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प्रशासन शून्य दौर में तमिलनाडु - एस श्रीनिवासन

एक कुशल प्रशासित राज्य तमिलनाडु इन दिनों सचमुच नेतृत्व विहीन हो गया है, क्योंकि पिछले दो हफ्तों से सूबे की मुख्यमंत्री जयललिता चेन्नई के अपोलो अस्पताल में आईसीयू में भर्ती हैं। शुरू में तो उन्हें बुखार और शरीर में पानी की कमी की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन अब हर बीतते दिन के साथ उनकी बीमारी की ‘असली वजहों' को लेकर कयासबाजी तेज होती जा रही है। ब्रिटेन से एक विशेषज्ञ चिकित्सक के आने से जयललिता के समर्थकों की चिंता और बढ़ गई है। ये समर्थक या तो अपोलो अस्पताल के बाहर दिन-रात बैठे रह रहे हैं या फिर राज्य के विभिन्न मंदिरों और मठों में मुख्यमंत्री के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ पूजा-आराधना में जुटे हैं।

जयललिता के बाद नंबर-दो की हैसियत में किसी नेता के न होने या फिर उत्तराधिकार की योजना के अभाव में राज्य का शासन नौकरशाहों के हवाले हो गया है। हालांकि अपोलो अस्पताल लगातार उनकी सेहत की जानकारियां दे रहा है, समय-समय पर हेल्थ बुलेटिन जारी हो रहे हैं, मगर वे जयललिता के स्वास्थ्य को लेकर लोगों की अटकलों को थामने में नाकाम हैं। सोशल मीडिया तरह-तरह की अफवाहों से पटा पड़ा है। राज्य के कार्यकारी राज्यपाल विद्यासागर राव ने भी अस्पताल जाकर बीमार मुख्यमंत्री का हाल-चाल पूछा और उसके बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया कि जयललिता की सेहत में तेजी से ‘सुधार' हो रहा है। लेकिन अफवाहें तब और सुलग उठीं, जब यह साफ हुआ कि राज्यपाल तो सिर्फ डॉक्टरों से मिलकर लौट आए थे। यहां तक कि उपचार की संवेदनशीलता या मुख्यमंत्री की हालत के कारण शायद वीआईपी लोग भी उनसे नहीं मिल सकते।
तमिलनाडु की फिजाओं में तमाम तरह की अफवाहें तैर रही हैं।

विरोधी दल डीएमके के वयोवृद्ध नेता एम करुणानिधि ने मुख्यमंत्री के अस्पताल में दाखिल होने के तुरंत बाद बयान जारी करके न सिर्फ उनके जल्दी से स्वस्थ होने की कामना की, बल्कि यह मांग भी कर डाली की मुख्यमंत्री के ठीक होने की बात को पुष्ट करने के लिए उनकी ताजा तस्वीर जारी की जाए। साफ है, एआईडीएमके के प्रवक्ता ने बगैर वक्त गंवाए इस पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘अम्मा स्वस्थ हैं और सिर्फ आराम कर रही हैं, क्योंकि जनता के कल्याण के लिए वह पिछले कई वर्षों से 20-22 घंटे बिना थके काम करती आ रही हैं। लेकिन अटकलें हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रहीं। पीएमके नेता एस रामदौस ने भी मुख्यमंत्री के बारे में कोई जानकारी न होने की शिकायत की है।

फिर भी राजनेता इस संबंध में संयम बरत रहे हैं, मगर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं बेकाबू हो चली हैं। तमिलनाडु पुलिस ने सोशल मीडिया में अटकलबाजी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। फ्रांस में रहने वाले एक ब्लॉगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसने जयललिता की मौत की घोषणा कर डाली थी। इसके चंद रोज पहले पार्टी प्रवक्ता ने दावा किया था कि मुख्यमंत्री ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ कावेरी जल के मसले पर एक मुलाकात की है और अस्पताल के अपने बिस्तर से ही अधिकारियों को जरूरी निर्देश दिए हैं। ‘अम्मा' ने अधिकारियों को बताया है कि वे कर्नाटक के खिलाफ क्या रवैया अपनाएं? गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी कर्नाटक कावेरी का पानी तमिलनाडु को जारी करने में आनाकानी कर रहा है। लेकिन विश्लेषकों ने तुरंत ही इस पर सवाल खड़ा कर दिया कि मुख्यमंत्री के साथ अधिकारियों की बैठक हुई है, तो इसकी पुष्टि करने वाली कोई तस्वीर क्यों नहीं जारी की गई?

