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पुरखों की जमीन दी, बदले में क्‍या मिला.. !!

राउरकेला स्टील प्लांट की स्थापना के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू और जयपाल सिंह मुण्डा आए थे और गांव वालों को समझा बुझा कर विकास के नाम पर जमीन ले लिया था. आज पचास सालों के बाद विस्थापितों के हालात भिखमंगों की तरह हो गई है. उन्ही विस्थापितों में से एक हैं लुसिया तिर्की जो मंदिरा डैम से उजाड़ दी गई. उनका कहना है कि जमीन का कागज अभी तक नहीं मिला है.बार बार दौड़ लगा हैं.हम हैरान हो रहे हैं. अजा के समय जमीन ली गई. लेकिन अभी समस्या बनी हुई है. लचरा में जमीन दी गई है. 140 दूर जंगल में जगह दिया है. लचरा विस्थापितों की काॅलोनी है.
13 मार्च 2010। विस्थापन और आजीविका और अस्तित्व की रक्षा विषय पर आयोजित सेमिनार में जर्मनी के तकनीकी और आर्थिक सहयोग से बना राउरकेला स्टील प्लांट के विस्थापितों की पीड़ा पर जर्मनी के आदिवासी कोर्डिनेशन के अध्ययन और मार्टिना सेबेस्टीना के शोध रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया. जर्मनी के कैसल विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि सरकार ने पुनर्वास के जो वादे किए उन वादों को पूरा नहीं किया गया. 1958 – 59 के समय दिए गए आश्वासन अब तक पूरे नहीं हुए. यहां तक कि पीने का पानी ओर रोजगार के अवसर ही मुहैया नहीं कराए गए.

स्टैन स्वामी ने मुख्य वक्तव्य रखा और कहा कि आदिवासी विकास के विरोधी नहीं हैं और आदिवासियों ने ही अपनी परम्परा और संस्कृति की कीमत पर राष्ट् का विकास किया है.

प्रो. गोलकनाथ बिहारी, अध्यक्ष, गांधी महाविद्यालय ने कहा कि उड़ीसा में तीन तीन बार आदिवासियों को विस्थापितों को उजाड़ा और बसाया गया है.

जर्मनी से आदिवासी कोर्डिनेशन के आए विभिन्न प्रतिनिधियों ने कहा कि जर्मनी के सहयोग से बना प्लांट में आदिवासियों की स्थिति में सुधार नहीं आया.जनवरी से मार्च 2009 तीन महीनों तक मंदिरा डैम के विस्थापितों के गांवों में दौरा कर वहां के हालात का जायजा लिया. इसे की अध्ययन में शामिल किया गया है.

राउरकेला स्टील प्लांट की स्थापना के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू और जयपाल सिंह मुण्डा आए थे और गांव वालों को समझा बुझा कर विकास के नाम पर जमीन ले लिया था. आज पचास सालों के बाद विस्थापितों के हालात भिखमंगों की तरह हो गई है. उन्हीें विस्थापितों में से एक हैं लुसिया तिर्की जो मंदिरा डैम से उजाड़ दी गई. उनका कहना है कि जमीन का कागज अभी तक नहीं मिला है.बार बार दौड़ लगा हैं.हम हैरान हो रहे हैं. अजा के समय जमीन ली गई. लेकिन अभी समस्या बनी हुई है. लचरा में जमीन दी गई है. 140 दूर जंगल में जगह दिया है. लचरा विस्थापितों की काॅलोनी है.

हाबिल लांेगा मंदिरा डैम के विस्थापित है और लचरा में बसे हैं. उन्होंने कहा कि 1956 ई. के बाद जब जयपाल सिंह एम. पी. थे, नदी किनारे आए थे और बांध बांधने का बात किए थे.जयपाल सिंह की बात को माने और कहा कि घर के बदले घर हर परिवार से एक को नौकरी और मुआवजा मिलेगा.विश्वास करके जमीन दिया.जमीन का नाप जोख किया. राजगांगपुर में हिसाब किताब होता था. 200 रू. जमीन के 300 रू. माल के वाहन का कुल 900 रू. जोड़ा था किसी को मिली किसी को नहीं मिला. जयपाल सिंह और पंडित नेहरू ने धोखा दिया.

कहा गया था कि दो महीनों के भीतर मंदिरा डैम के विस्थापितों को मामला निपटा दिया जाएगा.1958 फरवरी महीना में भुगतान हुआ था बहुतों को नहीं मिला. अब जहां बसे हैं लचरा में पानी का बंदोबस्त नहीं है. झोंपड़ी केवल बना दिया.

अलग अलग घर बना दिया और हर परिवार को उसमें रखा गया. 300 परिवार लचरा में रखा और केवल दो कुंआ था.वाटर टैंक से पानी देने आता था तो पता किया कि कहां का पानी देने आता है पता चला कि बगल नाला का पानी पिलाने टैंक से आता है तो काफी हो हल्ला किया और तब लोग बीमार पड़ने लगे चेचक और पेट झाड़ा हुआ तब जाकर टैंक का पानी बंद किया.

स्ेावक दाई हरबल डाक्टर हमारे समाज में सेवा करते थे लोगों को मरने से बचाया. जंगल को काटवाया महिलाओं को भी जंगल कटवाया. अपने घर बनाया. जमीन के ऐसा जमीन मिलो कि कोई काम का नहीं. मंदिरा डैम में हमारी उपजाउ जमीन चली गई. जंगल में जमीन बना कर नहीं दिया. स्वयं से लोगों ने बनाया. एस.डी.ओ कहता था कि तुमलोगों को स्वस्थ रखने के लिए हमलोगों को जिम्मा नहीं मिला है. नौकरी हर परिवार से नहीं मिला तो कोई सुधार नहीं हुआ. अभी बहुत परिवार भूखे रह रहे हैं.
उन्होंने कहा कि विस्थापन के पहले घर स्कूल सब बना हुआ मिलना चाहिए. सरकार पर विश्वास नहीं करना चाहिए.

