया से मुक्त है? क्या स्त्री की मुक्ति पुरुष जैसा बनने में है? क्या लैंगिक समानता का दर्शन स्त्री को पुरुष के बराबर खड़ा कर उसकी अद्वितीयता को नष्ट नहीं करता? क्या फैशन, मॉडलिंग और फिल्म उद्योग के प्रति बढ़ता आकर्षण जीवन के हर क्षेत्र को अपने मौलिक तरीके से गढ़ने में सक्षम स्त्री को केवल एक सुंदर शरीर और उसके इर्दगिर्द बुने गए संसार तक सीमित नहीं कर रहा है? क्या स्त्री की आजादी उपभोगवादी समाज के पुरुष उपभोक्ताओं के पास अपनी देह का सौदा मनचाही कीमत में मनचाही शर्तों पर करने में निहित है? क्या स्त्री पुरुष का विलोम शब्द मात्र है? क्या उसकी स्वतंत्र सत्ता नहीं है?बलात्कार पुरुषप्रधान-पितृसत्तात्मक समाज के लिए स्त्री पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का एक हिंसक उत्सव है। पुरुष समाज स्त्री पर अपना वर्चस्व आसानी से नहीं छोड़ेगा। बलात्कार के विरुद्ध लड़ाई स्त्री को ही लड़नी होगी। यह तभी संभव होगा जब स्त्री अपनी अद्वितीयता में विश्वास करे और अपने स्वतंत्र जीवन मूल्य खुद गढ़े।