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बच्चों की तस्करी का केंद्र बने गरीब राज्य-मनोज कुमार झा

नई दिल्ली. यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष लाखों बच्चे गायब होते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय का भी मानना है कि बड़े पैमाने पर बच्चे गायब हो रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर 2008 से लेकर अब तक 4 लाख से ज्यादा बच्चे गायब हो चुके हैं।
 
ज्यादातर बच्चे देश के गरीब राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश आदि से गायब होते हैं। इसके अलावा, महानगरों की झुग्गी-बस्तियों से न जाने कितने बच्चे रोज ही गायब होते हैं। समय-समय पर बच्चों के गायब होने का मामला संसद में भी उठता रहा है। दिल्ली पुलिस के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार गायब होने वाले बच्चों में ज्यादातर वे होते हैं जो अत्यंत गरीब वर्ग के हैं और झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। इस बात को दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त डडवाल ने भी स्वीकार किया था। दिल्ली से भी गायब होने वाले बच्चों की संख्या बहुत ही ज्यादा है।
 
मानवता को शर्मसार कर देने वाली निठारी की कुख्यात घटना जब सामने आई थी, तब तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी ने कहा था कि पूरे देश में गायब होने वाले बच्चों का राज्य स्तर पर एक कम्प्यूटराइज्ड डाटाबेस तैयार किया जाएगा जो सीधा उनके मंत्रालय से जुड़ा रहेगा। उन्होंने कहा था कि प्रत्येक जिले में पहले ऐसा डाटाबेस तैयार किया जाएगा। सभी जिले राज्यों की राजधानी से जुड़े रहेंगे और राज्य सीधे केंद्र से जुड़े रहेंगे। इससे पूरे देश में गायब होने वाले बच्चों की जानकारी उपलब्ध हो सकेगी और पुलिस को कार्रवाई करने में सुविधा होगी। 
 
रेणुका चौधरी ने योजना तो बना दी, पर इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ। मंत्री महोदया ने इसके लिए सारा दोष राज्य सरकारों पर मढ़ दिया। रेणुका चौधरी ने तो गर्भ में पल रहे भ्रूणों तक का डाटाबेस बनाने की योजना बना ली थी। बहरहाल, दिल्ली और पूरे देश में भारी संख्या में बच्चों के गायब होने की घटनाओं ने यह दिखा दिया कि निठारी जैसी खौफनाक घटना के सामने आने के बावजूद पुलिस प्रशासन ने गरीबों के बच्चों की सुरक्षा का कोई ख्याल नहीं किया। ऐसे गंभीर मसले पर राजनेताओं और आला अधिकारियों की ठंडी प्रतिक्रिया से उनकी संवेदनहीनता ही जाहिर होती है।
 
आज पूरे देश के गरीब इलाकों से रोजी-रोटी की तलाश में भारी संख्या में लोग महानगरों में पलायन कर रहे हैं। उनके रहने का ठिकाना महानगरों की जगमगाती रोशनी से अलग किसी नाले के किनारे अथवा रेलवे लाइन से लगती जगहों पर बसी अंधेरे में डूबी झुग्गी बस्तियां ही होती हैं। इन झुग्गी बस्तियों को अगर सूअरबाड़ा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां रहने वाले लोग और उनके परिवार पूरी तरह असुरक्षित होते हैं। इन बस्तियों में ड्रग्स, अवैध शराब और जिस्म के कारोबारी भी सक्रिय होते हैं। जब मां-बाप काम पर चले जाने के बाद अपराधियों के लिए गलियों में घूमते-खेलते बच्चों के बहला-फुसला कर भगा लिया जाना बहुत आसान होता है।
 
कहां जाते हैं गायब हुए बच्चे ?
 
एक सवाल यह खड़ा होता है कि गायब हुए बच्चे आखिर कहां जाते हैं। इस बात में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं कि बच्चों और किशोर-किशोरियों का अपहरण करने या उन्हें बहला-फुसला कर भगा ले जाने में संगठित अपराधी व माफिया गिरोहों का हाथ होता है। इन गिरोहों के एजेंट शिकार की तलाश में बराबर घूमते रहते हैं। ऐसे एजेंटों में महिलाओं की भागीदारी भी कम नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।
 
अपराधी गिरोह गायब बच्चों से तरह-तरह के काम लेते हैं। बाल वेश्यावृत्ति, भीख मंगवाना और लोग दया करके ज्यादा भीख दें, इसलिए उनका अंग-भंग तक कर डालना। बच्चों को वेश्यावृत्ति और पोर्नोग्राफी के लिए विदेशों में भी बेच दिया जाता है। इसके अलावा बंधुआ मजदूर के रूप में भी उनसे काम लिया जाता है। यहां तक कि मानव अंगों के व्यापार के लिए भी उनका इस्तेमाल किया जाता है। कुछ बच्चों को पॉकेटमारी का प्रशिक्षण दिया जाता है तो कुछ को चेन झपटने का। कुछ बच्चों को यह ट्रेनिंग दी जाती है कि कैसे कार का शीशा तोड़ कर कीमती चीजों के लेकर भाग खड़ा होना है। इन बच्चों पर गिरोह का संचालन करने वालों की कड़ी निगरानी रहती है और ये चाह कर भी उनके चंगुल से निकल नहीं सकते।
 
