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बाबरी मस्जिद विध्वंस केस: सुप्रीम कोर्ट और जस्टिस लिब्रहान को जो दिखा वो सीबीआई कोर्ट न देख पाई?

-बीबीसी,

छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस कुछ अराजक तत्वों के अचानक हमले का नतीजा था या सुनियोजित और संगठित प्रयास का परिणाम? इतिहास में यह सवाल हमेशा पूछा जाएगा.

वेदों में कहा गया है कि सत्य का मुख सोने के पात्र से ढका हुआ होता है. सत्य की खोज श्रमसाध्य और अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है.

सत्य अलग-अलग कोण से अलग दिखता है और देखने वाले की नज़र से भी.

मैं, बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्मभूमि प्रकरण में एक दर्शक रहा हूँ. चालीस साल तो प्रत्यक्ष और उसके पहले की घटनाओं को फ़ाइलों और किताबों के ज़रिए जाना-समझा है.

वास्तव में यह कहानी दिसम्बर 1949 से शुरू होती है, जब रात में पुलिस के पहरे के बीच मस्जिद में भगवान राम की मूर्तियाँ प्रकट हुईं या जैसा कि पुलिस रिपोर्ट में है कि "चोरी से रखकर मस्जिद को अपवित्र कर दिया गया."

एक धर्म के लोगों का जबरन दूसरे धर्म के प्रार्थनागृह पर क़ब्ज़ा.

सीबीआई के मुताबिक़ ये षड्यंत्र था

लेकिन सीबीआई उतना पीछे नहीं गई, सीबीआई की कहानी पिछले शिलान्यास के आसपास शुरू होती है. चार्जशीट में उल्लेख किया गया कि हाईकोर्ट ने 14 अगस्त 1989 और फिर सात नवम्बर 1989 को विवादित राम जन्मभूमि परिसर में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था, जो छह दिसम्बर 1992 तक जारी था.

इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण की माँग को लेकर सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा शुरू की.

एक अक्तूबर 1990 को शिव सेना अध्यक्ष बाल ठाकरे ने मुंबई में आडवाणी का स्वागत किया और उन्होंने वहाँ की जनसभा में यह संकल्प दोहराया.

इसके बाद जून 1991 में भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता में आ गई. मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने मुरली मनोहर जोशी और पूरे मंत्रिमंडल के साथ अयोध्या में राम जन्मभूमि का दर्शन कर वहीं मंदिर निर्माण का संकल्प लिया.

17 जुलाई 1991 को शिवसेना सांसद मोरेश्वर सावे ने कल्याण सिंह को पत्र लिखकर राम मंदिर निर्माण तत्काल शुरू करने की बात कही.

जवाब में कल्याण सिंह ने 31 जुलाई को पत्र लिखकर कहा कि ज़रूरी कार्यवाही हो रही है.

इसके बाद कल्याण सरकार ने वहाँ मस्जिद के सामने ज़मीन और कई मंदिरों का अधिग्रहण कर हाइवे से चौड़ी सड़क बनवायी.

साथ ही कांग्रेस सरकार ने बगल में राम कथा पार्क के लिए अधिग्रहीत 42 एकड़ ज़मीन विश्वहिंदू परिषद को दे दी.

देश भर से आए कार सेवकों को छह दिसम्बर को तम्बू कनात लगाकर यहीं टिकाया गया. यहीं पर लाठी डंडों से लैस कारसेवकों ने पाँच दिसम्बर को रस्सियों, कुदाल और फावड़े लेकर टीले पर मस्जिद गिराने का रिहर्सल किया.

इस तरह सीबीआई के मुताबिक़ बाबरी मस्जिद को गिराने का यह लम्बे समय से चला आ रहा सुनियोजित षड्यंत्र था.

जिसमें संघ परिवार के विभिन्न संगठनों के अलावा शिव सेना के बड़े नेता शामिल थे.

सीबीआई ने अपनी चार्जशीट पांच अक्तूबर 1993 को पेश कर दी.

पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.