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फसलों के लिए फ्लाइ ऐश बेहतर खाद

धनबाद : पावर प्लांटों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा फ्लाइ ऐश फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में वरदान साबित हो सकता है. धनबाद स्थित सिंफर के दो वैज्ञानिकों की खोज में यह दावा किया गया है. पढ़िए यह रिपोर्ट.


केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर), धनबाद के वैज्ञानिकों की नयी खोज पावर प्लांटों एवं किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है. अभी कचरा के रूप में डिस्पोजल में पावर प्लांटों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा फ्लाइ एेश का उपयोग खेती के लिए खाद के रूप में किया जा सकता है. इससे फसलों की पैदावार में 25 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है. यानी कोयला की राख उर्वरक खाद का विकल्प होगी. सिंफर की डिगवाडीह (धनबाद) इकाई के वरिष्ठ वैज्ञानिक अारइ मेस्टो ने इस विषय पर गहन शोध किया है. मेस्टो के अनुसार, अभी वेस्ट के रूप में फेंके जा रहे फ्लाइ एेश को खेत में डाला जा सकता है.


इसके लिए पहले खेत की मिट्टी तथा फ्लाइ एेश की प्रयोगशाला में जांच जरूरी है. जांच की यह सुविधा सिंफर के प्रयोगशाला में उपलब्ध है. बताया कि प्रयोग के तौर पर फ्लाइ एेश का इस्तेमाल टाटा स्टील के झरिया कोयलांचल स्थित जामाडोबा इलाके, बोकारो के चंद्रपुरा स्थित डीवीसी समेत कुछ संस्थानों में बागवानी में किया गया है.


सभी जगह प्रयोग सफल रहे हैं. टाटा स्टील ने झरिया कोयलांचल स्थित जामाडोबा में जो हरा-भरा पार्क विकसित किया है, उसकी बुनियाद में फ्लाइ ऐश ही हैं. फ्लाई ऐश का खाद के रूप में उपयोग हानिकारिक नहीं है. फ्लाइ एेश मिट्टी के अंदर पानी पकड़ने की क्षमता बढ़ाती है. साथ ही अगर मिट्टी कड़ी हो तो फ्लाइ एेश उसे नरम भी कर देता है.


नाइट्राइट फर्टिलाइजर हो सकता है यूरिया का विकल्प : मेस्टो कहते हैं कि नाइट्राइट फर्टिलाइजर यूरिया का नया विकल्प हो सकता है. यह तकनीक थोड़ी महंगी है. लेकिन, यह पर्यावरण के लिए अच्छा है.


अभी इस तकनीक को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में राजस्थान के एक पावर प्लांट में शुरू करने की योजना है. इस तकनीक पर शोध के लिए अारइ मेस्टो का चयन इस वर्ष सीवी रमण रिसर्च फेलोशिप के लिए हुअा है. मेस्टो आगामी 20 मार्च से अमेरिका में तीन माह तक इस विषय पर शोध करेंगे.


भूमिगत अाग पर नया शोध : सिंफर की धनबाद इकाई में माइंस वेंटिलेशन में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार राय ने कोयला खदानों में धधक रही भूमिगत अाग पर काबू के लिए नयी तकनीक ईजाद की है. इसके लिए उन्होंने देश के 78 खदानों से कोयला के अलग-अलग सैंपल को एकत्रित किया. कोयला के इन सैंपलों पर 934 परीक्षण किया है. डॉ. राय कहते हैं वेट ऑक्सीडेशन पोटेंशियल तकनीक से कोयले की ज्वलनशीलता का पता लगाया जा सकता है.


इसके जरिये अाकलन किया जा सकता है कि किस खदान में कोयला का दोहन कितने दिनों के अंदर किया जा सकता है. पुरानी तकनीक में यह पूरी तरह सटीक नहीं होता था. कारण कोयला में नमी के चलते उसकी ज्वलनशीलता का सही पता नहीं चल पाता था. नयी तकनीक में कोयला की नमी खत्म हो जाती है. बताया कि भारत में सबसे ज्यादा ज्वलनशीलता असम के कोयला में पायी जाती है, जबकि धनबाद-झरिया में पाया जाने वाले कोयला में यह सबसे कम है.


दोनों वैज्ञानिकों को राष्ट्रपति करेंगे सम्मानित : सिंफर के दोनों वैज्ञानिकों अारइ मेस्टो एवं डॉ संतोष कुमार राय का चयन इस वर्ष नेशनल जियो साइंटिस्ट अवार्ड के लिए हुअा है. संभवतः अप्रैल के प्रथम सप्ताह में राष्ट्रपति डॉ प्रणब मुखर्जी दोनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार देंगे. श्री मेस्टो वर्ष 2005 से सिंफर के डिगवाडीह कैंपस से जुड़े हुए हैं, जबकि डॉ राय वर्ष 1995 से सिंफर, धनबाद में कार्यरत हैं.