Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/बत्तीस-के-फेर-में-गरीबी-इला-भट्ट-4038.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | बत्तीस के फेर में गरीबी : इला भट्ट | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

बत्तीस के फेर में गरीबी : इला भट्ट

अब देश की सरकार गरीबी के मानदंडों में संशोधन करने जा रही है, जैसे कि देश को पता ही न हो कि गरीबी के मायने आखिर क्या हैं! सरकार का मानना है कि शहरी क्षेत्र में एक दिन में 32 रुपए और ग्रामीण क्षेत्र में एक दिन में 26 रुपए से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति ‘गरीब’ नहीं माना जा सकता और इसलिए वह सरकार की विभिन्न हितकारी योजनाओं के लिए पात्र नहीं है। लेकिन क्या एक दिन के गुजारे के लिए 32 या 26 रुपए काफी हैं?

यह अच्छी बात है कि यह बहस अब खुलकर सामने आ गई है। अब यह महज विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं का ही विषय नहीं रही, बल्कि उन लोगों तक भी पहुंच गई है, जो गरीबी के बारे में उन सभी से बेहतर जानते हैं। वे हैं देश के आम लोग। दशकों से विशेषज्ञ गरीबी पर अध्ययन कर रहे हैं और उसके आधार पर किताबें लिख रहे हैं। उन्होंने गरीबी के निर्धारण के लिए जटिल पैमाने गढ़ लिए हैं। वे गरीबों की गणना करते हैं, जबकि खुद गरीब यह समझ नहीं पाते कि ये कवायदें उनकी गरीबी को कम करने के लिए की जा रही हैं।

13 लाख महिला कामगारों की संस्था सेल्फ एंप्लायड वूमेंस एसोसिएशन (‘सेवा’) ने इस खुली और व्यापक बहस का स्वागत किया है कि गरीब कौन है और गरीबी के क्या मानदंड हैं। योजना आयोग द्वारा गरीबी की रेखा खींची गई है, लेकिन क्या आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा से जूझ रहे भारत के 70 फीसदी से भी अधिक परिवार गरीब नहीं हैं? क्या वे गरीबों की श्रेणी में नहीं आते हैं? भारत के अधिकांश कामगार असंगठित क्षेत्र से वास्ता रखते हैं और अपनी निम्न आय दर और सामाजिक असुरक्षा के कारण वे कभी काम पर जाते हैं और कभी नहीं जा पाते। चिकित्सा और शिक्षा पर अपेक्षित व्यय उनकी आय से कहीं अधिक होता है। नतीजा यह रहता है कि वे कर्ज में डूब जाते हैं। क्या उन्हें सरकार की मदद की दरकार नहीं है?

सरकार का दोटूक जवाब है: ‘नहीं’। सरकार की मदद पाने से पहले गरीबों को यह साबित करना होगा कि वे एक दिन में 32 या 26 रुपयों से कम खर्च करते हैं। वास्तव में केवल ये आंकड़े ही नहीं, बल्कि वह गरीबी रेखा भी असंगत है, जो भारत के नागरिकों को ‘गरीब’ और ‘गैर-गरीब’ की श्रेणी में बांट देती है। गरीबी रेखा एक युक्ति है, जिसके माध्यम से सरकार गरीबों तक अपनी हितकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना चाहती है, लेकिन इसके निर्धारण के मानदंड अस्पष्ट हैं। मिसाल के तौर पर सरकार की लक्ष्य योजना के अनुसार अहमदाबाद में कुल आबादी के आठ फीसदी लोग ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं! सरकार की सब्सिडी का लाभ केवल उन्हें ही मिलता है, क्योंकि अधिकांश मौकों पर सब्सिडी केवल उन्हीं लोगों के लिए होती है, जो गरीबी रेखा के नीचे होते हैं।

