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बच्चों से दुष्कर्म करने वालोंं को नपुसंक बना दिया जाना सही: मद्रास हाईकोर्ट

बच्चों के साथ दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं से चिंतित मद्रास हाईकोर्ट कहा है कि क्रूर अपराधियों के लिए नपुसंक किया जाना ही एक सजा हो सकती है। हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र से बच्चों के साथ बदसुलूकी और दुष्कर्म के दोषियों को नपुंसक करने की सजा पर विचार करने को कहा है।
अदालत ने बेहद तल्ख शब्दों में कहा कि भारत के विभिन्न हिस्सों में बच्चों से गैंगरेप की वीभत्स घटनाओं को लेकर अदालत बेघर या मूकदर्शक बना नहीं रह सकता।
एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक जस्टिस एन किरुबकरण ने अपने आदेश में कहा कि बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) जैसे कड़े कानून होने के बावजूद बच्चों के खिलाफ अपराध बदस्तूर बढ़ रह हैं।
साल 2012 और 2014 के बीच ऐसे अपराधों की संख्या 38,172 से बढ़कर 89,423 तक पहुंच गई है। जज ने कहा कि अदालत का मानना है कि बच्चों के बलात्कारियों को नपुसंक करने से जादुई नतीजे देखने को मिलेंगे।
उन्होंने कहा कि इस बुराई में निपटने में ये कानून बेअसर और नाकाबिल साबित हो रहे हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि रूस, पोलैंड और अमरीका के नौ राज्यों में ऐसे अपराधियों को बधिया करने का प्रावधान है।
कोर्ट ने कहा कि नपुंसक करने का सुझाव बर्बर लग सकता है, लेकिन इस प्रकार के क्रूर अपराध ऐसी ही बर्बर सजाओं के लिए माहौल तैयार करते हैं। बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे, लेकिन परंपरागत कानून ऐसे मामलों में सकारात्मक परिणाम नहीं दे सके हैं। कोर्ट ने तमिलनाडु के 15 वर्षीय एक बच्चे के यौन शोषण के आरोपी एक ब्रिटिश नागरिक द्वारा मामला रद्द करने के लिए दायर याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान राजधानी दिल्ली में पिछले सप्ताह दो बच्चियों से गैंगरेप के मामलों को संज्ञान में लेते हुए यह बात कही। हाईकोर्ट के जज ने ऐसे मामलों को खून जमा देने वाला करार देते हुए कहा कि ऐसे क्रूर अपराधियों के लिए नपुंसक किया जाना ही एक सजा हो सकती है।
जज ने इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया कि बच्चों से रेप करने के मामलों में सिर्फ 2.4 प्रतिशत लोग ही दोषी ठहराए जाते हैं। जज ने कहा देश में बच्चों के साथ बढ़ रही ज्यादितयोंं से एेसा लग रहा है जैसे लोगों के मन से कानून का भय निकल गया है। इसलिए लोगों में एेसे अपराधों के प्रति भय लाने के लिए आरोपी को नपुंसक करना ही श्रेष्ठ उपाय है। दो-चार मामलों में ही इस सजा का इस्तेमाल करने से समाज में एेसे अपराधों में कमी आएगी।