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बंद कमरे में पड़े ही एक्सपायर हो गईं 19 लाख की दवाइयां

गुना। प्रदेश के 27 जिलों में भेजी गईं जेनेरिक दवाओं की खरीदी और वितरण के नाम पर खपाने का मामला सामने आया है। इसका खुलासा भी एडीएम गुना की जांच में हुआ, जब उन्होंने एक दशक से बंद ड्रग वेयरहाउस का कक्ष खुलवाया। इसमें करीब 19 लाख की एक्सपायर दवाएं पाई गईं।


इस पर एडीएम ने सीएमएचओ से जवाब तलब किया, तो मालूम चला कि ज्यादातर दवाएं तो बिना जरूरत के दी गई थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दवा खरीदी में प्रदेश स्तर पर किस तरह अनियमितता बरती गई।


दरअसल, प्रदेश सरकार ने सरकारी अस्पतालों में भेजी जाने वाली जेनेरिक दवाओं की खरीदी और वितरण के लिए जनभागीदारी से संचालित ड्रग वेयरहाउस को जिम्मा सौंपा था। इसी क्रम में वर्ष 2006-07 में वेयरहाउस के माध्यम से दवाएं खरीदी गईं।


साथ ही प्रदेश के 27 जिलों में दवाओं को भेज दिया गया। लेकिन ज्यादातर दवाएं सीएमएचओ कार्यालय के ड्रग वेयरहाउस के कक्ष से बाहर ही नहीं आईं। इसी बीच वर्ष 2009 में स्वास्थ्य सेवाएं संचालनालय भोपाल से आदेश जारी हुआ, जिसमें दवाओं को दो टुकड़ों में बांटकर सूची तलब की। इसमें वे दवाएं, जो एक्सपायर हो चुकी हैं और दूसरी वे दवाएं जो अगले छह महीने में एक्सपायर होने वाली हैं।


इस पर सीएमएचओ आफिस गुना से भेजी गई सूची में करीब 9 लाख की दवाएं एक्सपायर होना बताया गया, तो 10 लाख की दवाएं अगले कुछ महीनों में एक्सपायर होने की बात कही। इसके बाद तत्कालीन सीएमएचओ ने संयुक्त संचालक औषधि भोपाल को पत्र लिखकर पूछा कि एक्सपायरी दवाओं का क्या करना है। लेकिन संयुक्त संचालक औषधि भोपाल द्वारा भी किसी तरह की कोई कार्रवाई की गई।


ऐसे पकड़ में आईं एक्सपायरी दवाएं


एक गोपनीय सूचना पर एडीएम नियाज अहमद खान ने सीएमएचओ आफिस के कैंट स्थित ड्रग वेयरहाउस का आकस्मिक निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने उस कक्ष को खुलवाया, जो कई सालों से बंद था।


इसके बाद मालूम चला कि पूरे कक्ष में एक्सपायरी दवाएं भरी हुई थीं। इनका जब आंकलन किया गया तो 19 लाख की दवाएं बिना उपयोग के ही एक्सपायर हो गईं। इसके बाद एडीएम ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर कलेक्टर को सौंप दी।


..तो हो सकता है बड़ा खुलासा


गुना जिले में जेनेरिक दवाओं के बिना उपयोग ही एक्सपायर होने का मामला सामने आने के बाद यदि अन्य जिलों में भी वर्ष 2006-07 में भेजी गईं दवाओं की जांच कराई जाए, तो बड़ा खुलासा होने की संभावना है। क्योंकि, जिस तरह गुना सीएमएचओ द्वारा माना गया है कि ज्यादातर दवाएं बिना जरूरत ही भेजी गई थीं, तो यही प्रक्रिया अन्य जिलों में भी अपनाई गई होगी, जहां भी बड़ी तादाद में मृत दवाएं सामने आ सकती हैं।


यह सवाल उठे


- प्रदेश स्तर से सीएमएचओ कार्यालय को 19 लाख की दवाएं भेजी गई थीं, तो उन्हें पीएचसी व सीएससी पर वितरण क्यों नहीं कराया गया।


- दवाओं की जरूरत नहीं थी, तो लेने से इंकार क्यों नहीं किया गया।


- दवाएं आ चुकी थीं, तो वरिष्ठ कार्यालय से उन दवाओं के बेहतर उपयोग के प्रयास क्यों नहीं किए गए।


- यदि दवाओं की जरूरत नहीं थी, तो इतनी तादाद में दवाएं खरीदकर जिलों को क्यों थोपा गया।


- दवा खरीदी में गड़बड़ हुई है, तो जिम्मेदारों पर क्या कार्रवाई हुई।


- कैंट स्थित स्वास्थ्य विभाग के ड्रग वेयरहाउस का गोपनीय सूचना पर आकस्मिक निरीक्षण किया गया। इस दौरान एक कक्ष में 19 लाख की सरकारी दवाएं एक्सपायर पाई गईं। इस संबंध में सीएमएचओ से पूछने पर मालूम चला कि कई दवाएं बिना जरूरत के ही थोप दी गई थीं। लेकिन इसके बाद सीएमएचओ और वरिष्ठ कार्यालय स्तर पर दवाओं के उपयोग संबंधी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस तरह उक्त कृत्य प्रथम दृष्टया आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है। इसकी रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी गई है। - नियाज अहमद खान, अपर कलेक्टर गुना


- वर्ष 2006-07 में जेनेरिक दवाओं की व्यवस्था सरकार द्वारा जनभागीदारी से संचालित ड्रग वेयरहाउस को सौंपी थी। इसके तहत ही गुना को दवाएं भेजी गई थीं। लेकिन ज्यादातर दवाएं ऐसी थीं, जिनका हाल में उपयोग नहीं हो सकता था। पीएचसी व सीएससी को भी दवाएं नहीं भेज सकते थे, क्योंकि वहां भी जरूरत नहीं थी। - डॉ. रामवीरसिंह रघुवंशी, सीएमएचओ गुना