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बराबरी के दंगल में न आएं स्त्रियां--

पिछले दिनों लड़कियों और महिलाओं द्वारा बीयर पीने पर गोवा के मुख्यमंत्री के वक्तव्य पर आयी लड़कियों-महिलाओं की प्रतिक्रियाएं और तस्वीरों के प्रदर्शन अखबारों में देखकर बहुत पुरानी घटना स्मरण हो आयी. साल 1977 की बात है. मैं बिहार से दिल्ली रहने आयी ही थी. मुझसे 7-8 वर्ष पूर्व दिल्ली आयी एक रिश्तेदार महिला से बात हो रही थी. उसने कहा- ‘मेरी तबियत खराब हो गयी थी. दरअसल होली का समय था. यहां सभा-सोसाइटी मेें जाने पर लोग शराब भी पिला देते हैं. कुछ ज्यादा पी लिया.'

बिहार के एक गांव से आयी उस युवा महिला को मैं देखती रह गयी. मेरा भाव समझकर वह बोली- ‘आपको भी पीना पड़ेगा.' मैं चुप रही. मेरे मन में भय के साथ एक संकल्प भी उभरा- ‘मैं किसी के भी कहने पर नहीं पीऊंगी. चाहे मुझे कोई गंवार ही क्यों न समझे.'

अपने मंत्री पति के साथ दिल्ली के जर्मन हाउस के एक भोज में सम्मिलित हुई. सब हाथों में ग्लास लिये एक-दूसरे से बात कर रहे थे. मेरे सामने बेरा विभिन्न प्रकार के पेय पदार्थों से भरे ट्रे के साथ खड़ा हुआ. मैं असमंजस में थी, कौन सा ग्लास उठाऊं. बहुत विचार कर मैंने एक ग्लास उठाया, जिसके टाॅप पर नींबू का टुकड़ा लगा था. मेरे पति मुझसे दूर किसी से बात कर रहे थे. तेजी से उन्होंने मेरे पास आकर ग्लास मुझसे ले लिया और दूसरा सॅाफ्ट ड्रिंक का ग्लास मुझे थमाया. तब से मैं पार्टियों में कौन सा ग्लास उठाना है, समझ गयी.

स्त्री हो या पुरुष, पेय पदार्थ लेना व्यक्ति का अधिकार है. कुछ वर्गों में महिलाएं भी नशीले पदार्थों का सेवन करती आयी हैं, परंतु पुरुष से प्रतिद्वंद्विता के भाव से नहीं. आज पहनावे, भोजन, बोलचाल में पुरुषों के समान स्त्रियों में भी व्यवहार करने का चलन दिख रहा है.

पच्चीस वर्ष पहले एक महिला काॅलेज की वर्षगांठ उत्सव पर मुझे बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया. आॅडिटोरियम में प्रवेश करते ही चारों ओर से सीटी की आवाज सुनायी देने लगी. मैंने प्रिंसिपल से पूछा- ‘क्या यह को-एड काॅलेज है. प्रिंसिपल ने कहा- ‘नहीं. महिला काॅलेज है.'
दीप प्रज्ज्वलन से लेकर सबके भाषणों पर सीटियां बजीं. भाषण के लिए पोडियम पर मेरे खड़े होने पर भी सीटियां बजीं. थोड़ी देर मैंने बजती सीटी के स्वर का आनंद उठाया, फिर मैंने कहा- ‘आज मेरे लिए बड़े आनंद का विषय है. काॅलेज में एमए तक को-एड में पढ़ते, राजनीति में पुरुषों के साथ काम करते हुए किसी ने मुझे देखा क्यों नहीं? सीटी नहीं बजी. आज मेरी मनोकामना पूरी हुई. सीटियां बजीं भी, तो छप्पर फाड़ के.'
फिर सीटियां बजीं. मैं बोली- ‘ध्यान से सुनो. अब एक भी सीटी की आवाज नहीं आनी चाहिए. लड़का-लड़की बराबरी का मतलब यह नहीं कि लड़कियां लड़कों के गलत व्यवहार में भी बराबरी करें.'

मैंने उन्हें महादेवी वर्मा के एक भाषण का अंश सुनाया- ‘पुरुषों की चिंता छोड़ दो. घर में किसी लड़के की हरकतों से दुखी होकर लोग कहते हैं- आवारा हो गया है, जाने दो! पर क्या कभी किसी लड़की को भी कोई ऐसा कहता है? उसकी मां, घरवाले कभी नहीं कहते- आवारा हो गयी है, इसे होने दो! क्यों? इसलिए कि लड़कियों के आवारा होने की कल्पना नहीं की जा सकती. लड़की मात्र एक व्यक्ति नहीं, संस्था है. अब जब पुरुष पागल हो रहा है, तो होने दो! आप तो सजग-सचेत नागरिक बनो. अपनी शक्ति पहचानो. अपनी शक्ति से पुनः आपको नया निर्माण करना है. आप व्यक्ति बनो, वस्तु नहीं.'

