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फिर बारिश में खराब होगा करोड़ों का धान, संग्रहण केंद्रों में है 10 लाख क्विंटल धान

बिलासपुर. एक बार फिर बारिश में करोड़ों रुपए का धान सड़कर खराब हो जाएगा। इससे पहले भी जिले के संग्रहण केंद्रों में करोड़ों रुपए का धान खराब हो चुका है, लेकिन मार्कफेड ने इससे सबक नहीं ली है। जिले में बारिश की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी भी संग्रहण केंद्रों में करीब 10 लाख क्विंटल धान रखा हुआ है। जिले के खरीदी केंद्रों में इस साल अक्टूबर से फरवरी तक 40 लाख क्विंटल से ज्यादा धान की खरीदी हुई। शुरुआत में तो खरीदी केंद्रों से मिलर्स ने सीधे धान का उठाव कर लिया लेकिन इसके बाद धान संग्रहण केंद्रों में रखा गया।
 
संग्रहण केंद्रों से धान उठाव की रफ्तार शुरू से ही धीमी रही। यहीं वजह है कि इस साल खरीदा गया साढ़े छह लाख क्विंटल धान वहां अभी रखा हुआ है। वहीं पिछले साल का साढ़े तीन लाख क्विंटल को सड़ा हुआ मानते हुए मिलर्स ने उठाव नहीं किया है। जिले में बारिश की शुरुआत हो चुकी है और 15 जून के बाद मानसून कभी भी दस्तक दे सकता है। मानसून आते ही यहां झमाझम बारिश होगी और संग्रहण केंद्रों में रखे धान भीग कर खराब होगा। मार्कफेड के अधिकारी कैप कवर से धान को सुरक्षित रखने का दावा हर बार की तरह इस दफा भी कर रहे हैं लेकिन उनके दावे की पोल बारिश से खुल जाएगी।
 
भरनी, मोपका, बिल्हा, पेंड्रा और सेमरताल के संग्रहण केंद्रों में धान की सुरक्षा के लिए हर साल लाखों रुपए खर्च होते हैं लेकिन यहां हर वर्ष करोड़ों रुपए का धान खराब हो जाता है। इससे मिलर्स और प्रशासन के बीच विवाद की स्थिति पैदा होती है। प्रशासन मिलर्स पर खराब हो चुके धान की कस्टम मिलिंग का दबाव डालता है और मिलर्स हड़ताल तक करने पर आमदा हो जाते हैं। यदि बारिश के पहले ही धान का उठाव कर लिया जाएं तो विवाद की नौबत ही नहीं आएगी।  
 
दो साल में 50 करोड़ रुपए की क्षति   
 
पिछले दो सालों में धान के खराब होने की वजह से शासन को करीब 50 करोड़ रुपए की क्षति का अनुमान है। 2012 में जून से नवंबर तक बारिश में भीगने की वजह से दो लाख क्विंटल धान खराब हुआ था। इसकी कीमत 24 करोड़ रुपए थी। इससे सबक न लेते हुए मार्कफेड ने 2013 में भी करीब इतना ही धान खराब कर दिया। बारिश से पहले धान का उठाव नहीं हुआ नतीजतन धान सड़कर खराब हो गया। इस बार भी बारिश में धान सड़ेगा और करोड़ों का नुकसान होगा।  
 
इसलिए सड़ता है धान  

- सुरक्षा व रखरखाव पर पर्याप्त खर्च नहीं किया जाता।    
- क्षमता कम होने के बावजूद अन्य जिले के धान रखा 
जाता है।   
- केप कवर की गुणवत्ता ऐसी नहीं कि बारिश से बचाव 
कर सके।   
- बारदाने भी गुणवत्ताहीन, कई तो छूते ही फट जाते हैं।   
- बारिश के दौरान अक्सर गायब रहते हैं संग्रहण केंद्र प्रभारी।   
- मॉनिटरिंग के अभाव में 
ढीला कामकाज।   
- गड़बडिय़ों में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई 
का अभाव।   
- धान सडऩे से होने वाले नुकसान को लेकर कोई गंभीरता नहीं।