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पीएमओ शक्ति का नया केंद्र- एम के वेणु

अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद से ऐसे लोगों को निराशा हुई है, जो यह उम्मीद कर रहे थे कि मंत्रियों का चयन शासन के उनके अनुभव और योग्यता के आधार पर किया जाएगा। निश्चित रूप से मंत्रिमंडल में अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, कलराज मिश्र और नितिन गडकरी जैसे लोग भी हैं, जिन्हें केंद्र या राज्य स्तर पर सरकार में शामिल रहने का अनुभव है। लेकिन लगता है कि मोदी ने कई मंत्रियों का चयन राजनीतिक आधार पर किया है। यह कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि पारंपरिक रूप से हमेशा मंत्रिमंडल के चयन में राजनीति का ख्याल रखा जाता है।

मोदी ने इस मामले में दूसरी सरकारों से अलग हटकर कुछ नहीं किया है। इसलिए उत्तर प्रदेश से, जिसने भाजपा को बहुमत दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई, विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि के आठ मंत्री बनाए गए हैं। यहां तक कि मोदी ने अपनी कैबिनेट में उस जाट नेता को भी शामिल किया है, जो मुजफ्फरनगर दंगे में आरोपी हैं और जिन्होंने संभवतः हाल के दिनों के सबसे ध्रुवीकृत चुनाव में जीत हासिल की है। तो क्या मोदी ने इसके जरिये जाट समुदाय के प्रति कृतज्ञता जताई है, जिसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से अजित सिंह का साथ छोड़कर भाजपा को वोट दिया? ऐसे में किसी को भी सचमुच हैरानी हो सकती है कि मुजफ्फरनगर के शिविरों में विस्थापित जीवन जी रहे 50 हजार मुसलमान अपने नए सांसद से क्या उम्मीद करेंगे।

मोदी यह सुनिश्चित करने के प्रति भी सजग रहे कि कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय उनके वफादारों के पास रहे, जिन्हें स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। ऐसा लगता है कि मोदी धीरे-धीरे प्रधानमंत्री कार्यालय में बाहरी विशेषज्ञों के साथ एक बेहद मजबूत सचिवालय बनाएंगे, जो स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रियों को निरंतर निर्देश देगा। हाल ही में अरुण शौरी ने इस बात का इशारा किया कि मोदी प्रधानमंत्री कार्यालय को सचिवालय के रूप में तब्दील करने का फैसला कर सकते हैं, जो अमेरिकी राष्ट्रपति सचिवालय की तरह काम करेगा।

इस तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के जरिये नरेंद्र मोदी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में ज्यादातर खुद ही नीतियां बनाएंगे। भाजपा ने हमेशा ही शिक्षा नीति (जो युवा मानस को काफी प्रभावित करता है) को काफी महत्व दिया है। हम समझ सकते हैं कि शिक्षा नीति में बदलाव से संबंधित मुद्दों पर स्मृति ईरानी को लगातार प्रधानमंत्री द्वारा निर्देश दिया जाएगा। ऐसे में, स्मृति संभवतः नीतियां बनाने के बजाय उसके क्रियान्वयन में ज्यादा शामिल रहेंगी। दिलचस्प है कि पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मंत्रालय अपेक्षाकृत अनुभवहीन धर्मेंद्र प्रधान को दिया गया है। जाहिर है, इसे भी प्रधानमंत्री कार्यालय से संचालित किया जाएगा, क्योंकि यह मंत्रालय तेल मूल्य निर्धारण, गरीबों को सब्सिडी और गैस मूल्य निर्धारण जैसे विवादित सवालों पर निर्णय लेने में शामिल रहता है।

ऊर्जा एवं कोयला से संबंधित सभी महत्वपूर्ण विभाग पीयूष गोयल को दिए गए हैं, जो चार्टेड एकाउंटेट और निजी क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट मैनेजर रह चुके हैं। आर्थिक दृष्टि से कोयला एवं ऊर्जा इस समय काफी महत्वपूर्ण विभाग है। अपने चुनावी भाषणों में नरेंद्र मोदी ने यूपीए पर तीखे हमले करते हुए कहा था कि कोयला ब्लॉकों को मंजूरी नहीं मिलने से 25 हजार मेगावाट की बिजली परियोजनाएं ठप पड़ी हैं। इसके अलावा ऊर्जा क्षेत्र के कई कोल ब्लॉकों की जांच चल रही है। यह एक बड़ी समस्या है, जिसका समाधान तभी हो सकता है, जब मोदी व्यक्तिगत हस्तक्षेप करें। अगर मोदी कोल ब्लॉक से संबंधित गड़बड़ियों को सुलझाना चाहते हैं, तो उन्हें नौकरशाही, केंद्रीय सतर्कता आयोग, कैग और यहां तक कि न्यायपालिका को भी विश्वास में लेना होगा।

तथ्य यह है कि विपक्ष के रूप में भाजपा ने नीति निर्धारण की जिम्मेदारी को धीरे-धीरे कमजोर यूपीए सरकार से विभिन्न नियामकों एवं न्यायपालिका की तरफ स्थानांतरित करने में सहायता की। अब सत्ता में होने पर भाजपा को उसका फल भुगतना होगा। कार्यकारी अधिकारों को फिर से रातोंरात हासिल नहीं किया जा सकता। हाल ही में सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई को राजनेताओं से पूर्व अनुमति लिए बिना वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ जांच करने की अनुमति दी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाहों को निर्देश दिया था कि वे मंत्रियों को जवाबदेह बनाने के लिए सभी फैसलों का लिखित रिकॉर्ड रखें। सुप्रीम कोर्ट के ये दो निर्देश सुनिश्चित करते हैं कि मंत्री अब भाग नहीं सकते और उन्हें सख्ती से कानून का पालन करना होगा। नवनिर्वाचित मोदी सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि राजनेता पारंपरिक तौर पर मौखिक आदेश देने के अभ्यस्त होते हैं।

आर्थिक मोर्चे पर सबसे अधिक बोझ वित्त मंत्री अरुण जेटली के ऊपर है, जिन्हें लगातार खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना होगा, जो निर्विवाद रूप से यूपीए की हार का प्रमुख कारण रहा। तात्कालिक रूप से विकास और निवेश को पटरी पर लाने के लिए जेटली को मुद्रास्फीति नियंत्रण एवं रिजर्व बैंक से ब्याज दर में कटौती के बीच संतुलन साधना होगा। भाजपा नेताओं ने कहा है कि वे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता में दखल नहीं देंगे, लेकिन वास्तव में रिजर्व बैंक ने वित्त मंत्री से सलाह ली है। पिछले वित्त मंत्री की तरह जेटली भी ब्याज दर में कटौती के लिए रिजर्व बैंक पर दबाव डालेंगे। निकट भविष्य में भाजपा मुद्रास्फीति के बजाय विकास पर ज्यादा ध्यान देगी।