कई क्षेत्र में स्त्री-पुरुष बराबरी का दंगल देखा जा रहा है. आज हमारी बेटियों को स्वतंत्रता है कि वे जल, थल, नभ पर जाएं. कहीं-कहीं उन्हें पुरुषों के बराबर नहीं, उनसे ज्यादा सुविधाएं और आरक्षण दिया गया है.

वे अपनी मेहनत और मिली सुविधाओं के आधार पर आसमान छू रही हैं. पुरुष से प्रतिद्वंद्विता का भाव नहीं है. लेकिन, गोवा के मुख्यमंत्री द्वारा युवाओं के विकास की चर्चा करते हुए उनका चिंता करना कि आज लड़कियां भी बीयर पीने लगीं, निश्चित रूप से महिला समाज के एक वर्ग को यह बात चुभ गयी. मीडिया में उनके द्वारा ऐसी प्रतिक्रियाएं आने लगीं, जैसे वे पुरुषों की बराबरी में शराब भी पीने के लिए अधिकृत हैं. महिलाओं के शराब पीने पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है.

सच तो यह है कि स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं. एक के द्वारा सृष्टि भी नहीं चलती और सांसारिक जीवन भी चलाना मुश्किल होता है. संविधान के द्वारा भी दोनों को बराबरी का हक प्राप्त है.

लेकिन, महिला प्रकृति के द्वारा पृथ्वी पर भेजी गयी विशेष सृजन है. इसलिए समाज और सरकार के द्वारा भी नारी को बहुत सारे विशेष सम्मान दिये गये हैं. वह विशेष सुरक्षा और सम्मान की हकदार और लाभार्थी भी हैं. क्योंकि, वे स्वयं विशेष हैं. जिस प्रकार हर अधिकार के पीछे व्यक्ति का कर्तव्य छुपा होता है, वैसे ही जो सुरक्षा, सुविधाएं और सम्मान की स्त्री हकदार है, उसे अपने कर्तव्य की लागत लगाकर हक अर्जित करना है. एक अशिक्षित व्यक्ति ‘कुली' ने कभी कहा था- औरत आंगन का खूंटा होती है.

उसके चारों ओर घूम-घूमकर बच्चे और पुरुष संस्कार पाते हैं. सच है कि पुरुष की तुलना में उसकी जिम्मेदारी बड़ी है, महत्वपूर्ण है, इसलिए भी वह पुरुष से भिन्न होती है. जिसकी जिम्मेदारी बड़ी होती है, उसे घर-गृहस्थी चलाने में संयम भी बरतना होता है. घर-परिवार को संभालने और बच्चों के लालन-पालन में रत रहनेवाली महिला से शराब पीने की अपेक्षा नहीं की जा सकती. शराब अपने साथ बहुत सा दुर्गंध लेकर आती है. महिला या पुरुष का व्यक्तित्व दुर्गंधित होता है. साथ ही उनके इर्द-गिर्द समाज भी प्रभावित होता है.

राज्य का मुख्यमंत्री भी राज्य के नागरिकों का अभिभावक ही होता है. अभिभावक ने कभी कोई अच्छी सीख दी, चिंता जाहिर की, तो उसे नकारात्मक रूप में नहीं लेना चाहिए. कहीं-न-कहीं बेटियों के भले की बात सोची गयी होगी. मुख्यमंत्री के भाषण के इस अंश पर चिंतन करने से अधिक प्रतिक्रियाओं पर चिंता हुई.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था- ‘जीवन के हर क्षेत्र में महिला विकास की दिशा सुनिश्चित करनी है. नारी न कठपुतली बनकर जिये, न उड़नपरी बनकर धरती से नाता तोड़ ले. स्त्री विकास की ऐसी दिशा निर्धारण परिवार, समाज, सरकार और स्वयं स्त्री का दायित्व है.' मैं नहीं समझती कि इससे बढ़कर नारी जीवन की कोई उपयुक्त परिभाषा होगी. विशेष सुरक्षा और सम्मान की अधिकारिणी नारी को परिवार-समाज में कभी पुरुषों के साथ बराबरी के दंगल में नहीं आना चाहिए.