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बगैर सुनवाई आयोगों ने लौटाए मामले

नई दिल्ली। आरटीआई आवेदकों की लंबित अर्जियों के बढ़ते बोझ से निपटने के देशभर के सूचना आयोगों के तरीकों पर हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि कुछ आयोगों ने मामले बिना सुनवाई किए ही सार्वजनिक प्राधिकारों को लौटा दिए।

अध्ययन कहता है कि इनमें दोनों तरह के मामले थे जिनके तहत प्रथम अपीलीय प्राधिकार ने या तो कोई भी आदेश नहीं दिया था या आदेश दिया लेकिन उसका कार्यान्वयन नहीं हुआ।

दरअसल, आम तौर पर प्रक्रिया यह होती है कि कोई भी सूचना चाहने के लिए आवेदक को पहले विभाग विशेष के लोक सूचना अधिकारी के समक्ष अर्जी दाखिल करनी होती है। अगर 30 दिन बाद जवाब न मिले तो आवेदक विभाग के मुख्य लोक सूचना अधिकारी के समक्ष अपील करता है। यहां भी समाधान नहीं होने पर वह आयोग में जाता है।

देशभर के सूचना आयोगों के वर्ष 2008 के प्रदर्शन पर आधारित नेशनल आरटीआई अवॉर्ड्स सेक्रेटरिएट के इस अध्ययन में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र सूचना आयोग ने बीते वर्ष बड़ी संख्या में मामलों को बिना सुनवाई किए वापस सार्वजनिक प्राधिकार को भेजने का निर्णय किया ताकि निपटारे की गति बढ़ाई जा सके।

अध्ययन में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र सूचना आयोग के तीन आयुक्तों ने पिछले वर्ष उनके समक्ष आए करीब 6,000 मामले सार्वजनिक प्राधिकार को लौटा दिए। उत्तराखंड सूचना आयोग ने भी 60 फीसदी मामले वापस लौटा दिए। इस रुझान को नेशनल आरटीआई अवॉर्ड्स सेक्रेटरिएट ने सूचना के खुलासे के खिलाफ माना। इस पर उत्तराखंड सूचना आयोग ने आपत्ति जताई और कहा कि जिन मामलों में प्रथम अपील दायर नहीं की गई, उन्हें वापस लौटाना कानून के अनुरूप है। लिहाजा इसे सूचना के खुलासे के खिलाफ नहीं माना जाना चाहिए। इस पर आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि अगर प्रथम अपील न की गई हो, तब भी आयोग में सीधे अपील की जा सकती है।

आरटीआई कानून की धारा 18 में ऐसा कहा गया है। अगर ऐसा ही है कि जिन मामलों में पहली अपील दायर नहीं की गई, उन्हें कानून के अनुरूप वापस लौटाया जाना चाहिए तो फिर अन्य आयोगों ने ऐसा क्यों नहीं किया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले सामने आने से कुछ आयोगों के आरटीआई कानून की व्याख्या करने में असमानता नजर आती है।

गौरतलब है कि आरटीआई कानून की धारा 19 और धारा 18 में समान तरह की स्थितियों का उल्लेख है। अगर किसी व्यक्ति को तयशुदा समय के भीतर जवाब नहीं मिलता है या फिर वह जवाब असंतोषजनक होता है तो धारा 18 के तहत वह आयोग में सीधे अपील कर सकता है। वहीं, धारा 19 कहती है कि ऐसे में प्रथम अपील दायर की जानी चाहिए।

आरटीआई मामलों के जानकार पेशे से वकील दिव्यज्योति जयपुरिया कहते हैं कि आरटीआई कानून की धारा 18 और 19 में अस्पष्टता नहीं है। असल में सूचना आयोग इन धाराओं की व्याख्या अलग-अलग तरह से कर रहे हैं। जयपुरिया बताते हैं कि जब लोक सूचना अधिकारी जानकारी देने से इनकार कर दे, अर्जी स्वीकार करने से इनकार दे, गलत जानकारी दे या अपूर्ण जानकारी दे तो धारा 18 लागू होती है जिसके तहत आप सीधे आयोग का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

अगर अधिकारी द्वारा धारा 8 के तहत जानकारी देने से इनकार किया गया हो तो धारा 18 में प्रथम अपील और द्वितीय अपील दायर करने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि वहीं, धारा 19 कहती है कि धारा 18 से इतर स्थितियों में अगर जानकारी देने से इनकार किया गया तो आयोग आवेदक की शिकायत बतौर अपील स्वीकार करेगा और मामले को सार्वजनिक प्राधिकार को लौटा देगा। यहां सार्वजनिक प्राधिकार के मायने लोक सूचना अधिकारी के आला अफसर से हैं।

बहरहाल, अध्ययन में एक और बात दिलचस्प रूप से सामने आई। हरियाणा सूचना आयोग के एक आयुक्त ने उनके समक्ष आए 47 फीसदी मामले लौटा दिए, जबकि उनके ही दो साथी आयुक्तों ने एक भी मामला नहीं लौटाया। इसी तरह, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड के आयुक्तों ने भी एक भी मामला वापस सार्वजनिक प्राधिकार को नहीं लौटाया।

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क्या आपको किसी सूचना आयोग में जाने के बाद पूरी जानकारी मिली? हमें अपना अनुभव बताएं। आप ही इस वर्ष के सबसे बेहतरीन सूचना आयुक्त का चुनाव करेंगे। इसके लिए आप-

1. जाएं वेबसाइट http://rti.jagran.com पर, या

2. एसएमएस भेजें 57272 पर और पहले लिखें RTI फिर स्पेस और उसके बाद लिखें जानकारी मिली हो तो Y और न मिली हो तो N, उसके बाद अपना नाम, राज्य और ऑर्डर संख्या, या

3. हमें फोन करें 09711222577 पर