इस रवैये में कई खामियां हैं। अध्ययन बताते हैं कि 50 फीसदी वास्तविक गरीबों के पास बीपीएल कार्ड नहीं होते। जिनके पास बीपीएल कार्ड होते भी हैं, उन तक तंत्र में पैठे भ्रष्टाचार के कारण सब्सिडी नहीं पहुंच पाती। तेजी से बढ़ती महंगाई कमोबेश सभी को गरीब बनाती जा रही है और ऐसे में 32 रुपयों के आधार पर गरीबी का निर्धारण करना इस समस्या का सामना करने का कतई उचित तरीका नहीं हो सकता। इस रवैये में बदलाव लाने की जरूरत है। इसके लिए किसी बीपीएल रवैये की दरकार नहीं है, जिसमें कोई एक व्यक्ति यह तय करता है कि कौन गरीब है और कौन नहीं।

इसके लिए एक केंद्रित और एकीकृत रवैये की जरूरत है। एकीकृत रवैये का लक्ष्य होता है गरीबों का आर्थिक विकास। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम जनता की ताकत में अपना भरोसा गंवा चुके हैं। हमें सबसे पहले तो यह देखना होगा कि विकास के इस दशक में देश की 70 फीसदी आबादी तक विकास के लाभ बहुत कम मात्रा में पहुंचे हैं। उच्च शिक्षित, कार्यकुशल, समृद्ध और सामाजिक संपर्को वाले लोगों को तो इसका खूब लाभ मिला, लेकिन जैसे ही हम निम्न तबके की ओर बढ़ना शुरू करते हैं, विकास की चमकीली कहानी फीकी पड़ने लगती है। विकास की गति विषमतापूर्ण है। जहां अमीर तेजी से अमीर होते जा रहे हैं, वहीं गरीबों की स्थिति यथावत है। कई तो दिन-ब-दिन और गरीब भी होते जा रहे हैं।

यहां कुछ बिंदुओं पर गौर किया जाना जरूरी है। पहली बात तो यह है कि विकास समावेशी हो। हमें अपना ध्यान अर्थव्यवस्था के विकास के स्थान पर देश के सभी नागरिकों के आर्थिक विकास पर केंद्रित करना चाहिए। अगर देश की अर्थव्यवस्था आठ फीसदी की दर से बढ़ रही है तो देश के गरीब भी इस दर पर विकास क्यों नहीं कर सकते? दूसरी बात यह कि न्यूनतम पारिश्रमिक की घोषणा होने के बावजूद आय की दर बहुत कम है। पांच लोगों के एक सामान्य परिवार को गुजर-बसर करने के लिए ही प्रतिमाह 7000-7500 रुपयों की जरूरत होती है, लेकिन कई क्षेत्रों में तो कामगारों को न्यूनतम पारिश्रमिक का आधा हिस्सा भी नहीं मिलता।

तीसरी बात यह कि गरीबों को कर्ज के दुश्चक्र में झोंक देने में चिकित्सा व्यय का अहम योगदान है। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि देश के सभी लोग अच्छी गुणवत्ता की स्वास्थ्य सुविधाओं का वहन कर पाएं। चौथी बात यह कि खाद्य सुरक्षा एक बुनियादी जरूरत है। अनाज, शकर, सब्जियां जैसे खाद्य पदार्थ स्थिर एवं कम मूल्यों पर सभी को उपलब्ध होने चाहिए। पांचवीं बात यह कि समृद्ध परिवारों को तो शिक्षा के बहुत अवसर मिलते हैं, लेकिन गरीबों को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए या तो कर्ज लेना पड़ता है या उन्हें खराब गुणवत्ता के स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजना पड़ता है।

सबसे आखिरी बात यह कि विकास के लाभों का स्थानीयकरण करना जरूरी है। वहीं निजी क्षेत्र को भी ट्रस्टीशिप की भावना के साथ समाज में अधिक सक्रिय भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। आठ फीसदी से अधिक विकास दर के दशक में नागरिकों से 32 रुपए रोज में जीवन निर्वाह की अपेक्षा रखना असंगत है।