Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/बंजर-होते-हिमालय-की-सुध-अनिल-प्रकाश-जोशी-8902.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | बंजर होते हिमालय की सुध- अनिल प्रकाश जोशी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

बंजर होते हिमालय की सुध- अनिल प्रकाश जोशी

हिमालय क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में आई त्रासदियां कई मौंजू सवाल खड़े कर रही हैं। उत्तराखंड का ही उदाहरण लीजिए। इस राज्य ने पिछले चार वर्षों में बहुत कुछ झेला है। करोड़ों रुपये की संपत्तियों का नुकसान और हजारों जानों का खो जाना क्या कोई सामान्य मुद्दा है? इन घटनाओं ने देश-दुनिया को झकझोरा। मगर जल्दी ही बिना दवा के ही घाव भर गए और फिर नए सिरे से घटनाएं सामने आने लगी हैं। यहां यह नहीं कहा जा सकता कि हिमालय क्षेत्र में ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं। वास्तविकता यह है कि जिस तरह से विकास का रोडमैप देश-दुनिया में तैयार हो रहा है, वह इस तरह की त्रासदियों को बार-बार न्योता देगा। जब बुलेट ट्रेन अथवा स्मार्ट शहरों की चिंता ही सरकार की प्राथमिकता में हो और पर्यावरण को हाशिये में डाल दिया गया हो, तो हिमालय का गुस्सा लाजिमी है।

यहां सवाल यही है कि आखिर हिमालय को बचाए कौन! आधुनिक युग में प्रकृति के संरक्षण के इस सिद्धांत का कोई ज्यादा मतलब नहीं रह गया है कि जो भोगे, वही बचाए। इसकी वजह यह है कि हिमालय का ज्यादा लाभ स्थानीय निवासी नहीं उठाते, और जिनके खाते में यह लाभ पहुंचता है, वे इसके संरक्षण में कोई भागीदारी नहीं करते। जैसे कि देश के वे हिस्से, जो हिमालय की नदियों से तरते हैं, वे परोक्ष या अपरोक्ष रूप में हिमालय को बचाने में अपनी कोई सक्रिय भागीदारी नहीं निभाते। अलबत्ता हिमालय में आ रही विपदाओं के बड़े दोषी वही हैं। उनकी जीवन शैली में अत्यधिक ऊर्जा व जल खपत ने ही धरती के ताप को बढ़ाया� है। शृंखलाओं में बन रहे बांधों ने स्थानीय गांवों के लिए पानी-बिजली की तो कभी चिंता नहीं की, बल्कि देश को रोशन किया है।

ऐसे में हिमालय को बचाने के लिए हिमालयजनों की मदद जरूरी है। असल में, हिमालय को बचाने की पहल हिमालय में ही हो सकती है। मगर दिक्कत यह है कि लंबे समय से नकारे हुए स्थानीय लोग अब घर-गांव छोड़ने पर विवश हैं। एक के बाद एक नए कानून उनके अधिकारों को न सिर्फ कुचल दे रहा है, बल्कि उनकी स्थानीय आवश्यकताओं को भी पूरी तरह नजरंदाज करता है। यानी पानी-वन के ये रक्षक खुद हिमालय की संवेदनशीलता के शिकार हैं। जिसका परिणाम है कि हिमालय जनविहीन हो रहा है।

ऐसे में कहना अतिशयोक्ति नहीं कि आने वाले समय में हिमालय एक बंजर पहाड़ होगा। हिमालयी रक्षा अभियान को अगर गंभीरता से लेना है, तो यह जरूरी है कि इसे स्थानीय लोगों के जन-जीवन से जोड़कर देखा जाए। अब भी समय है कि हिमालयजनों को जोड़कर हिमालय की चिंता की जाए। इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय संसाधनों पर आधारित रोजगार यहां के लोगों को मिले। अब भी समय है कि हिमालयी जनों को जोड़कर हिमालय की चिंता होनी चाहिए। वरना खाली होता हिमालय हमें और बड़ी चिंता में डाल देगा। हिमालय में भी जीवन है, जान है। उसे भी हमारी देखरेख की आवश्यकता है। उसे मात्र भोगने वाली वस्तु न समझा जाए। वह असल में, देश का हृदय है, जहां से नदियों वाली धमनियां देश को जीवन देती हैं, लिहाजा इसे नकारना अपने जीवन और अस्तित्व को संकट में डालना है।

लेखक जाने-माने समाजसेवी और पर्यावरणविद हैं