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फिर बढ़ेंगे चीनी और प्याज के दाम!

नई दिल्ली। पांच लाख टन चीनी को निर्यात की अनुमति देने और प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य [एमईपी] को कम करने के बारे में सोमवार को फैसला किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक खाद्य मामलों पर मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह [ईजीओएम] की बैठक में इस पर विचार-विमर्श होने की संभावना है। विशेषज्ञ मानते हैं, यदि चीनी निर्यात को अनुमति दी जाती है और प्याज का एमईपी घटाया जाता है तो इनके दामों में फिर तेजी देखने को मिल सकती है।

पिछली बैठक में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुआई में ईजीओएम ने देश में चीनी की कीमत और इसकी उपलब्धता की समीक्षा की थी। लेकिन प्रमुख मंत्रियों की गैर हाजिरी में चीनी निर्यात के बारे में कोई फैसला नहीं किया। इस पर जब खाद्य मंत्री के.वी.थामस से पूछा गया तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि चीनी निर्यात का मामला जल्द ही ईजीओएम के समक्ष आएगा। हालांकि सूत्रों ने सोमवार को होने वाली ईजीओएम की बैठक की पुष्टि करते हुए कहा कि इसमें चीनी के साथ ही प्याज के एमईपी पर भी विचार किया जाएगा। सरकार ने दिसंबर, 10 में ओपन जनरल लाइसेंस [ओजीएल] के तहत पाच लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी थी। पर खाद्य मुद्रास्फीति की ऊंची दर को देखते हुए इस फैसले को रोककर रखा। भारतीय चीनी मिल संघ [इस्मा] की अगुआई में चीनी उद्योग घरेलू माग से कहीं अधिक उत्पादन होने के चलते चीनी निर्यात की अनुमति माग कर रहा है। सरकारी अनुमान के मुताबिक 2010-11 के फसल वर्ष [अक्टूबर से सितंबर] में चीनी उत्पादन 2.45 करोड़ टन होने की उम्मीद है। पिछले वर्ष यह 1.9 करोड़ टन ही था। चीनी की घरेलू माग 2.2 करोड़ टन रहने की उम्मीद जताई गई है।

प्याज के निर्यात मूल्य पर सूत्रों का कहना है कि कृषि मंत्रालय ने इस पर चिंता जताई है और इसे कम किए जाने की मांग की है। प्याज की कीमतों में आई नरमी को देखते हुए पिछले सप्ताह ही किसानों के प्रदर्शन के कारण सरकार ने इसके निर्यात पर से प्रतिबंध हटा लिया था। लेकिन दामों को अंकुश में रखने के लिए एहतियाती उपाय के तहत न्यूनतम निर्यात मूल्य को 600 डॉलर प्रति टन कर दिया था। प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य को घटाकर 400 डॉलर प्रति टन करने का प्रस्ताव है। अभी चीनी का खुदरा भाव 32 से 34 रुपये प्रति किलो है। वहीं प्याज 20 से 25 रुपये प्रति किलो में मिल रहा है। डेढ़ महीने पहले यह 70 से 80 रुपये प्रति किलो तक चढ़ गया था।

आलू भी दिखा सकता है तेवर

लखनऊ। सब्जियों में एक आलू ही था, जिसके दामों से लोगों को कुछ राहत थी। लेकिन आने वाले समय में इसके भाव भी बढ़ जाएं, तो ताज्जुब नहीं। आलू की फसल को मौसम की जोरदार मार पड़ी है। अनियत ठंड के चलते उत्तर प्रदेश में आलू की कम से कम 20 प्रतिशत फसल चौपट हो गई है। उत्तर प्रदेश आलू का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

आलू किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष मुख्तियार सिंह ने बताया कि जनवरी अंत में चिलचिलाती ठंड और फरवरी के शुरू में अचानक पारा बढ़ने से यह नुकसान हुआ है। प्रदेश सरकार ने भी आलू की फसल को हुए नुकसान की बात स्वीकार की है, लेकिन उसने नुकसान का अनुमान पांच प्रतिशत से अधिक नहीं रखा है। प्रदेश के प्रमुख आलू उत्पादक क्षेत्रों में आगरा, मेरठ, अलीगढ़, कानपुर, मुरादाबाद, लखनऊ, इलाहाबाद और फिरोजाबाद प्रमुख हैं। उत्तर प्रदेश में आलू का सत्र अक्टूबर से लेकर मार्च के महीने तक का होता है। चीन और रूस के बाद आलू उत्पादन के मामले में भारत का दुनिया में तीसरा स्थान है। उत्तर प्रदेश के अलावा यह पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और बिहार में बड़ी मात्रा में उगाया जाता है।