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फसलों के जहरीले तत्वों पर अब होगा नियंत्रण

रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में अब जीन साइलेंसिंग तकनीक पर रिसर्च होगा। इस तकनीक के माध्यम से फसलों के हानिकारक टॉक्सिन्स (जहरीले तत्वों) को दूर किया जाएगा। इससे कुछ हानिकारक तत्वों की वजह से अनुपयोगी कही जाने वाली फसलें उपायोगी हो जाएंगी। अभी इस तकनीक का इस्तेमाल कुछ विकसित देशों में हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि तिवरा (लाखड़ी) सहित कुछ उपयोगी फसलों को उसमें पाए जाने वाले हानिकारक टॉक्सिन्स की वजह से केंद्र सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे इसके उत्पादन सहित सभी कार्यों पर रोक लग गई है। जीन साइलेंसिंग तकनीक से इन समस्याओं का निदान किया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तकनीक का उपयोग टमाटर के फ्लेवर सेवर वेराइटी में की गई है।

इससे टमाटर अधिक दिनों तक सुरक्षित रह जाता है। जबिक सामान्य तौर पर पेड़ से तोड़ने के दूसरे दिन ही टमाटर सड़ने लगता है। इसकी वजह इसमें मौजूद इथिलिन है, जो टमाटर के बाहरी सेल को धीरे-धीरे खराब करना शुरू कर देता है। कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.संजय कुमार पांडेय ने जीन साइलेंसिंग तकनीक के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) नई दिल्ली से वित्तीय सहयोग देने का आग्रह किया है।

कैंसर पर नियंत्रण

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक जीन साइलेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल कर कैंसर जैसी बीमारी पर नियंत्रण किया जा रहा है। इस तकनीक में कैंसर फैलाने वाली जीन की पहचान कर उस जीन के काम को ऑफ (बंद) कर दिया जाता है, फिर कैंसर बनाने वाले सेल को ऑफ कर दिया जाता है। इससे कैंसर नियंत्रित रहता है।

यह है जीन साइलेंसिंग तकनीक

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतीश वेरुलकर ने बताया कि कुछ पौधों में टॉक्सिन्स (जहरीले तत्व) बनने की वजह उसके कुछ जीन होते हैं। ऐसे जीन की पहचान कर उसके फंक्शन को ऑफ कर देते हैं। इससे टॉक्सिन्स व बीमारी वाले जीन का विकास रुक जाता है। इस तकनीक को जीन साइलेंसिंग तकनीक कहते हैं। इस तकनीक में जिस फसल से टॉक्सिन्स हटाना है, उसके जीन का कैरेक्टर पता होना चाहिए। ऐसे हानिकारक जीन को ढूंढ़ना बहुत मुश्किल होता है। इसके लिए हाई टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है।

तिवरा फसल के लिए उपयोगी

कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉ.कृष्णकुमार साहू का कहना है कि जीन साइलेंसिंग तकनीक तिवरा (लेथाइस) के लिए उपयोगी होगी। कुछ हानिकारक टॉक्सिन्स की वजह से इस पर काफी सालों से लगभग प्रतिबंध की स्थिति बनी हुई है। इस तकनीक का उपयोग कर तिवरा के हानिकारक जहरीले तत्व को हटाकर इसे उपयोगी बनाने की पहल की जा रही है। तिवरा की दाल छत्तीसगढ़ के गरीब वर्ग के लोगों के लिए प्रोटीन का प्रमुख साधन है।