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बनने थे 21 हजार मकान, बने एक हजार, मिले सिर्फ 12 को : राजेश शर्मा

भोपाल. योजना तो थी 21 हजार से अधिक गरीब परिवारों को मकान देने की, लेकिन पांच साल में सरकार केवल 12 परिवारों को ही मकान दे पाई है।

योजना के तहत प्रदेश के 46 शहरों में एक हजार से अधिक मकान बनकर तैयार हैं,लेकिन इनकी कीमत गरीबी रेखा से ऊपर से निकलने के कारण हितग्राही इन्हें लेने को तैयार नहीं है। इन मकानों की कीमत 80 हजार से बढ़ कर करीब डेढ़ लाख हो गई है, जबकि गरीबी रेखा की सीमा एक लाख रुपए है।

बढ़ती गई लागत,दूर होती गई योजना : केंद्र सरकार ने इंटीग्रेटेड हाउसिंग स्लम डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईएचएसडीपी) के तहत मप्र के लिए मलिन बस्ती में रहने वालों को मकान मुहैया कराने की योजना स्वीकृत की थी। योजना के तहत एक मकान की सीलिंग (लागत) 80 हजार तय की गई थी, लेकिन मकानों का निर्माण समय पर शुरू नहीं होने से लागत बढ़ गई।

इस पर नगरीय प्रशासन विभाग ने वर्ष 2009 में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को सीलिंग बढ़ाकर एक लाख करने का प्रस्ताव भेजा था। जिसे केंद्र ने मंजूरी भी दे दी, लेकिन अब लागत बढ़कर डेढ़ लाख रुपए हो गई है। यह भार सरकार उठाने के लिए तैयार नहीं है। योजना अगले साल खत्म हो जाएगी।

बैंक भी पीछे हटे

योजना के मुताबिक हितग्राही को अपना अंशदान 30 हजार रुपए बैंक से लोन लेकर देना था, लेकिन लागत बढ़ने से अंशदान अब 60 हजार रुपए हो गया है और बैंक अब इन हितग्राहियों को 50 हजार रुपए तक का लोन देने से हिचकिचा रहे हैं।

नगरीय प्रशासन ने एक प्रस्ताव ऐसा भी तैयार किया जिसमें राज्य सरकार से बढ़ी हुई लागत लेकर मकानों का निर्माण पूरा करने और इन मकानों को बैंक में मॉडगेज कर हितग्राही को लोन दिलाने का प्रावधान था, लेकिन वित्त विभाग ने इसकी अनुमति नहीं दी।

बैरसिया में रोका निर्माण

बैरसिया में 48 मकानों का निर्माण किया जाना है। अभी तक 8 मकान बन चुके है,लेकिन हितग्राही लेने को तैयार नहीं है। ऐसे में नगर पंचायत बैरसिया ने 40 मकानों का निर्माण रोक दिया है।


नहीं ले रहे मकान

जबलपुर जिले में बरेला में 80 मकानों का निर्माण छह माह पहले हो चुका था,लेकिन एक भी हितग्राही मकान लेने को तैयार नहीं है।

फैक्ट फाइल
345.72 करोड़ की योजना
115.73 करोड़ केंद्र से मिले
13.62 करोड़ दे पाई राज्य सरकार
21843 मकान बनने है
1036 मकान बन पाए
4702 मकान निर्माणाधीन

विकल्प तलाशे जा रहे हैं

प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से समय पर किस्त नहीं मिलने के कारण तथा सीमित संसाधनों की वजह से मकानों की कीमतें बढ़ी हैं। इसकी भरपाई के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार चल रहा है। इसमें बाजार से पैसे लेने की संभावनाएं तलाशीजा रही हैं।

एसएन मिश्रा,कमिश्नर,नगरीय प्रशासन विभाग