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प्राथमिकता वाले क्षेत्र में ऋण को बने टास्क फोर्स

पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में दिये जाने वाले ऋण की गति में सुधार के लिए टास्क फोर्स के गठन की मांग की है। केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में सोमवार को पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, वित्त मंत्रियों और बैंकों के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारियों के साथ बैठक में यह मसला उठाया। उन्होंने कहा कि बिहार में कृषि, आवास, अल्पसंख्यकों, कमजोर वर्गो, शिक्षा ऋण यानी प्राथमिकता क्षेत्रों में दिये जाने वाले ऋण आदि में सुधार के लि वरीय बैंकर्स का एक टास्क फोर्स गठित किया जाये जो इसकी नियमित समीक्षा करे और सर्वोच्च स्तर पर इसकी मानीटरिंग की जाये ताकि राज्य साख योजना की शतप्रतिशत उपलब्धि हो सके इसमें अपेक्षित वृद्धि लायी जा सके।

बढ़ नहीं रहा सीडी रेशियो : साख जमा अनुपात की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय औसत 72 प्रतिशत है। रिजर्व बैंक के मानक के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में सीडी रेशियो 60 फीसदी होनी चाहिए मगर यह अनुपात बिहार में पिछले तीन सालों से 30 प्रतिशत के करीब है। कहा जाता रहा है कि सीडी रेशियो की खराब स्थिति का कारण विधि-व्यवस्था, सड़क-बिजली जैसी आधारभूत संरचनाओं का संतोषजनक नहीं होना रहता है। मगर पिछले कुछ वर्षो में इसमें सुधार हुआ है। हां, बिजली की स्थिति में उतना सुधार नहीं हो पाया है क्योंकि नये ताप बिजली घर के लिए केन्द्र को प्रस्ताव तो भेजा गया मगर कोल लिंकेज की स्वीकृति अभी तक नहीं हो पायी है। इन परेशानियों के बावजूद हमने 12 प्रतिशत से अधिक का विकास दर हासिल किया। विधि-व्यवस्था की स्थिति सुधरी मगर सीडी रेशियों में सुधार नहीं हो पा रहा है। बैंकों अपेक्षित सहयोग न मिलना इसकी मूल वजह है। इसी साल फरवरी में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नन डा.सुब्बा राव पटना आये थे तो उन्होंने ने भी चालू वित्तीय वर्ष में सीडी रेशियो को बढ़ाकर कम से कम 35 फीसदी करने का निर्देश बैंकों को दिया था।

15 प्रखंडों में नहीं है एक भी व्यावसायिक बैंक की शाखा

मुख्यमंत्री ने जनता दरबार में पहुंचने वाली शिकायतों के हवाले कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक की विभिन्न योजनाओं में कर्ज मुहैया कराने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। इसकी मूल वजह बैंक शाखाओं का अभाव है। 15 हजार की आबादी पर एक बैंक का राष्ट्रीय औसत है जबकि बिहार में 22500 आबादी पर एक बैंक है। 15 प्रखंड ऐसे हैं जहां व्यावसायिक बैंक की एक भी शाखा नहीं है। राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंचने के लिए अभी 2300 बैंक शाखाएं खोलने की जरूरत है।

वित्तीय समावेशन के लिए माइक्रो फाइनेंस महत्वपूर्ण जरिया है। इसके तहत स्वयंसहायता समूहों का वित्त पोषण एक महत्वपूर्ण रणनीति है मगर बिहार में इसमें अपेक्षित प्रगति नहीं हो पायी है। वजह यह कि स्वयं सहायता समूहों को ऋण देने में भी बैंकों से सहयोग नहीं मिल रहा।

डीआईआर यानी डिफरेंशियल रेट आफ इंटरेस्ट योजना पर भी मुख्यमंत्री ने गहरा असंतोष जाहिर किया। कहा कि इस येाजना के तहत बैंकों द्वारा गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को 4 फीसदी ब्याज की दर पर कर्ज उपलब्ध कराया जाना है। मगर 200-2010 में उपलब्धि रही मात्र 0.11 प्रतिशत।

इंदिरा आवास के लिए मिले 20 हजार तक कर्ज

उन्होंने इंदिरा आवास योजना के तहत लाभाथियों को डीआरआई योजना के तहत घर बनाने के लिए उनकी आवश्यकता के अनुसार 20 हजार रुपये तक कर्ज मुहैया कराने का अनुरोध किया। श्री कुमार ने कहा कि शून्य बैलेंस पर खाता खोलने में भी बैंकों से सहयोग नहीं मिल रहा। फलत: कई कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में परेशानी हो रही है। बालिका साइकिल योजना के तहत ऐसा खाता नहीं खोलने के कारण छात्राओं को नकद भुगतान किया जा रहा है।

उन्होंने अनुरोध किया कि सीडी रेशियो में अपेक्षित वृद्धि लाने के लिए मुख्यालय से बड़े अधिकारी प्रदेश में हर तिमाही दौरा करें और ग्रामीण क्षेत्रों में भी जाकर बैंकों की कार्य पद्धति व उपलब्धियों की समीक्षा करें।

मुख्यमंत्री ने शिक्षा ऋण उपलब्ध कराने की गति और बढ़ाने की मांग की। कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल 32 हजार करोड़ का वित्त पोषण हुआ है मगर बिहार के छात्रों का हिस्सा मात्र 1737 करोड़ ही रहा। जो 5.4 फीसदी है। इसे बढ़ाकर 10 फीसदी करने की जरूरत बतायी।