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प्रधानमंत्री के खत पर चेती सरकार

अजमेर. अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों पर अत्याचार प्रकरणों के निस्तारण में ढिलाई पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पत्र के बाद राज्य सरकार चेती है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी कलेक्टरों को अदालतों में विचाराधीन प्रकरणों का निस्तारण तेजी से कराने और जिला स्तरीय एससी-एसटी अत्याचार निवारण समिति की बैठकों का नियमित आयोजन करने के निर्देश दिए हैं। डॉ. सिंह ने एससी-एसटी के लोगों पर अत्याचार के प्रकरणों का निस्तारण समय पर नहीं होने और आरोपियों को सजा नहीं मिलने पर अत्यंत असंतोष जताया है।
पीएम की चिंता
न्यायालयों द्वारा 2005 से 2007 के दौरान केवल 30 प्रतिशत मामलों का निस्तारण किया जा सका है।
एससी-एसटी के प्रकरणों में दोष सिद्धि की दर में सुधार आने की बजाय यह गिरकर केवल 15 प्रतिशत रह गई है।
भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत सभी संज्ञेय अपराधों 42 प्रतिशत एससी-एसटी अत्याचार के मामले हैं।
राज्य सरकार को एससी-एसटी के लोगों पर अत्याचार रोकने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
एससी-एसटी एक्ट 1989 के नियमों का सख्ती से पालन होना चाहिए।
राज्य और जिला स्तरीय सतर्कता समितियों के साथ अनुवीक्षण समितियों की बैठकों का नियमित आयोजन किया जाए।
मुख्यमंत्री को सलाह
एससी-एसटी के मामलों के निस्तारण की समीक्षा में व्यक्तिगत रूप से ध्यान दें।
एससी-एसटी के लोगों पर अत्याचार रोकने के लिए ठोस उपाय सुनिश्चित करें।
मंदिर में प्रवेश से रोका
बोराड़ा गांव में एससी के परिवार के लोगों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने का मामला आठ दिन पहले सामने आया। 5 सितंबर को गांव के कुछ लोगों ने मंदिर में ताला लगा दिया था, बाद में पुलिस के दखल से ताला खोला गया था। नायक समाज के लोगों ने आईजी और एसपी को ज्ञापन दिया। लोगों ने 12 सितंबर को मंदिर में धार्मिक रस्म अदा करने के लिए पुलिस इमदाद मुहैया कराने की मांग की थी। पुलिस के दखल से मामला शांत हुआ था।
अजमेर में भी यही हाल
दिसंबर 08 तक कोर्ट में विचाराधीन प्रकरण - 141
जनवरी से अगस्त तक आए प्रकरण - 21
जनवरी से 15 सितंबर तक निस्तारित प्रकरण- 42
सजा के प्रकरण- 8
बरी के प्रकरण -32
प्रशासन और पुलिस समान जिम्मेदार
पुलिस गुमराह करती है। पुलिस और प्रशासन निर्धारित कानून का पालन नहीं करते हैं। प्रशासन गंभीरता से काम नहीं करता है। उनकी संवेदनहीनता के कारण दलितों को न्याय नहीं मिलता है। पुलिस में बने एससी-एसटी सेल और एससी-एसटी कोर्ट से भी दलितों को उनके अधिकार और न्याय नहीं मिलते हैं। स्पेशल कोर्ट में मामलों का निस्तारण हो इसके लिए प्रशासन को समय पर समीक्षा करना चाहिए। प्रत्येक हफ्ते एक घंटा दलित अत्याचार प्रकरणों की सुनवाई होनी चाहिए।
पीएल मीमरोठ, अध्यक्ष, दलित अधिकार केंद्र
स्वस्थ मानसिकता के अधिकारी लगाएं
प्रशासन व पुलिस पूरी तरह जिम्मेदार है। जांच अधिकारी पारदर्शी जांच नहीं करते हैं। केस को इतना पेचीदा बना दिया जाता है कि पीड़ित पक्ष को न्याय नहीं मिल पाता है। एससी-एसटी एक्ट की धारा 16 के तहत जिला स्तरीय सतर्कता समिति की जिम्मेदारी है कि वे प्रत्येक केस का रिव्यू करें। प्रशासन हर महीने बैठक आयोजित कर प्रकरणों के बारे में गहनता से जांच करें।
सतीश कुमार, निदेशक, दलित अधिकार केंद्र
जल्द होगी कार्रवाई
मैं इस मामले को दिखवाऊंगा कि मीटिंग क्यों नहीं हुई। यदि ऐसा है तो जल्द मीटिंग होगी।
राजेश यादव, कलेक्टर, अजमेर
एक वर्ष से नहीं हुई बैठक
अजमेर में बीते एक वर्ष से जिला स्तरीय अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण समिति की बैठक का आयोजन नहीं किया गया है। अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण समिति के अध्यक्ष कलेक्टर हैं, गत वर्ष बैठक का आयोजन किया गया था। उसके बाद विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव की आचार संहिता और प्रशासनिक तंत्र की व्यस्तता के चलते मीटिंग नहीं हो सकी।