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बचत दर कम हुई तो मंदी का बढ़ेगा खतरा - जयंतीलाल भंडारी

अर्थ विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी के जोखिम से बचाने के लिए राष्ट्रीय बचत दर में सुधार करना होगा। यह माना जाता है कि 2008 की वैश्विक मंदी का भारत पर कम असर होने के पीछे भारतीयों की घरेलू बचत महत्वपूर्ण कारण थी। वैसे वित्त मंत्रालय ने भी संकेत दिए हैं कि सरकार घरेलू बचत बढ़ाने के लिए कुछ छोटी नई बचत योजनाएं पेश करेगी। कहा गया है कि एक ओर सरकार जल्द ही किसान विकास पत्र (केवीपी) को नए रूप में जारी करेगी। वहीं दूसरी ओर कन्याओं और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए कुछ आकर्षक नई बचत योजनाओं को भी पेश किया जाएगा। वैसे किसान विकास पत्र लोकप्रिय बचत योजना थी और उसमें डाकघरों के जरिये बड़ी धनराशि प्राप्त हो रही थी। दुरुपयोग की आशंका से श्यामला गोपीनाथ समिति की रिपोर्ट के आधार पर किसान विकास पत्र को 2011 में बंद कर दिया गया था।


आकर्षक बचत प्रोत्साहन न होने से लोगों की बचत प्रवृत्ति लगातार घटती गई है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़े यह बता रहे हैं कि भारत की बचत दर चिंताजनक है। 2007-08 के दौरान जो सकल घरेलू बचत दर 36.8 फीसदी थी, वह लगातार घटकर 2011-12 के दौरान 30.8 फीसदी और फिर 2012-13 में और 29 फीसदी के स्तर पर आ गई। छह-सात वर्ष पहले तक लग रहा था कि चीन की तरह भारत भी बचत दर बढ़ाकर विकास की नई मंजिलें हासिल करेगा। मगर ऐसा नहीं हो सका। लेकिन इसके उलट भारत की बचत दर तेजी से गिरने लग पड़ी। बचत योजनाएं आकर्षक न होने के कारण लोगों को लग रहा है कि फिलहाल सोने में निवेश करना ज्यादा समझदारी है। इसीलिए देश में सोने का आयात लगातार बढ़ा है। 2012 में देश ने 864 टन सोना आयात किया था, जबकि 2013 में यह बढ़कर 975 टन हो गया। वर्ष 2014 में सोने की मांग के 1,000 टन पार कर जाने का अनुमान है। सरकार और रिजर्व बैंक ने इसे हतोत्साहित करने की कोशिश जरूर की, लेकिन उसका ज्यादा असर नहीं पड़ा। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, 2012 में देश में करीब 100 टन सोना अवैध रूप से लाया गया, जो 2013 में दोगुना बढ़कर 200 टन हो गया है।

 

यह उस समय हो रहा है, जब घरेलू बचत में कमी से देसी कंपनियां पूंजी प्राप्त करने में इतनी परेशानियों का सामना कर रही हैं कि उन्हें विदेशी पूंजी बाजार की ओर कदम बढ़ाने पड़ रहे हैं। घरेलू बचत में भारी कमी से उत्पादक क्षेत्रों में नई पूंजी नहीं आ पा रही है, जिससे सकल घरेलू उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में, अब घरेलू बचत को आकर्षक बनाने का कोई विकल्प नहीं है। सबसे बड़ी जरूरत इस समय यह है कि इन बचत योजनाओं की ब्याज दर को बढ़ाया जाए। यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि घरेलू बचत का एक बड़ा हिस्सा शेयर और डिबेंचर में निवेश में जाए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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