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पुरुषों को भी चाहिए संरक्षण- संगीता भटनागर

इधर पिछले कुछ समय से महिलाओं द्वारा बलात्कार के झूठे मामलों में अपने पुरुष सहयोगियों को फंसाने की घटनायें चर्चा में आ रही हैं। कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति ने शादी का वायदा करके शारीरिक संबंध स्थापित किये। वह बाद में शादी से मुकर गया। फलां ने डरा-धमका कर या फिर शीतल पेय में नशीला पदार्थ मिलाकर उसे पिलाया और अचेत होने की स्थिति में यौन शोषण किया।


कई मामलों में अदालत ने पाया कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार का आरोप ही गलत था या फिर शिकायतकर्ता ने झूठा आरोप लगाकर एक व्यक्ति की जिंदगी बर्बाद कर दी। अदालत अब महसूस करने लगी है कि बलात्कार का आरोप लगने के बाद आरोपी तो गिरफ्तार हो जाता है और फिर जमानत हो जाने या आरोप गलत होने की स्थिति में उसके बाइज्जत बरी होने के बावजूद उसकी जिंदगी पर हमेशा के लिये एक धब्बा लग जाता है।


अदालतों को लगता है कि अब समय आ गया है कि बलात्कार के झूठे मामले दर्ज कराने वाली महिलाओं के खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जाये क्योंकि झूठे मामले दर्ज कराने की घटनायें तेजी से बढ़ रही हैं। दिल्ली महिला आयोग की एक रिपोर्ट में भी इसी तरह का कुछ दावा किया गया। इसके अनुसार अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 में बलात्कार के आरोप में दर्ज कराये गये 50 फीसदी से अधिक मामले झूठे मिले।


स्थिति की गंभीरता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में कहा है कि इस तरह के झूठे मामलों में फंसाये गये व्यक्तियों के संरक्षण के लिये भी अब कानून की आवश्यकता है। अदालत ने कहा है कि झूठे मामले में फंसाया गया व्यक्ति अब शिकायतकर्ता के खिलाफ हर्जाने का दावा कर सकता है। इसी तरह के बलात्कार के एक मुकदमे में अदालत ने दो टूक शब्दों में कहा है कि शादी के वायदे को पूरा कराने के लिये बलात्कार संबंधी कानून का हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।


एक अन्य प्रकरण में अदालत ने पाया कि एक विवाहित महिला ने अपने पति और माता-पिता के दबाव में आरोपी पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करायी थी। अदालत ने इस मामले में भी आरोपी को बरी कर दिया। बलात्कार के झूठे मामले में जेल भेजे गये वकील को बरी करते हुए दिल्ली की एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा कि यह उचित समय है कि इस तरह के झूठे मामलों में फंसाये जाने से पुरुषों को दिया जाये।


अदालत का मानना है कि बलात्कार के आरोप से बरी होने के बावजूद व्यक्ति पूरी जिंदगी समाज में हुई बदनामी झेलेगा और बलात्कार का आरोप झूठा होने तथा उसके बाइज्जत बरी होने की घटना का संज्ञान भी नहीं लिया जायेगा। अदालत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बलात्कार के झूठे मामले में फंसाये गये व्यक्ति का अपमान हुआ है और इससे उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस नहीं आ सकती और न ही किसी तरह इसकी भरपाई हो सकती है। न्यायाधीश ने तो यहां तक कहा कि आज महिलाओं के संरक्षण के लिये तो कानून बन रहा है लेकिन कोई भी पुरुषों की प्रतिष्ठा और सम्मान के बारे में बात नहीं कर रहा।


यह मामला भी बेहद दिलचस्प था। इसमें शिकायतकर्ता महिला एक वकील के यहां क्लर्क थी। महिला ने शिकायत दर्ज करायी कि इस वकील ने उसके साथ दुष्कर्म किया और इसकी जानकारी किसी को देने पर उसे जान से मारने की धमकी दी। मुकदमे की सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता ने कहा कि आरोपी निर्दोष है और उसने गुस्से में इस तरह की शिकायत दर्ज करायी थी। इसी तरह के एक अन्य मामले में भी अदालत ने बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया क्योंकि शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि उसने अपने पति और परिवार के सदस्यों के दबाव में झूठी शिकायत की थी।


तीसरा प्रकरण सह-जीवन गुजारने वाली एक विधवा से संबंधित है, जिसमें पीड़िता ने व्यक्ति पर आरोप लगाया कि उसने शादी करने का वायदा करके उससे शारीरिक रिश्ते बनाये और अब शादी नहीं कर रहा। इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि शादी का वायदा पूरा कराने के लिये बलात्कार के कानून को हथियार नहीं बनाया जा सकता। अदालत जानना चाहती थी कि करीब एक साल तक साथ में रहने के बावजूद आखिर इस व्यक्ति के साथ शादी नहीं कर पाने में बाधा क्या थी। यही नहीं, कोई महिला प्रेम और लगाव की वजह से भी सह-जीवन में रहने वाले व्यक्ति के साथ शारीरिक रिश्ते कायम कर सकती है।


पुरुषों को बलात्कार के झूठे मामलों में फंसाने वाली महिलाओं को किसी न किसी रूप में दंडित कराने के लिये उच्चतम न्यायालय में आनलाइन याचिका दायर करने की तैयारी भी चल रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अदालत की इस तरह की टिप्पणियों के मद्देनजर न्यायपालिका और विधायिका स्थिति की गंभीरता को महसूस करके बलात्कार के झूठे मामलों में फंसाये गये व्यक्तियों के सम्मान की रक्षा की दिशा में भी कोई ठोस व्यवस्था करने पर विचार करेंगे।