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बदलाव चाहती हैं मुस्लिम महिलाएं- सुभाषिनी सहगल अली

हर धर्म के मानने वाले अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ और न्यायपूर्ण मानते हैं। लेकिन तमाम धर्मों के नियमों पर पुरुष प्रधानता की गहरी छाप दिखाई देती है। जब भी महिलाओं ने अपने धर्म के नाम पर उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है, उन्हें जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा है। अक्सर इस विरोध का नेतृत्व धर्मगुरुओं ने किया है। जहां प्रगतिशील पुरुषों की मदद से हिंदू महिलाओं को तमाम समान अधिकार कम से कम कागज पर मिल गए हैं, वहां अब भी उनको कई असमानताओं का शिकार बनाया जाता है।� कई वर्षों से देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिम महिलाओं ने उन धार्मिक नियमों का विरोध किया है, जिन्हें वे महिला-विरोधी मानती हैं और इस लड़ाई में कई महिलाओं ने अभूतपूर्व हिम्मत और सूझ-बूझ का परिचय दिया है। लखनऊ में मुस्लिम महिलाओं के एक समूह ने एक समानांतर पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना करके उसके जरिये मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने का प्रयास किया था। इसी तरह, चेन्नई की महिला वकील, बदरे सय्यद, ने उच्च न्यायालय में काजियों के तलाक की पुष्टि के अधिकार के विरोध में याचिका दर्ज की। न्यायपालिका ने इस पर सुनवाई आज तक नहीं की है। सबसे प्रभावशाली प्रयास अखिल भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने किया।

आंदोलन की संस्थापक, नूरजहां सफिया नियाज और जकिया सोमन हैं। उनका मानना रहा है कि जिस तरह से शरई कानून का क्रियान्वयन भारत में होता है, उससे मुस्लिम महिलाओं के विकास के रास्ते में बहुत सी बाधाएं आती हैं। इसलिए उन्होंने एक मॉडल निकाहनामा तैयार किया है, और हजारों मुस्लिम महिलाओं के हस्ताक्षर लेकर, एकतरफा तलाक के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के सामने याचिका प्रस्तुत की है। अभी तक उसकी भी सुनवाई नहीं हुई है। हाल में इस संगठन ने महिला काजियों को प्रशिक्षित करने का काम किया है और अब राजस्थान की दो महिला काजी जहांआरा और अफरोज बेगम, तैयार हो गई हैं।

राजस्थान के मुख्य काजी, खालिद उस्मानी, ने उनके खिलाफ बयान दिया है। लेकिन कई मुस्लिम बुद्धिजीवी उनका सर्मथन भी कर रहे हैं। इसी तरह, आंदोलन ने हाजी अली में महिलाओं पर मजार के अंदरूनी हिस्से में प्रवेश करने पर लगी रोक के खिलाफ भी उच्च न्यायालय में याचिका दी है। इस पर न्यायालय ने अजीब टिप्पणी की है कि जब सर्वोच्च न्यायालय शबरीमलाई में हिंदू महिलाओं के प्रवेश पर अपना फैसला देगा, उसके बाद ही वह फैसला करेंगे। क्या न्यायालय मान रहा है कि जहां तक महिलाओं का सवाल है, वहां तक धार्मिक परंपराएं एक जैसी समझी जाएंगी और उन पर फैसला एक साथ दिया जाएगा? शबरीमलाई मामले में वाम मोर्चा सरकार के विपरीत, केरल की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने कहा है कि औरतों पर लगी रोक उचित है। अगर इस आधार पर शबरीमलाई पर लगी रोक को उचित ठहराया जाएगा, तो इस तरह की रोक महिलाओं पर हाजी अली में भी बनी रहेगी। इससे अगर सही सबक निकाला जाए, तो वह यही हो सकता है कि तमाम धर्मों की महिलाओं को तमाम महिलाओं की समानता की लड़ाई एकजुट होकर लड़नी चाहिए।

-लेखिका माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य हैं