चरण महतो रेलवे बंडामुण्डा के विस्थापित हैं और 1955 ई में 2200 एकड भूमि अधिग्रहण किया. उन्होंने अतिरिक्त जमीन रैयतों को वापस करने की मांग है.

1992-95 काम देने की बात हुई लेकिन विस्थापित आवेदन देने के योग्य नहीं माने गए. बाहरी लोग आए और वहां बसा दिए गए. भूमि वापसी का आंदोलन जारी है. दमन जारी है.

विस्थापित पीटर मिंज ने कहा कि अधिसूचित क्षेत्र के कानून लागू नहीं है. सुदंरगढ़ जिला भी पांचवी अनुसूची में है.लेकिन इसका पालन नहीं हुआ. 1955 में जर्मनी के विशेषज्ञ आए और जमीन अधिग्रहण हुआ.

राउरकेला स्टील प्लांट में 19722 एकड़ और 32 गांव प्रभावित मंदिरा डैम में 11923 एकड़ 98 भूमि 31 गांव 945 परिवार विस्थापित हुए.आर. एस.पी. अधिकारियों ने पुनर्वास पर कोई ध्यान नहीं दिया.न रोड न स्कूल और न अस्पताल और अन्य कुछ भी नहीं है.जिसका जमीन उसका विकास हो.अभी भी अत्याचार और परेशान किया जा रहा है.सामाजिक आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक मानसिक अत्याचार कर रहे हैंआंशिक काम करके सहारा एजेंट बनकर जीविका चला रहे हैं.1993 में 14000 एकड़ अतिरिक्त जमीन रैयतों को वापस नहीं दिया गया और इस भूमि पर बिजनेस डेवलप कर रहे हैं. इसमें विस्थापितों की कोई सहभागिता नहीं है.अधिकारियों की प्रवृति उन्हें मदद करने की नहीं थी.

विस्थापित अमरूस कुजूर ने कहा कि हमलोगों ने सब कुछ दिया. जमीन जीवन सब दिया. लचरा में सभी तरह की समस्या है. जमीन के बदले जमीन घर के बदले घर आदि की बात थी. आदिवासियों के साथ ही ऐसा किया गया. आर. एस. पी. जाली प्रमाण पत्र देकर नौकरी कर रहे हैं.

विकास का कोई अंत है. आदिवासी सौ साल पीछे चले गए हैं. आदिवासियों का कुछ नहीं हुआ. भावनाएं एक है सभी विस्थापितों की रोजगार कुशल और अकुशल सभी को काम मिले. जमीन की मात्रा और उर्वरता के अनुसार जमीन मिले.बहुत सारे व्यापार के कें्रद खुल रहे हैं. लेकिन विस्थापितों को नहीं मिल पा रहा है. जबकि विस्थापितों के परिवार भी बढ़ रहे हैं.

विस्थापित सुदर्शन एक्का ने कहा कि 1992-93 में सुप्रीम कोर्ट में केस किए थे.आर. एस. पी. ने एफिडेविट दिया है. कि 1098 एकड़ जमीन के बारे कहा 4500 लोगों को नौकरी दिया है.आर. एस. पी. ने 3240 आदमी की सूची दिया. 75 प्रतिशत आदमी झाड़खंड, मयूरभ्ंाज, दिनाजपुर, कटक के लोगों सूची में है. राम सिंह का नाम है श्रीकाकुलम का है और विस्थापितों के नामपर नौकरी कर रहे हैं. चितागांग बंगलादेश का एक आदमी नौकरी कर रहा है.1793 परिवार अब भी नौकरी की आशा में है.40 एकड़ जमीन गैर अधिसूचित है वापस नहीं ले पाए हैं. 350 एकड़ जमीन अभी तक नहीं पाए हैं. किस तरह जी रहे हैं.आदिवासी ठगे गए. जितनी नौकरी की बात कही नही दी.75 प्रतिशत जाली लोगों को नौकरी दी गई.

विस्थापित विमल बनर्जी ने कहा कि आर. एस. पी. 1948 कानून के आधार पर लिया गया जमीन. जो राष्ट्पति की सहमति के बाद ही लागू होता है. ग्रामीण मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय से जानकारी मांगा 16,000 से 20,000 जमीन खा गया सरकार.

गोड़ा 200 रू. बेलना 600 रू. बहाल 900 रू. एकड़ असल मालिक को जमीन वापस न करके किसी को बेच रहा है. 1957 में राउरकेला में हम 6 साल के थे. मेरे पिता ही नेहरू को विशेष रेल में लाने का काम किया. मेरे पिता रेलवे में थे.घर एक जगह और चास करने का जगह 50 किलामीटर दूर तो क्या हेलीकाॅप्टर में खेती करने जाएंगे.

आदिवासी कोर्डिनेशन जर्मन के प्रतिनिधियों ने कहा कि जर्मन सरकार को हम इन बातों की जानकारी देगें और विस्थापितों के लिए किए गए वायदों को पूरा करने की अपील करेगें.

सेमिनार का संचालन विजय कुमार सोरेंग और सुनील जोजो ने किया. सेलिसटिन खाखा और दयामनी बारला और अन्य लोगों ने अपने विचार रखे.