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बनायें व्यावहारिक लोकपाल लेखक पूर्व राज्यपाल हैं - प्रभात कुमार

अन्ना हजारे द्वारा जनलोकपाल बिल के लिए शुरू किया गया आंदोलन बहुत ही सफ़ल रहा. उनके प्रति शहरी मध्य वर्ग का जो आकर्षण है, उसने बखूबी काम किया. लोकतंत्र में नागरिकों को अधिकार है कि वे अपनी समस्याओं के बारे में कहें और अपने जनप्रतिनिधियों से इसके निदान की मांग करें. यदि ये जनप्रतिनिधि उनकी समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रखते या फ़िर उसका हल नहीं निकाल सकते, तो उचित ही होगा कि जनता मिलजुल कर अपनी आवाज बुलंद करे. सामान्यत इस प्रकार के सामूहिक विरोध का कोई परिणाम नहीं निकलता, क्योंकि जिनके पास अथॉरिटी है, वे इस पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देते. ऐसा बहुत कम ही हुआ है कि सिंहासन से उतर कर शासक नीचे आये और लोगों की बात सुने. लेकिन जंतर-मंतर पर चार दिनों तक जो हुआ, वह ऐसा ही अवसर था. सरकार इस बात पर सहमत हुई कि सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कानून बनाया जायेगा.

भारत के संवैधानिक इतिहास में यह अनूठा अवसर है. देश के लोगों ने जो समर्थन दिया, अन्ना और उनके साथी इसके लिए सही पात्र हैं. अन्ना हजारे और उनके साथियों को धन्यवाद. उनके ही प्रयासों के कारण आज भ्रष्टाचार विरोध के केंद्र में है. लेकिन मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार हमारे देश में अजेय है. चाहे जितना भी प्रयास हम इसे कुचलने में करते हैं, इसकी निंदा करते हैं या इसके उन्मूलन के लिए कानून बनाते हैं, पर इसके स्रोत को हम छू भी नहीं पाते हैं.

हम सभी जानते हैं कि स्रोत कहां है. यह हमारी-आपकी लालच में है. पैसा, पावर और नाम का लोभ. आप और हम सभी को इस पर विजय प्राप्त करने के लिए रास्ते तलाश करने होंगे. केवल सरकार या जनलोकपाल की ड्राफ्टिंग कमेटी से यह नहीं होगा. इसलिए एक कदम आगे बढ़कर भ्रष्टाचार से लड़ना महत्वपूर्ण तो है, पर सच्चाई यही है कि ड्राफ्टिंग कमेटी के पास करने को बहुत कुछ नहीं है. उसकी अपनी सीमाएं हैं. यह कहना कि जनलोकपाल बिल गवर्नेस की सारी बुराइयों को खत्म करने के लिए रामबाण दवा है, अतिशयोक्तिपूर्ण है. हमें केवल यही जोड़ना चाहिए कि यह महत्वपूर्ण है और सक्षम भी.

भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कानून बनाने के संदर्भ में देखें, तो ड्राफ्टिंग कमेटी के चयन और उसकी गतिविधियों ने कई मुद्दों को उठाया है. यह स्वीकारा जाना चाहिए कि ड्राफ्ट संपूर्ण नहीं है. जो लोग सोचते हैं कि प्रशांत भूषण, संतोष हेगड़े, अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों द्वारा बनाया गया ड्राफ्ट ही अंतिम है, तो उन्हें बहुत जल्द ही निराशा हाथ लग सकती है. मुमकिन है कि संसद इसमें बड़ी तब्दीली कर दे या फ़िर सुप्रीम कोर्ट इसके संविधान सम्मत न होने की घोषणा कर दे.

बिल तैयार करने वाले से लेकर हर किसी को याद रखना चाहिए कि जो संस्था बनेगी, सिविल सोसाइटी की संस्था नहीं होगी. राजसत्ता की संस्था होगी. आशा की जा सकती है कि वह सरकार के नियंत्रण से कुछ दूर ही रहेगी. इसलिए उसे उतना ही जिम्मेदार और भरोसेमंद होना चाहिए, जितना कि राज्य की दूसरी एजेंसियों से उम्मीद की जाती है. उसे एक शक्तिशाली जांच एजेंसी और जज बनाना मूर्खता होगा. साथ ही वह कितनी भरोसेमंद है, यह भी स्पष्ट होना चाहिए. जहां शक्ति के दुरुपयोग की समस्या है, वहां किसी ऐसी चीज को जन्म देना, जो और अधिक शक्तिशाली है, बुद्धिमतापूर्ण नहीं होगा. स्वघोषित गुण वाले लोगों से बनी ड्राफ्टिंग कमेटी का चयन मात्र ही गारंटी नहीं होगा कि लोकपाल के सदस्य सीधी रेखा पर चल सकेंगे.

दूसरी बात, यह व्यावहारिक संगठन होना चाहिए जो कि काम के भार से दबा न हो. यदि इसने लाखों शिकायतों और कदाचार के मामलों को सुलझाने का काम अपने हाथ में लिया, तो अच्छे उद्देश्य के बाद भी जनलोकपाल प्रभावहीन सिद्ध होगा. इसलिए लोकपाल का फ़ोकस भ्रष्टाचार पर ही होना चाहिए, दूसरी चीज पर नहीं. इसे भ्रष्टाचार के मामलों को छांटना होगा, जिस पर सीधे ही एक्शन लिया जा सके. शेष मामलों को सामान्य जांच एजेंसी के पास ही भेजा जाना चाहिए.

तीसरे, लोकपाल में किसी के साथ बिना भेदभाव के काम करने की क्षमता होनी चाहिए. आरंभ से ही यह कहना कि राजनीतिज्ञों की भूमिका संदिग्ध होगी, एक प्रकार से पूर्वाग्रह होगा. लोगों के किसी वर्ग को ले लीजिए, राजनीतिज्ञ, नौकरशाह, कॉरपोरेट हस्ती, शिक्षाविद, मीडिया के लोग और सामाजिक नेता ओद भी भ्रष्टाचार से उतनी ही आसानी से प्रभावित हो सकते हैं, जितना कि राजनीतिज्ञ. इसलिए खास वर्ग को इससे उपचारित करने की बात करना सही नहीं होगा.

चौथे, यह बात महसूस की जानी चाहिए कि कोई एक संगठन दशकों से गवर्नेस में आये दोष को खत्म नहीं कर सकता है. यह स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था है, जिसे कुछ जोशीले या उत्साही लोग नहीं हटा सकते. प्रशासनिक सुधार एकपक्षीय नहीं होना चाहिए. उन्हें अपने आप में पूर्ण होना चाहिए और सरकार की कई एजेंसियों की जरूरतों का भी ध्यान रखना चाहिए.

( लेखक पूर्व राज्यपाल हैं )