सिर्फ बच्चे ही गायब नहीं होते 
 
सिर्फ बच्चे ही गायब नहीं होते, वयस्क लड़कियां और औरतें भी गायब हो जाती हैं। नौकरी की तलाश में देश के गरीब राज्यों से काफी संख्या में युवा लड़कियां और औरतें महानगरों में अकेले जाने का \'दुस्साहस\' कर बैठती हैं। ऐसा करने के लिए उनके जीवन की भयावह परिस्थितियां उन्हें मजबूर करती हैं। हताशा के दौर में भी जिंदा रहने के लिए संघर्ष की आंतरिक प्रेरणा उन्हें महानगरों की चकाचौंध के बीच ला खड़ा कर देती है, जिनकी तलछट में अंधेरा ही अंधेरा होता है। कई जवान औरतें कोठों पर पहुंचा दी जाती हैं, जहां से निकल पाने का उनके पास कोई रास्ता नहीं होता।
 
जिस्म के दलाल लड़कियों को खाड़ी देशों में अच्छी कमाई का प्रलोभन देकर फांसते हैं। एक बार अगर कोई लड़की खाड़ी देशों में पहुंच जाती है तो वे या नर्स का काम करें या नौकरानी का, वस्तुत: उन्हें बेचा जा चुका होता है और एक वेश्या की भांति ही उनका यौन शोषण होता है। किसी भी तरह का विरोध करने पर उन्हें हिंसा के क्रूरतम रूपों का सामना करना पड़ता है। वे वहां से भागना चाहें तो भाग नहीं सकतीं। उनके पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते हैं। इसके अलावा, इनके पास वापस लौटने के लिए भी पैसे नहीं होते। खाड़ी देशों में इन्हें कई-कई लोगों को बेचा जाता है। 
 
दूसरी तरफ, सेक्स इंडस्ट्री में अब सिर्फ बच्चियों और नवयुवतियों की ही नहीं, अधेड़ और उम्रदराज औरतों की भी मांग है, यहां तक कि वृद्धाओं की भी। आज इंटरनेट पर ऐसी पोर्न साइटों की कोई कमी नहीं है, जिनमें विकृत सेक्स की पराकाष्ठा को दिखाया जा रहा है। हद तो यह है कि 70 से लेकर 80 वर्ष की वृद्धाओं को भी विकृत सेक्स क्रिया में संलग्न दिखाया जा रहा है।
 
एशिया में दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे देश सेक्स इंडस्ट्री के बड़े केंद्र हैं, पर इस क्षेत्र में अब चीन ने इन्हें पीछे छोड़ दिया है। सेक्स के अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह अमेरिका से टक्कर ले रहा है। सेक्स ट्वॉयज के विश्व बाजार पर इसने अपनी गहरी पकड़ बना ली है। भारत मे सेक्स ट्वॉयज के ग्रे मार्केट में यह छाया हुआ है। सेक्स इंडस्ट्री का विस्तार कहीं न कहीं बच्चों और स्त्रियों के यौन शोषण के लिए आधार मुहैया कराता है।
 
मानव तस्करी
 
मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार पूरी दुनिया में मानव तस्करी का सालाना सात से लेकर 12 करोड़ डॉलर का करोबार है। एशिया में प्रत्येक वर्ष तीन से साढ़े चार लाख लोगों की तस्करी होती है। यह तस्करी देश के भीतर और बाहर होती है, यानी महिलाओं और बच्चियों को किसी राज्य से महानगरों में स्थित बड़े वेश्यालयों में बेच दिया जाता है। लड़कों का इस्तेमाल भी बाल वेश्यावृत्ति और पोर्नोग्राफी के लिए जम कर किया जाता है। हाल के वर्षों में भारत मानव तस्करी के एक बड़े केंद्र के रूप में उभरा है। लाखों की संख्या में देश के बाहर और भीतर महिलाओं की तस्करी हो रही है। असम, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश. छत्तीसगढ़ और झारखंड से बड़े पैमाने पर लड़कियों की तस्करी की जाती है। यह बात तो जगजाहिर है ही कि नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका से भी बड़े पैमाने पर नाबालिग और बालिग लड़कियों को वेश्यावृत्ति एवं पोर्नोग्राफी के धंधे में झोंकने के लिए किया जा रहा है।