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पूरा गांव बीमार, खेत में हो रहा इलाज-अब तक सात मरे

| दो दिनों में सोनुवा के एक गांव में डायरिया से सात लोगों की मौत हो चुकी है. पूरा गांव तबाह है. इलाज के लिए खुद चिकित्सक नहीं गये. मरीजों को खेत में बांस की बल्ली पर बोतल रख कर स्लाइन चढ़ायी जा रही है. न एंबुलेंस पहुंची है और न ही चलंत चिकित्सा की सुविधा. करोड़ों की चिकित्सा बसें बेकार पड़ी हैं. यह है झारखंड में चिकित्सा सेवा का हाल. ||

2800 करोड़ खर्च, पर जीने को तरस रहे लोग
- पांच वर्ष में 2800 करोड़ रुपये खर्च
- 1000 करोड़ अकेले ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान पर
- इससे पहले 31 करोड़ में 725 छोटी गाड़ियां,14 ट्रक, बस व आयशर ट्रुप जैसी गाड़ियां खरीदी गयीं.
- मारुति वैन, स्वराज माजदा एंबुलेंस, आयशर एबुलेंस, आयशर ट्रूप कैरियर, ओमिनी एंबुलेंस व टाटा सूमो जैसी 144 गाड़ियां एनजीओ को दिये गये.
- कितना लाभ
गांवों में बुनियादी चिकित्सा सुविधा भी नहीं पहुंची
- क्या थी योजना
गांवों में स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने के लिए मोबाइल मेडिकल वैन खरीदी जानी थी. 25 लाख में दो छोटी गाड़ियां लेनी थी. एक में डॉक्टर व दूसरे में दवाइयां होती.
- क्या किया
66-66 लाख की 146 बसें खरीद ली. आरसीएच, नामकुम में तीन करोड़ की 13 बसें तीन वर्षो से बेकार पड़ी हैं
सोनुवा : गुदड़ी प्रखंड के कांसकेल गांव में दो और लोगों की मृत्यु हो गयी है. इसके साथ ही गांव में फ़ैले डायरिया के कारण मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ कर सात हो गयी है. इसके अलावा गांव के 150 से अधिक और बच्चे, बूढ़े और जवान आक्रांत हैं. गांव पहुंचे स्वास्थ्य कर्मी उनके इलाज में जुटे हुए हैं. गांव के हर घर में कोई न कोई इस बीमारी से पीड़ित है. घरों में मरीजों के इलाज के लिए जगह नहीं होने के कारण पेड़ों के नीचे उनका इलाज चल रहा है.

उधर बीमारी में आज तीसरे दिन भी कोई खास सुधार नहीं आया है तथा मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी ही हो रही है. स्वास्थ्य कर्मी गांव के मुंडा टोला, ताला टोला व नीचे टोला में कैंप लगा कर बीमार लोगों का इलाज कर रहे हैं. याद रहे कि उक्त बीमारी से 28 मई को गांव के पांच लोगों की मृत्यु हो गयी थी, जबकि 29 मई को 10 वर्षीय बच्चे इलियास लोमगा व 55 वर्षीय वीरेन लोमगा ने भी दम तोड़ दिया. उधर सरकारी चिकित्सक आज देर शाम गांव पहुंचे.

पिछले तीन दिनों से डायरिया पीड़ितों का एएनएम व स्वास्थ्य कर्मियों के भरोसे इलाज चल रहा था. चिकित्सकों के समय पर नहीं पहुंचने के कारण गांव में डायरिया-पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. कई लोग अब भी मौत से जूझ रहे हैं.स्वास्थ्यकर्मी अब तक मरीजों को 200 यूनिट सेलाइन चढ़ा चुके हैं, लेकिन मरीजों की हालत में सुधार नहीं हो रहा है. गांव में दहशत की स्थिति है. बीमारी की चपेट में आने से बचे लोग अब गांव से पलायन कर रहे हैं. बच्चे इस बीमारी से ज्यादा पीड़ित हैं. सिविल सर्जन ने चाईबासा से एक टीम दवा के साथ कांसकेल भेजी थी, लेकिन टीम के लोग सोनुवा पीएचसी से ही चाईबासा लौट गयी.

दूषित पानी के कारण फ़ैली बीमारी : सिविल सर्जन

सिविल सर्जन शिव कुमार प्रसाद ने कहा कि दूषित पानी पीने से गांव में यह बीमारी फ़ैली है. इसके लिए गांव से पानी का नमूने लेकर लैब भेजा जायेगा तथा जांच के बाद ही बीमारी की पहचान हो पायेगी. उन्होंने दावा किया कि इलाज में कोई कोताही नहीं की जा रही है. एक दो दिनों के अंदर बीमारी पर काबू पा लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को गांव का दूषित पानी का उपयोग नहीं करने तथा उबाल कर ही पानी पीने की सलाह दी.

इलाज में लापरवाही हुई है : उप मुखिया

बीरकेल पंचायत के उप मुखिया इसात लोमगा ने कहा कि तीन दिनों से गांव का बुरा हाल है, दर्जनों लोग बीमार हैं, लेकिन लोगों के की देखभाल के लिए चंद एएनएम को भेज दिया गया है. चिकित्सकों के समय से गांव नहीं पहुंच पाने के कारण मृतकों की संख्या बढ़ रही है. डॉक्टर समय पर गांव पहुंचते तो शायद मरने वालों की संख्या कम होती.