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फूलमती: वह सचमुच ग्राम प्रधान है

आजमगढ़ [जासं]। अन्याय सहना उन्होंने नहीं सीखा। फकत सात साल की थीं जब उन्होंने कदाचार के खिलाफ बिगुल फूंका। कीमत बड़ी चुकानी बड़ी अर्थात पढ़ाई छूट गयी लेकिन हौसले का साथ न छूटा। कदाचार के खिलाफ जंग जारी रही और वर्ष 2005 में कक्षा 2 पास यह महिला बनीं अपने गाव की मुखिया।

बात हो रही है फूलमती त्रिपाठी की। वह अजमतगढ़ विकास खण्ड की ग्राम पंचायत कादीपुर रजादेपुर की प्रधान हैं। मायका है उनका जनपद के अहरौला ब्लाक स्थित बसही गाव में। बात शुरू करने के पहले चर्चा कर ली जाय उनके तब के बागियाना तेवर पर जब उनकी उम्र थी महज 7 साल। आज से लगभग 35 साल पहले अपने मायके के प्राथमिक विद्यालय में उनका दाखिला हुआ। उस समय विद्यालयों में बच्चों को मध्याह्न भोजन की जगह दलिया व पकौड़ी दी जाती थी लेकिन विद्यालय के अध्यापक अपने लिए अच्छा खाद्य पदार्थ अलग से बनवाते थे और बच्चों को खराब दलिया व बासी पकौड़ी देते थे।

फूलमती बताती हैं कि उनसे यह भेदभाव देखा नहीं गया और एक दिन बासी पकौड़ी हाथ में लिए उन्होंने एक अध्यापक को पटरी से पीट दिया। बात बढ़ गयी और उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। इसके बाद बालकाल से ही वह अत्याचार के खिलाफ लड़ने लगीं। रजादेपुर स्थित चार पुरवे की ग्राम सभा में एक ही तिवारी परिवार है। वहीं उनका विवाह हुआ। पति राजेन्द्र त्रिपाठी खेती का कार्य निबटाने के बाद जजमानी में निकल जाते थे और फूलमती गाव के गरीबों का दुख-दर्द सुनने और उसके समाधान में लग जाती थीं। उनकी नेतृत्व क्षमता देख गाव की महिलाएं अक्सर उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित करती थीं। वर्ष 2005 में वह दिन भी आया जब फूलमती प्रधानी के चुनाव में कूद पड़ीं।

प्रधान बनने के बाद उन्होंने सर्व प्रथम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू की। गाव में पोखरे के गलत पट्टे और इसके राजस्व को सरकारी खाते में जमा न करने का मामला उठाते हुए अधिकारियों के सहयोग से पूर्व प्रतिनिधि से 5 हजार रुपये की रिकवरी करवाई। इन्होंने अगली लड़ाई सार्वजनिक पोखरे के फर्जी बैनामे के विरुद्ध शुरू की। अधिकारियों से मामला नहीं सुलझा तो वह हाईकोर्ट पहुंच गयीं। इनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य दलित बस्ती में सीसी रोड का निर्माण रहा। इस मार्ग पर वर्षो से दबंगों का कब्जा था। इसी रास्ते के विवाद में गाव में एक बार पीएसी भी तैनात हुई लेकिन फूलमती ने अपनी नेतृत्व क्षमता से लोगों में समझौता कराते हुए अधिकारियों की मदद से अवैध कब्जा हटवाया तथा सीसी रोड का निर्माण करवाया।

पिछले दिनों उन्होंने प्रशासनिक सहयोग से जच्चा बच्चा केंद्र की बुनियाद भी डाली लेकिन एक बार फिर विवाद आड़े आया। दीवार 7 फीट बनने के बाद काम बंद हो गया लेकिन फूलमती ने हार नहीं मानी। वह कहती हैं गाव का मामला है इसे जल्द ही निबटा लिया जायेगा। फूलमती सभी बैठकों में स्वयं जाती हैं और अपनी बात अधिकारियों के सामने रखती हैं। भाग-दौड़ के लिए उन्होंने लोन पर दो पहिया वाहन खरीदा है। उनकी पहचान एक आदर्श प्रतिनिधि के रूप में है।

अब भले ही चूल्हा चौके का जिम्मा छोटी पुत्री ने संभाल लिया हो लेकिन दो पुत्रियों व एक पुत्र की गृहस्थी पति के साथ मिलकर चलाने वाली फूलमती त्रिपाठी आज भी एक घरेलू महिला का सारा दायित्व निभाती हैं। गाव के लोगों का भी प्रधान के प्रति नजरिया अच्छा है। राजकरन निषाद, रविन्द्र नायक, हसई राजभर, मनोहर, मुराली आदि का कहना है कि हमें ऐसे ही नेतृत्व की जरूरत थी। इनके प्रधान बनने के बाद गाव में विवादों की संख्या घटी है।

महिलाएं हों गंभीर: फूलमती

ग्राम प्रधान फूलमती त्रिपाठी कहती हैं कि महिलाएं अपने अधिकार के प्रति जागरूक होकर दायित्वों का गंभीरतापूर्वक निर्वहन करें। महिला सशक्त होंगी तभी समाज सशक्त होगा। भविष्य के बारे में उनका सारा जोर शिक्षा, चिकित्सा और गरीबी उन्मूलन पर है।