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बने रोजगारपरक कर-प्रणाली--भरत झुनझुनवाला

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने चेतावनी दी है कि आनेवाले समय में भारत में बेरोजगारी की समस्या गहराती जायेगी. पिछले दो दशक में भारत में तीव्र आर्थिक विकास हुआ था. 

इस अवधि में 30 करोड़ युवाओं ने प्रवेश किया. तीव्र विकास के बावजूद इनमें आधों को ही रोजगार मिल सका है. ये सीमित रोजगार भी मुख्यतः असंगठित क्षेत्र में मिले, जैसे रिक्शा चलाने में अथवा कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में. ऐसे हालात उस समय थे जब अर्थव्यवस्था में तीव्र विकास हो रहा था. वर्तमान समय में आर्थिक विकास दर घट रही है, इसलिए रोजगार कम ही उत्पन्न होंगे और समस्या गहरायेगी. 

यूएनडीपी ने सुझाव दिया है कि भारत को चीन की तरह उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाना चाहिए. चीन ने उत्पादन में वृद्धि के बल पर भारी संख्या में रोजगार बनाये थे. चीन ने बहुुुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित किया था. 

इन कंपनियों ने चीन में कारखाने लगाये. चीन में माल का उत्पादन करके पूरी दुनिया को माल भेजा था. चीन की स्ट्रैटेजी के वर्तमान समय में सफल होने में संदेह है, क्योंकि विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं दबाव में हैं. तकनीकी आविष्कारों में ठहराव आ गया है. अमेरिका में रोजगार उत्पन्न होने का भ्रामक दावा किया जा रहा है. वास्तव में अमेरिका में रोजगार स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में बन रहे हैं. अमेरिका में रोजगार का यह बनना अपने देश में मनरेगा में बन रहे रोजगार की तरह है, क्योंकि अमेरिकी बाजार में रोजगार सिकुड़ रहे हैं. 

पूरी दुनिया में रोजगार के सिकुड़ने का कारण विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है. आर्थिक विकास के साथ-साथ पूंजी की उपलब्धता बढ़ती जाती है और ब्याज दर कम होती जाती है. आज विकसित देशों में ब्याज दर शून्य है. साथ ही श्रम महंगा होता जाता है. उनके वेतन बढ़ते हैं. अतः उद्यमी के लिए मशीन का उपयोग अधिक एवं श्रम का उपयोग कम करना लाभप्रद होता जाता है. 

यह विकास की मूल दिशा है. लेकिन तकनीकी विकास के समय विकास की यह मूल दिशा ठहर जाती है. नये उत्पादों को बनाने में नये रोजगार बनते हैं. पिछले दो दशक में इंटरनेट के अतिरिक्त कोई आविष्कार नहीं हुआ है. इसलिए अब विकसित देशों में उद्यमी की श्रम का कम उपयोग करने की प्रकृति दिखने लगी है. उद्यमी द्वारा आॅटोमेटिक मशीन से उत्पादन अधिकाधिक किया जा रहा है. श्रम की मांग दुनियाभर में कम हो रही है. 

चारों तरफ बेरोजगारी बढ़ रही है. हाहाकार मचा हुआ है. ऐसे में रोजगार सृजन को सब्सिडी देकर मनरेगा जैसे कार्यक्रमों से पर्याप्त मात्रा में रोजगार बनाना कठिन होगा. रोबोट के उपयोग से पहले श्रमिक को बेरोजगार किया जायेगा. फिर राेबोट युक्त फैक्टरी से टैक्स वसूल किया जायेगा. इस टैक्स से मनरेगा चलाया जायेगा. जितना लाभ मनरेगा से होगा, उससे ज्यादा नुकसान राेबोट से होगा, इसलिए सरकार की वर्तमान पाॅलिसी फेल होगी. राेबोट के सामने श्रमिक नहीं टिक पायेगा. हमें ऐसी नीति लागू करनी होगी कि उद्यमी के लिए श्रम का उपयोग करना लाभप्रद हो जाये. 

सुझाव है कि तमाम उद्योगों को श्रम सघनता के आधार पर श्रम-सघन एवं पूंजी-सघन क्षेत्रों में बांट दिया जाये. पूंजी सघन उद्यम पर टैक्स लगा कर श्रम सघन उद्यम को सब्सिडी दी जा सकती है. इससे अर्थव्यवस्था में टैक्स की औसत दर पूर्ववत रहेगी. लेकिन श्रम के उपयोग को प्रोत्साहन देने में प्रमुख बाधा विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की है. 

मान लीजिए, भारत ने पूंजी सघन उद्योगों पर टैक्स बढ़ा दिया, जैसे आॅटोमेटिक लूम पर बननेवाले कपड़े पर टैक्स बढ़ा दिया. दूसरे देशों में आॅटोमेटिक लूम से बने कपड़े पर सामान्य दर से टैक्स लग रहा है. ऐसे में भारत में बना कपड़ा महंगा हो जायेगा और विदेशी कपड़े का आयात होने लगेगा. भारत के पूंजी सघन उद्योग पिटेंगे. उनसे मिलनेवाला टैक्स न्यून रह जायेगा. सरकार का बजट फेल हो जायेगा. अतः पूंजी सघन उत्पादों पर ऊंचे आयात कर भी लगाने होंगे. फिलहाल डब्ल्यूटीओ की व्यवस्था में पूंजी-सघन एवं श्रम-सघन माल का वर्गीकरण उपलब्ध नहीं है. आयात कर में भेदभाव का यह फाॅर्मूला डब्ल्यूटीओ के नियमों के विपरीत भी हो सकता है. 

समस्या वैश्विक है. पूरी दुनिया में रोजगार का क्षरण हो रहा है. अतः सरकार को चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व श्रम संगठन, विश्व बैंक जैसी संस्थाओं में रोजगार के मौलिक मुद्दे को उठाये. 

ऐसी नीतियों को वैश्विक स्तर पर लागू करने की मांग की जाये, जिससे पूरे विश्व में श्रम की मांग बढ़े. संयुक्त राष्ट्र में इस मांग को उठाने के पहले सरकार को होमवर्क करना होगा. नीति आयोग को निर्देश देना चाहिए कि रोजगार की समस्या के मौलिक समाधान का ब्लूप्रिंट देश के सामने पेश करे.