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बदल रही है परहिया समुदाय की जिंदगी

लातेहार जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर औरंगा नदी के किनारे स्थित है उचुवाबाल. यह मनिका प्रखंड की रॉकी कलां पंचायत के लंका गांव का टोला है. इस टोले में परहिया समुदाय के 80 परिवार हैं.

उनकी जीविका का एकमात्र जरिया हैं जंगल की उपज. इन वनोत्पादों को एकत्र करना और उन्हें बाजार में बेचना यही उनके आर्थिक जीवन का आधार है. इसके अलावा उच्च जाति के लोगाों के घरों में ये दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं, मगर अब यह तस्वीर बदल रही है.


दरअसल, ग्रामीण जीवन में परिवर्तन को लेकर प्रतिबद्ध ग्राम स्वराज मजदूर संघ इन परहिया समुदाय के संपर्क में आया. उसने परहिया समुदाय में सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिए नेतृत्व क्षमता विकसित करने का निर्णय लिया.

उसने महावीर परहिया को इसके लिए चुना. संगठन से जुड़ने के बाद महावीर अपने समुदाय व उनके अधिकारों के लिए लगातार संघर्षरत है. महावीर ने अपने टोले को ग्रामसभा का दर्जा भी दिलाया. वह खुद उस गांव के ग्राम प्रधान की भूमिका में आये.

इन सब का परिणाम यह हुआ कि झारखंड सरकार ने मनरेगा एवं अन्य आय प्रदायी योजनाओं के तहत इस गांव को आम की बागवानी के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत चुना. इसी कार्यक्रम के तहत स्थानीय सीएसओ (सिविल सोसायटी ऑर्गनाइजेशंस) से सरकार ने मदद मांगी. स्थानीस सीएसओ (सिविल सोसायटी ऑर्गनाइजेशंस) और सीएलओ (कम्युनिटी लीडर ऑर्गनाइजेशंस) की मदद से उचुवाबाल में आम की बागवानी योजना के लिए महावीर परहिया के नेतृृत्व में ग्रामसभा की गयी. महावीर अपने परिवार की बंजर जमीन को इसके लिए देने को राजी हुए.

उसके बाद ग्रामसभा से महावीर परहिया सहित पांच परिवार को मिलाकर करीब पांच एकड़ में आम बागवानी का प्रस्ताव दिया गया. 2016-17 में परहिया समुदाय के लिए करीब नौ लाख रुपये की आम बागवानी योजना पहली बार पूरे झारखंड में स्वीकृत की गयी.

आम बागवानी योजना स्वीकृत होने के बाद महावीर परहिया के नेतृत्व में पांच परिवारों की पांच एकड़ जमीन पर काम शुरू किया गया. इस में आम्रपाली और मालदा आम के 800 पौधे लगाये गये हैं. इसके अलावा इस जमीन पर करीब 650 इमारती पौधे लगाये गये हैं. साथ ही परहिया समुदाय के लोगों को तत्काल आर्थिक सहयोग पहुंचाने के लिए इंटरक्रॉपिंग की गयी है.

इस समुदाय के लोगों ने पहली बार में मिर्ची, टमाटर, फूलगोभी का उत्पादन किया, जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हुई हैं. इस समुदाय के लोग खुद इस योजना में काम करते हैं और उन्हें मनरेगा से मजदूरी भी मिलती है. पहली बार इस समुदाय के लोगों ने मनरेगा में 100 दिन का काम पूरा किया है. पौधों की रख-रखाव की जिम्मेवारी योजना के लाभुकों की िह है.

आम बागवानी योजना में दूसरे विभागों द्वारा अभिसरण किया जा रहा है. इस आम बाग के पैच में डोभा, छोटा तालाब और कुआं भी बनाये गये हैं. इसमें मत्स्य विभाग द्वारा मछली पालन भी कराया गया है. वहीं कृषि विभाग द्वारा लाभुकों को कृषि तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया, ताकि बेहतर आम बागवानी की योजना का संचालन ठीक से किया जा सके.

परहिया समुदाय के लोगों का राजनीतिक सशक्तीकरण भी हुआ है. इस समुदाय के लोग ग्रामसभा में अपनी भागीदारी खुद का निभाते है.


ग्रामसभा की बैठक में सीएलओ, स्थानीय सीएसओ और डीएएए (दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन) के लोग उन्हें उनके अधिकारों तथा उनके लिए सरकार द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं की जानकारी देते हैं, जिससे इस समुदाय में राजनीति चेतना का विकास हुआ है और समुदाय के लोग अपने अधिकार को हासिल करने के लिए आगे आने लगे हैं. अब इस समुदाय के लोग सरकारी कार्यालयों में खुद जा कर अपनी बात रखते हैं और समस्याओं को लेकर संघर्ष भी करते हैं.

बैठकों व राजनीतिक चेतना के विकास के कारण ही अब यह समुदाय सरकार से मिलने वाले राशन की खुद निगरानी करता है. समुदाय के लोग एक निश्चित तिथि को राशन लेने के लिए जन वितरण प्रणाली की दुकान पर जाते हैं. जन वितरण प्रणाली के दुकानदार द्वारा किसी भी तरह की गड़बड़ी करने पर वे अनुमंडल पदाधिकारी व जिला के अधिकारी तक अपनी आवाज पहुंचाते हैं.

वर्तमान समय में लातेहार जिले के मनिका व बरवाडीह प्रखंड में करीब 100 एकड़ में आम बागवानी योजना को ग्रामसभा से पारित कर आदिवासी व दलित समुदाय के लोग संचालित कर रहे है. मनिका प्रखंड के दुंदू, जान्हो, जुंगुर, पल्हेया तथा बरवाडीह प्रखंड के बेतला (अखरा), बरवाडीह, मंगरा, छिपादोहर आदि गांवों में अभिसरण द्वारा आम के बगीचे लगाने का प्रयोग किया जा रहा है.

इन प्रयासों की बदौलत यहां के परहिया समुदाय की जिंदगी में तेजी से बदलाव और आर्थिक स्वावलंबन आ रहा है. इसमें महिलाओं की दशा मेंे आया बदलाव ज्यादा अहम है, जो हर मोर्चे पर पूरी तरह सक्रियता हैं.