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प्रदेश में दस साल और बनी रहेगी डॉक्टरों की कमी

भोपाल। डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे मध्यप्रदेश में यह दिक्कत आने वाले दस साल तक बनी रह सकती है। इसकी वजह मप्र का देश के उन राज्यों में शामिल होना है, जहां सबसे कम मेडिकल कॉलेज है। प्रदेश में शासकीय और निजी मेडिकल कॉलेजों की संख्या मिला भी दी जाए तो भी कुल 18 ही कॉलेज है, जबकि अन्य राज्यों में यह संख्या दोगुनी से भी ज्यादा है।


प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की कमी अभी से नहीं है। एक दशक से सरकार हर बार मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की बात करती आ रही है। वर्ष 2017-18 के बजट में सात मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा सरकार ने की है। कॉलेजों के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 115 करोड़ का प्रावधान भी किया गया।


वर्ष 2016 में जबलपुर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 नए मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा की थी। वर्ष 2015 में यह संख्या पांच मेडिकल कॉलेजों की थी तो वर्ष 2014 में तो 42 नए कॉलेज खोले जाने की तक की बात कही गई। वर्ष 2012 में यह संख्या 18 कॉलेजों की थी। इससे पूर्व भी घोषणाओं को मिला दिया जाए तो पिछले दस सालों में जितने कॉलेज खोले जाने की घोषणा हुई यदि वो वाकई खुल जाते तो उस लिहाज से प्रदेश में इनकी संख्या 100 से ज्यादा हो जाती।


सीटें बढ़ाने के लिए नहीं दिया प्रस्ताव


प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों में सीटें भी कम हैं। इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017-18 के लिए मौजूदा कॉलेजों में सीटें बढ़ाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। जबकि ऐसे राज्य जहां पहले से ही कॉलेजों के साथ सीटें ज्यादा हैं, उन्होंने भी सीट बढ़ाने के लिए आवेदन किए हैं।


स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2016-17 में ऐसे तीन निजी कॉलेज भी थे, जिन्हें मानक अपेक्षाओं के मूल्यांकन पर खरा नहीं उतरने के चलते एमसीआई ने नवीनीकरण की अनुमति नहीं दी थी।


पीजी सीटों की संख्या भी कम

प्रदेश में एमबीबीएस के अलावा पीजी की सीटें भी अन्य राज्यों की तुलना में खासी कम है। प्रदेश में कुल 756 सीटें पीजी की है, जिनमें 384 एमडी, एमएस की 233, एमसीएच की आठ, डीएम की नौ और डिप्लोमा की 122 सीटें है। अन्य राज्यों में पीजी सीटों की बात करें तो कर्नाटक में यह संख्या 3618 है, जबकि महाराष्ट्र में 3265 और तमिलनाडू में 2605 सीटें हैं।