जिस अस्पताल में मुख्यमंत्री दाखिल हैं, उसे एक दुर्ग में तब्दील कर दिया गया है। सिर्फ मरीजों व जरूरी स्टाफ को उनके परिचय-पत्र की कड़ी जांच-पड़ताल के बाद अस्पताल में घुसने दिया जा रहा है। जिस फ्लोर पर मुख्यमंत्री भर्ती हैं, उसे खाली करा लिया गया है। उस मंजिल पर सिर्फ इलाज से जुड़े डॉक्टरों और कर्मचारियों को ही जाने दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री तक पहुंच पर उनकी पुरानी सहेली और स्वघोषित ‘छोटी बहन' शशिकला का सख्त नियंत्रण है। यहां तक कि वरिष्ठ पार्टी नेताओं व सरकार के मंत्रियों को भी उस फ्लोर पर आने की इजाजत नहीं मिल रही है। इन सब में किसी के लिए कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि सामान्य दिनों में भी मुख्यमंत्री जल्दी किसी से नहीं मिलती थीं।

अपने दफ्तर व घर पर वह कुछ चुनींदा अफसरों के सिवा, जिनमें वरिष्ठ नौकरशाह व खुफिया अधिकारी शामिल हैं, शायद ही किसी से मिलती हों। उनके निजी मसलों को शशिकला ही संभालती रही हैं। वह अपने मंत्रियों और अधिकारियों से इन्हीं चंद लोगों के जरिये संवाद करती हैं। जाहिर है, इन सबका उनके शासन पर एक खास असर पड़ता है और कुछ हद ये उनकी ‘शासन-शैली' का हिस्सा बन गया है। अटकलबाजों को मजबूत आधार इसलिए भी मिल गया, क्योंकि पिछले कुछ वक्त में जयललिता सार्वजनिक रूप से बहुत कम सामने आई हैं। वह अपने दफ्तर रोज जाती रहीं और सत्र के दौरान विधानसभा में भी मौजूद रहीं, मगर दूसरे सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाना उन्होंने धीरे-धीरे काफी कम कर दिया। वह वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये उद्घाटन करने लगीं।

लेकिन इन सबके बावजूद शासन पर उनकी पकड़ मजबूत रही और उनके बारे में यही धारणा रही कि वह एक-एक फाइल पर अपनी नजर रखती हैं। वह उन पर नौकरशाहों की टिप्पणियों को काफी ध्यान से पढ़ती हैं, और अगर स्पेलिंग में कोई गलती हो, तो दुरुस्त भी कर देती हैं। कहा जाता है कि वह प्रेस के लिए तमिल और अंग्रेजी में तैयार सामग्री को खुद देखती हैं और जरूरी हुआ, तो उसे संपादित भी करती हैं, क्योंकि इन दोनों भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ है।

स्वाभाविक है कि इतने कुशल नेतृत्व की गैर-मौजूदगी से प्रशासन कुछ दिनों के अंदर ही दबाव महसूस करने लगे। जयललिता की पार्टी की हालत तो और भी दयनीय हो गई है। चूंकि कोई नबंर-दो की हैसियत में नहीं है, इसलिए एक तरह की रिक्तता पैदा हो गई है। जयललिता एक करिश्माई नेता हैं। उनके समर्थकों की भावनाएं इन दिनों अपने चरम पर हैं। स्थानीय मीडिया ‘अम्मा' से जुड़ी खबरों को प्रकाशित-प्रसारित करने में ‘अतिरिक्त सावधानी' बरत रहा है। वे ज्यादातर एआईडीएमके कार्यकर्ताओं की पूजा-अर्चना की खबरें ही दे रहे हैं, वास्तविक समाचार उनमें बहुत कम होते हैं।

तमिलनाडु हालांकि देश का एक काफी पढ़ा-लिखा राज्य है, लेकिन इसका शासन कुछ-कुछ स्टालिनवादी मॉडल पर संचालित होता रहा है, जिसमें पारदर्शिता का नितांत अभाव रहता है। एआईडीएमके एक शख्स पर आधारित पार्टी है। ऐसे में, राज्य के आगे बहुत बड़ा जोखिम खड़ा हो गया है, क्योंकि एक ही व्यक्ति प्रशासन और पार्टी, दोनों को नियंत्रित कर रहा है। ऐसे में, यही कामना की जा सकती है कि मुख्यमंत्री जल्दी से स्वस्थ हो जाएं और यह सूबा किसी तरह की अराजकता का शिकार बनने से बच जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)